1971 में भारत ने किया ये मैसेज डिकोड जिससे पाकिस्तान की हुई हार
भारत-पाकिस्तान का युद्ध
मार्च 1971 में पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह याहिया खां (yahya khan) ने पूर्वी पाकिस्तान (East Pakistan) में कठोर रुख अपनाना शुरू किया। ऐसा इस लिए क्योंकि पश्चिमी पाकिस्तान वहां रहने वाले ज्यादातर बंगाली नेतृत्व को दबाना चाहता था। पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच में विराट हृदय वाला देश भारत बसता था।
ज्यादा दूरी होने के कारण पश्चिमी पाकिस्तान में बैठा केंद्रीय नेतृत्व पूर्वी पाकिस्तान पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाता था। लगातार वहां आंदोलन होने लगे। जिससे तानाशाही जैसा माहौल पैदा हो गया। हालाता यहां तक पहुंच गए कि पूर्वी पाकिस्तान में सामाजिक न्याय नाम की चीज खत्म होने लगी। 1970 में हुए पाकिस्तान के चुनाव में आवामी लीग ने बेहतर परिणाम पाए।
आवामी लीग के अध्यक्ष शेख मुजीबुर्रहमान को पाकिस्तान सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। जिससे डरे सहमे लोगों ने भारत में शरण लेना शुरू कर दिया। जिसके बाद हिंसा बढ़ने लगी। भारत पर भी दबाव पड़ने लगा कि वह सेना के जरिए इस मामले में हस्तक्षेप करे।
तत्कालीन दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने तत्कालीन सेनाध्यक्ष सैम मानेकशॉ (Sam Manekshaw) से इस मामले पर बात की। लेकिन सैम मानेकशॉ (Sam Manekshaw) तैयार नहीं हुए। क्योंकि पूर्वी पाकिस्तान में मानसून आ गया था और भारतीय सेना (Indian Army) के टैंक का जीर्णोद्धार कार्य़ प्रगति पर था। सैम मानेकशॉ ने इस असमर्थता के कारण अपना इस्तीफा भी दिया लेकिन इंदिरा गांधी ने लेने से इंकार कर दिया।
पाकिस्तान ने कर दी गलती
1971 का यह युद्ध (विजय दिवस) होता ही नहीं अगर पाकिस्तान अपनी मूर्खता न दिखा देता। 3 दिसंबर को इंदिरा गांधी पश्चिम बंगाल में एक जनसभा को संबोधित करने गई थीं। इसी दौरान शाम 5.40 के करीब पाकिस्तानी वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने पठानकोट, क्षीनगर, अमृतसर, जोधपुर, आगरा में वायुसेना हवाई अड्डों पर बम बरसा दिया।
युद्ध के पूर्वानुमान के कारण हम उस समय अपने विमानों को बंकर में रखते थे। जिससे ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। जब इंदिरा वापस लौटीं तो उन्होंने तुरंत सेना के अफसरों और कैबिनेट के साथ मीटिंग की। इसी शाम इंदिरा गांधी ने रेडियो से देश के नाम संदेश दिया कि यह वायु हमले पाकिस्तान की ओर से भारत को खुली चुनौती है। 3 दिसंबर की रात को ही भारतीय वायुसेना ने जवाबी कार्रवाई कर दी।
गुप्त संदेश जिसने बदल दी युद्ध की सूरत
पाक ने किया आत्मसमर्पण
16 दिसंबर की सुबह जनरल जैकब को मानेकशॉ का एक मैसेज मिला। इसमें कहा गया कि आत्मसमर्पण के लिए वह बिना कोई देरी किए ढाका पहुंचे। उस समय पाकिस्तान के लेफ्टीनेंट जनरल एएके नियाजी के साथ करीब 26400 सैनिक थे वहीं भारतीय सेना के सिर्फ 3000 थे।
फिर भी भारत ने बताया कि उसके पास पाकिस्तान से ज्यादा सेना है। अगर युद्ध हुआ तो वह हार जाएगा। जिसके बाद ले. जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने पाकिस्तान के ले. जनरल एएके नियाजी ने आत्मसमर्पण के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया। यह खबर जैसे ही इंदिरा ने सदन में दी पूरा सदन हर्ष से झूम उठा।
दुनिया के नक्शे पर क्या प्रभाव पड़ा
इस आत्म समर्पण के बाद पूर्वी पाकिस्तान पाकिस्तान का क्षेत्र नहीं रहा और एक स्वतंत्र देश बांग्लादेश (Bangladesh) बन गया। 2 जुलाई 1972 को भारत-पाकिस्तान ने शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किए। जिसके बाद पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों की खातिर बांग्लादेश को एक स्वतंत्र देश मान लिया। जिसके बाद दुनिया के नक्शे पर एक और देश आ गया।