अन्तर्राष्ट्रीय

12 हजार किलोमीटर दूर अंटार्कटिका से आइसबर्ग लाने की योजना बना रहा है संयुक्त अरब अमीरात

दुबई : यूएई ने अपने देश में पानी की किल्लत दूर करने के लिए 12 हजार किलोमीटर दूर अंटार्कटिका से आइसबर्ग लाने की योजना बनाई है। प्रोजेक्ट की लागत पांच से 12 करोड़ डॉलर यानी करीब 343 करोड़ से 824 करोड़ रुपए के बीच आ सकती है। प्रोजेक्ट की शुरुआत 2019 से होगी। आइसबर्ग को पहले ऑस्ट्रेलिया के पर्थ या साउथ अफ्रीका के केपटाउन में लाया जाएगा ताकि तापमान के साथ उसमें आने बदलाव और आइसबर्ग के पिघलने की गति को देखा जा सके। यहीं से तय होगा कि आइसबर्ग को कितनी तेजी से और किस रास्ते से यूएई लाना है। सब कुछ ठीक रहने पर आइसबर्ग को 2020 तक यूएई के फुजैराह तट पर लाया जाएगा। अगर ये आइसबर्ग यूएई तक आता है तो कुछ वक्त तक पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र रहेगा।

आइसबर्ग लाने का जिम्मा यूएई के नेशनल एडवाइजरी ब्यूरो लिमिटेड को मिला है। कंपनी के प्रबंध निदेशक अल शेही ने कहा, हमने ऐसी तकनीक विकसित कर ली है, जिससे हिमखंडों को बिना साफ पानी का नुकसान किए आसानी से यूएई के तट तक लाया जा सकेगा। इसके लिए सबसे पहले सैटेलाइट के जरिए उस हिमखंड की पहचान की जाएगी, जिसे अंटार्कटिका से यूएई तक लाना है। इसके बाद आइसबर्ग को हाई कैपेसिटी वाले दो जहाजों के जरिए खींचकर गति दी जाएगी। इसमें समुद्र की लहरें भी मदद करेंगी। ये दोनों जहाज मिलकर 10 करोड़ टन वजनी आइसबर्ग खींच सकेंगे। कंपनी के प्रबंध निदेशक के मुताबिक, आइसबर्ग को अंटार्कटिका से यूएई के फुजैराह तट तक लाने का समय इस बात पर निर्भर करेगा कि ये पहाड़ कितना बड़ा और वजनी है। पूरे सफर में कम से कम 9 महीने लग सकते हैं। एक बार जब आइसबर्ग तट पर आ जाएगा तो उसे काट कर बड़े-बड़े टैंक्स में रखा जाएगा ताकि उससे पिघलकर निकलने वाले साफ पानी का इस्तेमाल हो सके।यूएई के नेशनल एडवाइजरी ब्यूरो लिमिटेड के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय सामुद्रिक कोड के मुताबिक, पानी के संसाधनों का इस्तेमाल कोई भी कर सकता है। चूंकि बर्फ का पहाड़ भी एक पानी का संसाधन है, इसलिए इसे कहीं भी ले जाया जा सकता है। कंपनी का दावा है कि इससे अंटार्कटिका को कोई नुकसान नहीं होगा।

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