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16 कला में संपन्न भगवान श्री कृष्ण

morpankhi-krishnaश्री कृष्ण की कुंडली में ऐसा क्या था कि बने वे 16 कला संपन्न भगवानज्योतिष शास्त्र के अनुसार श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद महीने की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को महानिशीथ काल में वृष लग्न में कंस के काराग्रह में मथुरा नगरी में हुआ था। उस समय चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र में भ्रमण कर रहे थे। रात्री के ठीक 12 बजे क्षितिज पर वृष लग्न उदय हो रहा था तथा चंद्रमा और केतु लग्न में विराजित थे। चतुर्थ भाव सिंह राशि में सूर्यदेव विराजित थे। पंचम भाव कन्या राशि में बुध विराजित थे। छठे भाव तुला राशि में शुक्र और शनिदेव विराजित थे। सप्तम भाव वृश्चिक राशि में राहू विराजित थे। भाग्य भाव मकर राशि में मंगल विराजमान थे तथा लाभ स्थान मीन राशि में बृहस्पति स्थापित तह। श्री कृष्ण की जन्मकुंडली में राहु को छोड़कर सभी ग्रह अपनी स्वयं राशि अथवा उच्च अवस्था में स्थित थे।श्रीकृष्ण की जन्मकुंडली में लग्न में उच्च राशिगत चंद्रमा द्वारा मृदंग योग बन रहा था जिसके फलस्वरूप श्रीकृष्ण कुशल शासक व जन-मानस प्रेमी बने। ज्योतिषशास्त्र अनुसार जब कभी वृष लग्न में चंद्रमा विराजित हो तब जातक जनप्रिय नेता व कुशल प्रशासक होता है। श्रीकृष्ण की जन्मकुंडली के सभी ग्रह वीणा योग बना रहे थे जिसके फलस्वरूप श्रीकृष्ण गीत, नृत्य, संगीत व कला क्षेत्र में निपुण थे।श्रीकृष्ण की जन्मकुण्डली में पर्वत योग बन रहा था जिसके कारण ये परम यशस्वी बने। पंचम स्थान में विराजित उच्च के बुध ने इन्हें कूटनीतिज्ञ विद्वान बनाया व मकर राशि में विराजित उच्च के मंगल ने यशस्वी योग बनाकर इन्हें पूजनीय बनाया। एकादश भाव में मेष राशि में उच्च के सूर्य ने भास्कर योग का निर्माण किया कारण श्रीकृष्ण पराक्रमी, वेदांती, धीर और समर्थ बने। ये वो ज्योतिष हैं जिनका संयोग लगभग असंभव है। ऐसी कुंडली हजारों वर्ष में मात्र एक बार बनती है। कुछ ऐसे ही संयोग में भगवान जन्म लेते हैं

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