राष्ट्रीय

2जी स्पेट्रम पर फैसले को उच्च अदालत में चुनौती देना आसान नहीं

नई दिल्ली : 2जी स्पेट्रम मामले में अदालत के फैसले को चुनौती देने के बातें सामने आई हैं, लेकिन कानून विशेषज्ञों का मानना है कि पटियाला हाउस कोर्ट की विशेष सीबीआई अदालत के फैसले को अगली अदालत में चुनौती देना आसान काम नहीं है। जज ओ पी सैनी ने टू-जी मामले में 1550 पृष्ठ का निर्णय बड़े सधे अंदाज में और सूझबूझ के साथ लिखा है। ऐसे में अभियोजन पक्ष सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के लिए इस फैसले को उच्च अदालत में चुनौती देना आसान नहीं होगा। न्यायमूर्ति ओपी सैनी ने बिना किसी लाग-लपेट के अपने फैसले में सीबीआई और ईडी के साथ दूरसंचार विभाग के बाबुओं के सामान्य ज्ञान, तकनीकी ज्ञान और कानूनी ज्ञान सबकी पोल खोल दी थी। कोर्ट ने कहा अभियोजन पक्ष की ओर से कोई रिकॉर्ड और ऐसा कोई सबूत पेश नहीं किया गया जो आरोपियों को अपराध में लिप्त साबित कर पाए। वह चाहे वह कट ऑफ डेट के फिक्स करने की बात हो, या ‘पहले आओ, पहले पाओ’ नीति के मैन्युपुलेशन का मामला हो, या कंपनियों को स्पेक्ट्रम देने में हेराफेरी की बात हो या फिर कलइंगर टीवी को 200 करोड़ रुपये रिश्वत के तौर पर देने का आरोप हो। न्यायमूर्ति सैनी ने कहा कि इस मामले पेश किए गए आरोप पत्र में संदर्भ से परे हट कर मनमाने तरीके से मतलब निकालने का प्रयास किया गया है।

फैसले के मुताबिक जांच एजेंसियों के यह आरोप पत्र जांच के दौरान गवाहों की तरफ से दी हुई मौखिक जानकारी पर आधारित हैं, लेकिन वे बातें गवाहों ने अदालत में गवाही के दौरान कभी नहीं कहीं। अगर गवाहों ने मौखिक तौर पर कुछ कहा है जो ऑफिशियल रिकॉर्ड के विपरीत जाते हैं, तो उसे कानून में मान्यता नहीं है। फैसला यह भी कहता है कि आरोप पत्र में रिकॉर्ड किये गए बहुत से तथ्य गलत हैं। मसलन एंट्री फीस के रिवीजन की वित्त सचिव द्वारा सिफारिश करना और एंट्री फी के रिवीजन के लिए ट्राई की सिफारिश। 2जी फैसले में कोर्ट ने कहा कि नतीजा यही है और मुझे यह कहने में बिल्कुल संकोच नहीं है कि आरोपियों के खिलाफ मामला साबित करने में अभियोजन पक्ष बुरी तरह से नाकाम रहा है। अदालत ने यह भी कहा कि इस आरोप पत्र को बहुत करीने से सजाने का प्रयास किया गया है, लेकिन इसमें तथ्यों का नितांत अभाव है।

कोर्ट ने अधिकारियों के नाकारेपन को रेखांकित करते हुए कहा कि आरोपियों के खिलाफ दलीलों को साबित करने वाले पुख्ता सबूत नहीं हैं। कानूनी और तकनीकी शब्दावली को समझने में टेलीकॉम विभाग के अधिकारियों की समझदारी सवालों के घेरे में है। उन्होंने कहा उनको कई रोजमर्रा में इस्तेमाल होनेवाली चीजों के अर्थ तक मालूम नहीं थे, जिरह के दौरान भी कई बार तो अभियोजन पक्ष यह भी तय नहीं कर पाया कि वह आखिर साबित क्या करना चाहता है? कट ऑफ डेट्स, फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व थ्योरी जैसे कई मुद्दों पर आरोपियों के खिलाफ किसी आपराधिक साज़िश का सबूत अभियोजन पक्ष कोर्ट में रिकॉर्ड पर नहीं दे पाया। अभियोजन पक्ष की दलील, गवाहों के बयान और पेश किए गए सबूत के बीच तालमेल ही नहीं दिखा। लिहाजा अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया।

Related Articles

Back to top button