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12 जुलाई यानि कल देखिए नीतीश कुमार का नमक कितना बदल पाता है अमित शाह का मन

अमित शाह 12 जुलाई की सुबह पटना में होंगे। वह नीतीश कुमार के साथ नाश्ते की मेज पर बैठेंगे। दिल्ली में अपने पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक करके पटना लौटे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से यह उनकी पहली मुलाकात होगी।
बिहार के मुख्यमंत्री, जद(यू) और भाजपा की बिहार प्रदेश ईकाई ने इस भेंट को मीडिया के सामने प्रचारित करने तथा राजनीतिक संदेश देने की जोरदार तैयारी कर रखी है। सूत्र बताते हैं कि इसके बाद अमित शाह पार्टी की चुनाव तैयारियों, संगठन को मजबूत बनाने तथा प्रचार-प्रसार को संभाल रही टीम का जायजा लेने में व्यस्त हो जाएंगे। देर शाम दोनों नेताओं की फिर मुलाकात होगी।

देर शाम को होने वाली मुलाकात नीतीश कुमार की डायनिंग टेबल पर होगी। जहां बिहार के मुख्यमंत्री के साथ भाजपा अध्यक्ष लजीज खाने का आनंद लेंगे। डिनर के स्वाद में राजनीति और राजनीतिक सहयोगी दल के प्रति एक दूसरे का प्रेम सौहार्द भी घुला होगा। देखना है कि नीतीश कुमार द्वारा अमित शाह को खाने में खिलाया नमक जद(यू) के साथ दोस्ती का कितना गाढ़ा रंग दिखाता है। फिलहाल सूत्र बताते हैं कि अभी अमित शाह की कोशिश हम साथ-साथ हैं का संदेश देने की ही है। आगे की राजनीतिक पहल संसद के मानसून सत्र के बाद होने की संभावना है।

विपक्ष की टिकी नजर

महागठबंधन के सभी घटक दलों की अमित शाह की पटना यात्रा पर नजर टिकी है। एनडीए के घटक दल रालोसपा को भी इसके नतीजे का इंतजार है। वहीं जद(यू) के वरिष्ठ नेता इसे बहुत निर्णायक बैठक नहीं मान रहे हैं। पार्टी के एक वरिष्ठ सूत्र का कहना है कि भाजपा के साथ हमारा मुख्य मुद्दा सीटों के बंटवारे का है। बिहार में जद(यू) भाजपा से बड़ी और बड़े जनाधार वाली पार्टी है। इसलिए आगामी लोकसभा चुनाव में जद(यू) भाजपा के बराबर सीटों पर ही चुनाव लड़ना चाहती है।

हमारा और हमारे नेता नीतीश कुमार का एजेंडा साफ है। नीतीश कुमार ने एनडीए में बने रहने की घोषणा कर दी है। सूत्र का कहना है कि गेंद भाजपा अध्यक्ष के पाले में है। उन्हें बताना है कि वह कितना गठबंधन धर्म निभाना चाहते हैं। इसलिए जद(यू) राज्य की 40 लोकसभा सीटों के घटक दलों में बंटवारे को लेकर भाजपा के प्रस्ताव का इंतजार कर रही है।

बिहार में जद(यू) के 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में दो प्रत्याशी जीतकर आए थे। भाजपा 29 सीट पर चुनाव मैदान में थी और उसे 22 सीट पर सफलता मिली थी। रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा सात सीट पर चुनाव लड़कर छह जीतने में सफल रही थी।
उपेन्द्र कुशवाहा की रालोसपा चार सीट पर चुनाव लड़कर तीन जीतने में कामयाब हो गई थी। ऐसे में भाजपा के सहयोगी दल अपनी सिटिंग सीट पर कोई समझैता नहीं करना चाहते। भाजपा भी 22 सीट की संख्या को बनाए रखना चाहती है। हालांकि सांसद कीर्ति आजाद और शत्रुघ्न सिन्हा पार्टी के लिए लगातार सिर दर्द बने हैं। ऐसे में भाजपा अभी जद(यू) को 10-12 सीट तक देने के ही मूड में है। जबकि जद(यू) भाजपा से कम सीटों पर चुनाव लडऩे के लिए तैयार नहीं है।

महागठबंधन प्रसन्न है

एनडीए के खेमे में तकरार से महागठबंधन खेमा प्रसन्न है। उसकी प्रसन्नता का एक बड़ा कारण नीतिश कुमार की छवि का फंस जाना है। नीतीश कुमार ने पिछला विधानसभा चुनाव राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था। महागठबंधन को बहुमत मिला, सरकार बनी और बाद में नीतीश कुमार की पार्टी जद(यू) ने महागठबंधन से नाता तोड़ लिया। इसे राजद नेता लालू प्रसाद यादव ने पीठ में छूरा घोपना करार दिया था।

पार्टी के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद ने जद(यू) का विश्वासघात बताकर कड़ी आलोचना की थी और जद(यू) के वरिष्ठ नेता शरद यादव तथा कुछ राज्यसभा सदस्यों, नेताओं ने विरोध करते हुए पार्टी से बगावत कर दी थी। अब इस सभी कुनबे को नीतीश कुमार के साथ भाजपा के नये समीकरण का इंतजार है।

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