कॉरपोरेट अफेयर्स मंत्रालय में राज्यमंत्री पीपी चौधरी ने बताया कि ऐसी संपत्तियों की पहचान की प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा करने की जरूरत है और जानकारी कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के साथ समयबद्ध तरीके से साझा की जानी चाहिए।
उन्होंने आगे बताया क्योंकि देश की सभी जमीन का ब्योरा कंप्यूटराइज्ड है इसलिए इन कंपनियों से निदेशकों और हितधारकों की जानकारी एकत्रित करने में देरी नहीं होनी चाहिए और इन जानकारियों को जिला प्रशासन या फिर केंद्र से साझा करना चाहिए।
बता दें कि कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने इन 2.1 लाख कंपनियों का पंजीकरण इसलिए रद्द करने का फैसला किया था क्योंकि ये कंपनियां लंबे समय से कारोबार नहीं कर रही थीं।
सरकार ने काले धन और बेनामी संपत्ति के खिलाफ अपनी मुहिम तेज करते हुए एक और कठोर कदम उठाने का फैसला किया है। इसके तहत शेल (मुखौटा) कंपनियों से जुड़े 1.06 लाख से अधिक निदेशक अयोग्य ठहराए जाएंगे।
एक आधिकारिक बयान के मुताबिक, मंत्रालय ने कंपनी कानून, 2013 के अधिनियम 164 (2)(ए) के तहत 12 सितंबर 2017 तक ऐसी कंपनियों के एक लाख छह हजार 578 अयोग्य निदेशकों की पहचान की है।
अधिनियम 164 में कहा गया है कि जिस कंपनी का निदेशक लगातार तीन वित्तीय वर्ष तक वित्तीय बयान या सालाना रिटर्न दाखिल नहीं करता है, वह पांच साल तक के लिए उस कंपनी या किसी दूसरी कंपनी में नियुक्त होने के योग्य नहीं रह जाएगा।
शेल कंपनियों के खिलाफ कुछ और कानूनी कार्रवाई किए जाने का संकेत देते हुए मंत्रालय रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (आरओसी) से मिले 2.09 लाख शेल कंपनियों के डाटा खंगाल रहा है ताकि इनके निदेशकों और हितधारकों की पहचान की जा सके।
मंत्रालय के बयान के मुताबिक, जांच एजेंसियों के सहयोग से इन कंपनियों के निदेशकों की पृष्ठभूमि और इन कंपनियों के परिचालन में उनकी भूमिका से संबंधित प्रोफाइल भी जुटाए जा रहे हैं। इसके अलावा इन कंपनियों की ओर से की गई मनी लॉन्ड्रिंग गतिविधियों की भी जांच की जा रही है।