16 साल के वेटलिफ्टर ने यूथ ओलम्पिक में गोल्ड मेडल जीतकर रचा इतिहास, बांस से करते थे प्रैक्टिस
नई दिल्ली : मिजोरम की राजधानी आईजोल में 90 के दशक में लालनिहतलुआंगा बॉक्सिंग की दुनिया का जाना माना नाम था। एक अच्छा बॉक्सर होने के साथ लालनिहतलुआंगा गांव के युवाओं को ट्रेनिंग भी दिया करते थे। अपनी मेहनत, जुनून और जज्बे के दम पर लालनिहतलुआंगा ने राष्ट्रीय स्तर पर कई मेडल जीते, लेकिन कुछ परिवारिक समस्याओं के चलते वह अपने करियर को आगे नहीं ले जाए पाए। परिवार को बुरी हालत में देखकर लालनिहतलुआंगा के पास पीडब्ल्यूडी में मजदूर के रूप में काम करने के सिवाय दूसरा कोई विकल्प नहीं था। पांच बेटों के पिता लालनिहतलुआंगा का सपना था कि उनके बच्चे खेल की दुनिया में अपना नाम करें और अब यह पूर्व बॉक्सर एक गौरवांवित पिता हैं। उनके एक बेटे ने यूथ ओलिंपिक गेम्स में गोल्ड मेडल जीता है। जेरेमी लालरिननुगा वेटलिफ्टर हैं। और हाल ही में 16 साल के इस वेटलिफ्टर ने यूथ ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया था। 2018 के यूथ ओलिंपिक में उन्होंने पुरुषों के 62 किलोग्राम भारवर्ग में 274 किलो (124 किलोग्राम+150 किलोग्राम) भार उठाकर सोने का तमगा जीता। जेरेमी ने मैं अपने पिता से मिलने को आतुर हूं। मैं सीधा उनके दफ्तर जाऊंगा और उन्हें सरप्राइज दूंगा। जेरेमी ने कहा, मेरे पिता मजदूर के रूप में काम करते हैं। मुझे खिलाड़ी बनाने के लिए वह जो कर सकते थे उन्होंने किया। मैं उनके सपने पूरे करके काफी खुश हूं। उन्होंने अपनी युवा मुस्कान के साथ कहा, वह ठेके पर काम करते हैं, उन्हें कभी भी अपनी नौकरी छोड़ने के लिए कहा जा सकता है। मैं उन्हें आराम देना चाहता हूं। मैं अब उन्हें परिवार के पास ले जाऊंगा। वेटलिफ्टिंग से जेरेमी की पहली मुलाकात 7 साल की उम्र में गांव के ही एक जिम में हुई। उन दिनों को याद करते हुए वह कहते हैं, मैं गांव के लड़कों को मेरे घर के नजदीक जिम में ट्रेनिंग करते हुए देखता था। वे वेट उठाया करते थे। उन्हें देखकर मैं रोमांचित हुआ करता था। इससे मुझे हिम्मत मिली और मैंने इस खेल में हाथ आजमाने का विचार किया।
उन्होंने आगे कहा, मैंने उन लड़कों से कहा कि क्या वे मुझे वेट उठाने की ट्रेनिंग दे सकते हैं। ऐसे ही मेरा वेटलिफ्टिंग का सफर शुरू हुआ। शायद ईश्वर चाहता था कि मैं किसी दिन वेटलिफ्टिंग करूं। कुछ महीने बाद जेरेमी को पता चला कि उनके गांव में नया वेटलिफ्टिंग सेंटर खुला है। उन्होंने कहा, मैं मलसावमा (जेरेमी के पहले कोच) से मिलने को लेकर काफी खुश था। उन्होंने ही मुझे वेटलिफ्टिंग के शुरुआत सबक सिखाए। जेरेमी ने मलसावमा से बैंबू तकनीक भी सीखी। जेरेमी ने कहा, वह मुझे एक बांस लाने और उसे धीरे-धीरे उठाने को कहते। वह 5 एमएम लंबे और 20 एमएम मोटे होते। उनमें कोई वजन नहीं होता लेकिन उन्हें उठाना असल में ज्यादा मुश्किल होता क्योंकि आपको उन्हें संतुलित करना सीखना पड़ता है। वह कहते हैं कि मैंने दिन रात बांस से प्रैक्टिस की और संतुलन का हुनर सीखा। एक बार संतुलन सीखने के बाद मुझे वेट उठाने की ट्रेनिंग दी गई। मेरा वेटलिफ्टिंग करियर ऐसे ही शुरू हुआ। आठ महीने की कड़ी ट्रेनिंग के बाद मलसावमा जेरेमी को लेकर पुणे के आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टिट्यूट लेकर गए। अपने शानदार प्रदर्शन के दम पर जेरेमी उन लड़कों में से थे जिन्हें आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट में दाखिला मिला। जेरेमी कहते हैं, मेरे पहले कोच मलसावमा ने मुझे यहां तक पहुंचने में मदद की। मैं उनका आभारी रहूंगा। जेरेमी ने आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट में नए कोच जारजोकेमा से ट्रेनिंग लेनी शुरू की। जारजोकेमा की निगरानी में उन्होंने पटना में हुए सब-जूनियर में गोल्ड मेडल जीता। इसके बाद वर्ल्ड यूथ वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता। इसके अलावा उन्होंने उज्बेकिस्तान में एशियन यूथ ऐंड जूनियर चैंपियनशिप की यूथ कैटगिरी में सिल्वर मेडल जीता। जारजोकेमा सर एक प्रफेशनल ट्रेनर हैं। उन्होंने मेरे साथ काफी मेहनत की। उनका मैं काफी शुक्रगुजार हूं। अब जेरेमी की निगाहें 2020 तोक्यो ओलिंपिक पर हैं। वह कहते हैं, मैं सीनियर ओलिंपिक में अच्छा प्रदर्शन करना चाहता हूं। मैं अपने सीनियर सतीश शिवलिंगम और राहुल रगाडा के साथ ट्रेनिंग शुरू करूंगा। संजीता और मीराबाई वहां मेरी मदद करने के लिए होंगी।