17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के फैसले से गरमाई राजनीती
योगी सरकार ने 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल कर सूबे में सियासी हलचल बढ़ा दी है। इस फैसले से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऐसा फासला तय कर लिया है, जो उनके पहले के तीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, मायावती और अखिलेश यादव कोशिश करने के बावजूद नहीं कर सके थे। विधानसभा के उप चुनाव से पहले इसे भाजपा का मास्टर स्ट्रोक भी माना जा रहा है। दूसरी तरफ इस कदम को सपा-बसपा के तोड़ और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से अलगाव की भरपाई के तौर पर भी देखा जा रहा है।
वैसे तो सरकार ने 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्र जारी करने का जो आदेश किया है वह हाईकोर्ट के अंतिम निर्णय के अधीन है लेकिन शासनादेश जारी होने के बाद से ही प्रदेश की सियासत में हलचल मच गई है। कारण है कि 17 जातियों में समाया तकरीबन 14 फीसद वोट बैैंक हर राजनीतिक दल को अपनी ओर खींचता है और कोई भी दल इन्हें लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता।
वर्ष 2005 में मुलायम सिंह यादव, 2007 में मायावती और 2016 में अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री रहते इनको अपने साथ लाने के प्रयास किए लेकिन, कभी हाईकोर्ट तो कभी अन्य कारणों से उनकी कोशिशें परवान नहीं चढ़ सकीं। मुलायम के प्रस्ताव पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी, जबकि आरक्षण के प्रतिशत पर मायावती के अपने तर्क थे, जिस पर उन्होंने तब प्रधानमंत्री को पत्र भी भेजा था।
जब अखिलेश मुख्यमंत्री बने तो 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने भी इस ओर कदम बढ़ाते हुए कैबिनेट से इसके प्रस्ताव के मंजूरी दिला दी। इसके विरोध में डॉ.बीआर अंबेडकर ग्रंथालय एवं जनकल्याण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिस पर कोर्ट ने अग्रिम आदेश तक स्टे दे दिया था। 29 मार्च, 2017 को हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि शासनादेश के तहत कोई भी जाति प्रमाण पत्र जारी किया जाता है तो वह कोर्ट के अंतिम फैसले के अधीन होगा।
इन जातियों के जारी होंगे प्रमाणपत्र
कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोडिय़ा, माझी और मछुआ
किसकी कितनी हिस्सेदारी
17 अति पिछड़ी जातियों में सबसे ज्यादा निषाद 10.25 फीसद हैं। राजभर 1.32 और कुम्हार 1.84 फीसद हैैं। ये जातियां लंबे समय से खुद को अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग करती आ रही हैैं।
दो साल की देर क्यों की
एक तरफ जहां बसपा ने इस बारे में फिलहाल चुप्पी साध रखी है, वहीं सपा ने इस निर्णय में देर किए जाने का आरोप लगाते हुए सरकार से सवाल पूछा है कि सामाजिक न्याय के लिए सपा सरकार ने जब 17 जातियों को एससी में शामिल करने का निर्णय किया था और हाईकोर्ट ने 29 मार्च, 2017 को इस पर हामी भर दी थी तो भाजपा ने इसे लागू करने में दो साल की देर क्यों की। आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अवधेश कुमार वर्मा ने योगी सरकार के फैसले को अनुसूचित जाति का आरक्षण निष्प्रभावी बनाने की कोशिश बताते हुए कहा कि 17 जातियों की 14 फीसद आबादी के मुताबिक आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाया जाए।