देश में 15 करोड़ लोगों को दोनों समय का भोजन नहीं मिलता
भोपाल : दुनिया के शीर्ष अमीर व्यक्तियों में भारत के अनेक लोग शामिल हैं लेकिन एक और तस्वीर है जो चिंता पैदा करती है। भारत की आर्थिक विषमता के बारे में जब हम विचार करते हैं तो ध्यान आता है कि 15 करोड़ से अधिक ऐसे लोग हैं जिन्हें दोनों समय का भोजन नहीं मिल पाता है। भारत के युवा को इस स्थिति पर विचार करना चाहिए। यह विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक दीपक विस्पुते ने भारतीय विचार संस्थान न्यास की ओर से आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यानमाला में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि जिस देश ने दुनिया को सिखाया। आज उस देश में साक्षरता का सरकारी आंकड़ा भी देखें तो 73 प्रतिशत से अधिक नहीं है। इसमें भी ऐसे लोग अधिक हैं जो सिर्फ अपने हस्ताक्षर करना जानते हैं। 27 करोड़ नागरिक ऐसे हैं, जिनके लिए काला अक्षर भैंस बराबर है। क्या यह स्थिति हमारी चिंता नहीं बढ़ाती है। इस स्थिति को बदलने के बारे में हम कुछ विचार करते हैं या नहीं? दुनिया में सबसे अधिक भिक्षुक, अंधेपन के शिकार, टीबी के रोगी भी भारत में सबसे अधिक हैं। सड़क दुर्घटना में मरने वाले लोग भी भारत में सबसे अधिक है। भारत के यह दृश्य हमें चुभने चाहिए ताकि इनके समाधान की राह निकालें।
क्षेत्र प्रचारक श्री विस्पुते ने कहा कि जो लोग अपने समाज की गाढ़ी कमाई से शिक्षित होकर, समाज के उत्थान के लिए कुछ नहीं करते हैं, उनके लिए स्वामी विवेकानंद ने बहुत कठोर शब्दों का उपयोग किया है। आज के युवा का लक्ष्य व्यक्तिगत प्रगति है। उसके पास ऐसी जेबें हैं, जो कभी भरती ही नहीं हैं। जापान के एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि जापान के युवाओं को जब अपना लक्ष्य लिखने को कहा तो सबने एक ही लक्ष्य लिखा- अपने देश की सेवा करना। भारत के युवाओं का भी यही लक्ष्य होना चाहिए। उन्होंने स्वामी विवेकानंद, नारायण गुरु, राम तीर्थ, ज्योतिबा फुले, सावित्री देवी फुले, महात्मा गांधी, रविन्द्र नाथ ठाकुर, बाबू गेनू सहित कई महान लोगों के योगदान का उल्लेख किया और व्याख्यानमाला में उपस्थित युवाओं से उनके जीवन का अनुसरण करने का आग्रह किया।