10 फीसदी तक सीमित हो जाएंगे सामान्य वर्ग के आरक्षित गरीब? सच्चाई कुछ और ही है
Reservation For Upper Caste केंद्र सरकार द्वारा सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण देने के फैसले के बाद इसके तमाम निहितार्थ पर चर्चा होने लगी है. एक सवाल यह सामने आया है कि दस फीसदी का आरक्षण लेने वाले वर्ग का कैंडिडेट ऊपरी मेरिट में आने पर अनारक्षित श्रेणी में आएगा कि नहीं? कई जानकार यह कह रहे हैं कि सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए अवसर एक-चौथाई हो जाएंगे, क्योंकि वह दस फीसदी तक सीमित हो जाएगा और बाकी 40 फीसदी अनारक्षित श्रेणी में उसे जगह नहीं मिलेगी. लेकिन तमाम पिछले उदाहरणों को देखें तो यह बात सच नहीं लगती.
अभी तक जो परंपरा रही है उसके मुताबिक एससी/ एसटी या ओबीसी वर्ग का कोई कैंडिडेट यदि सामान्य की मेरिट में आता है तो उसे सामान्य वर्ग की नौकरी में शामिल कर लिया जाता है और उसे आरक्षित कैंडिडेट नहीं माना जाता. इसमें फिलहाल बस यह शर्त है कि उसने अपने आरक्षित श्रेणी में आयु सीमा जैसी कोई रिलैक्सेशन यानी छूट न ली हो.
इस आधार पर देखें तो यह साफ लगता है कि गरीब आरक्षण श्रेणी का सामान्य वर्ग का कैंडिडेट ऊंची मेरिट में आने पर अनारक्षित श्रेणी में कंपीट कर सकता है. इसके लिए उसकी राह और आसान होगी, क्योंकि इस श्रेणी के कैंडिडेट को आयु सीमा या कम फीस जैसी किसी तरह की रिलैक्सेशन शायद ही मिले.
दीपा ई.वी. बनाम भारत सरकार का मामला
कोटा के तहत आवेदन करने वाले कैंडिडेट के सामान्य वर्ग में नौकरी पाने के बारे में दीपा ई.वी बनाम भारत सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को नजीर माना जाता है. दीपा ई.वी. ने ओबीसी कैटेगरी के तहत आवेदन दिया था. जनरल कैटेगरी में परीक्षा के ‘मिनिमम कट ऑफ प्वाइंट’ पर कोई उम्मीदवार पास नहीं हुआ तो दीपा ने यह अपील की कि उसे जनरल कैटेगरी के तहत नौकरी के लिए योग्य माना जाए. सरकार ने ऐसा करने से मना कर दिया. दीपा ने हाईकोर्ट में इस फ़ैसले को चुनौती दी और हाईकोर्ट में अपील खारिज होने पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की बात मानते हुए दीपा की दलील खारिज कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘अपीलकर्ता ने ओबीसी कैटेगरी के तहत उम्र में रियायत ली, और इंटरव्यू भी ओबीसी कैटेगरी में ही दिया, इसलिए उसे जनरल कैटेगरी में नौकरी नहीं मिल सकती.’
टीना डाबी का मामला
सिविल सर्विसेज की टॉपर टीना डाबी के मामले से भी इसे समझा जा सकता है. टीना डॉबी ने सिविल सर्विसेज में टॉप किया था, लेकिन उन्हें एससी कैटेगरी में रखा गया, क्योंकि उन्होंने प्रारंभिक परीक्षा में एससी कैंडिडेट के तहत आवेदन किया था और इसमें कटऑफ का उन्हेें लाभ मिला था.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था, ‘एससी/ एसटी और ओबीसी कैटेगरी से रियायत लेने के बाद ऐसे उम्मीदवारों के लिए जनरल कैटेगरी का फ़ायदा लेने के लिए साफ सीमा तय की गई है. डिपार्टमेंट ऑफ परसोनेल और ट्रेनिंग का नियम भी स्पष्ट है कि एससी/ एसटी और ओबीसी कैटेगरी के उम्मीदवारों के लिए रियायत दी जाती है, उम्र की सीमा, अनुभव, योग्यता और लिखित परीक्षा में अवसरों की संख्या में जनरल कैटेगरी की तुलना में ज़्यादा रियायत दी जाती है, ऐसे में ऐसे उम्मीदवार जनरल कैटेगरी के लिए अयोग्य माने जाएंगे.’
लेकिन इस फैसले में एक पेच है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से भी आरक्षित वर्ग के कैंडिडेट को सामान्य वर्ग में शामिल होने पर रोका नहीं जा सकता, बशर्ते उसने अपने कोटा श्रेणी में किसी तरह का रिलैक्सेशन न लिया हो.
अब भी नहीं है कोई रोक
दलित एक्टिविस्ट अलख निरंजन बताते हैं, ‘अब भी अनारक्षित वर्ग के कैंडिडेट ऊंची मेरिट में आने पर सामान्य श्रेणी में नौकरी पा रहे हैं. इस मामले में बस सुप्रीम कोर्ट के आदेश को देखते हुए चेक यही किया जाता है कि उसने अपने कोटा के तहत एज लिमिट में या किसी अन्य तरह का रिलैक्सेशन न लिया हो.’ यानी अगर किसी कैंडिडेट ने किसी तरह का रिलैक्सेशन नहीं लिया हो तो उसे सामान्य वर्ग की नौकरी मिल सकती है.
साल 2010 के जितेंद्र कुमार सिंह बनाम यूपी राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया था कि अगर कोई आरक्षित कैंडिडेट मेरिट के मुताबिक सामान्य वर्ग में नौकरी पाता है तो उसे सामान्य वर्ग का कैंडिडेट मान लिया जाएगा, न कि आरक्षित वर्ग का. इस आदेश से भी यह साफ होता है कि आरक्षित कैंडिडेट के कैंडिडेट को सामान्य वर्ग में जाने पर कोई रोक नहीं है.
सामान्य वर्ग के किन कैंडिडेट को मिलेगा आरक्षण का लाभ?
– जिनकी सालाना आय 8 लाख से कम हो
– जिनके पास 5 एकड़ से कम की खेती की जमीन हो
– जिनके पास 1000 स्क्वायर फीट से कम का घर हो
– जिनके पास किसी नगर निगम में 109 गज से कम अधिसूचित जमीन हो
– जिनके पास किसी नगर निगम में 209 गज से कम की निगम की गैर-अधिसूचित जमीन हो
– जो अभी तक किसी भी तरह के आरक्षण के अंतर्गत नहीं आते थे