लखनऊ। उत्तर प्रदेश में बिजली को लेकर मचे हाहाकार के बीच मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आज केन्द्र से सूबे को बिजली कोटा बढ़ाये जाने की मांग दोहरायी और राज्य द्वारा अपने संसाधनों से संकट खत्म करने की भरसक कोशिश का दावा करते हुए अगले दो-तीन दिन में विद्युत आपूर्ति व्यवस्था बेहतर होने का भरोसा दिलाया। मुख्यमंत्री ने यहां पवन कुमार सिंह द्वारा लिखित किताब ‘1857 की क्रांति’ का विमोचन करने के बाद संवाददाताओं द्वारा प्रदेश की चरमरायी बिजली व्यवस्था के बारे में पूछे जाने पर कहा ‘‘उत्तर प्रदेश को केन्द्र से एक हजार मेगावाट का कोटा नहीं मिल रहा है। साथ ही पर्याप्त मात्रा में कोयला भी नहीं मिलने से बिजली इकाइयों में उत्पादन भी कम हो रहा है।’’ सरकार द्वारा अपने स्तर से भरसक कोशिश किये जाने का दावा करते हुए उन्होंने विश्वास दिलाया कि अगले दो-तीन दिन में प्रदेश के लोगों को पहले की तरह अच्छी बिजली मिलने लगेगी। केन्द्र से कोटा नहीं बढ़ाये जाने के लिये भारतीय जनता पार्टी पर तंज कसते हुए अखिलेश ने कहा ‘‘एक पार्टी उत्तर प्रदेश में अनेक सीटें जीत गयी लेकिन केन्द्र में पहुंचकर उसने राज्य का कोटा नहीं बढ़ाया। जो जीते हैं उन्हें भी तो काम करना चाहिये।’’ मुख्यमंत्री ने गत मई माह में वाराणसी में बिजली कटौती के खिलाफ भाजपा विधायक श्यामदेव राय चौधरी द्वारा की गयी भूख हड़ताल का जिक्र करते हुए कहा ‘‘हमने ही उनकी भूख हड़ताल खत्म करायी थी। उस वक्त हमें विश्वास दिलाया गया था कि केन्द्र से मिलने वाली बिजली का कोटा बढ़ाया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ।’’ प्रदेश इस समय भीषण बिजली संकट से गुजर रहा है। विभिन्न कारणों से कई इकाइयों के ठप होने की वजह से संकट गहरा गया है। अघोषित बिजली कटौती के विरोध में जनता जगह-जगह सड़कों पर उतरकर विरोध जता रही है, जिससे कानून-व्यवस्था का संकट भी उत्पन्न हो रहा है। हाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ मंच साझा करने वाले हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिन्दर सिंह हुड्डा तथा झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा चिढ़ाये जाने के सवाल पर अखिलेश ने कहा ‘‘अभी मेरे साथ ऐसी नौबत नहीं आयी है। हम तो मोदी जी के नेटिव स्टेट के मुख्यमंत्री हैं। हमारे साथ तो उनके रिश्ते अलग तरह के होने चाहिये।’’ इसके पूर्व, पुस्तक ‘1857 की क्रांति’ का विमोचन करते हुए मुख्यमंत्री ने इस किताब को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के कई ढके-छुपे पहलुओं को उजागर करने का सराहनीय प्रयास बताया। कार्यक्रम को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कार्यकारी उपाध्यक्ष उदय प्रताप सिंह तथा लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष आचार्य सूर्यप्रसाद दीक्षित तथा पुस्तक के लेखक पवन कुमार सिंह ने भी सम्बोधित किया।