भुवनेश्वर : उड़ीसा राज्य के पुरी जिले में प्रतिष्ठित है। यह मन्दिर सूर्य-देव अर्थात अर्क को समर्पित था, जिन्हें स्थानीय लोग बिरंचि-नारायण कहते थे। इसी कारण इस क्षेत्र को उसे अर्क-क्षेत्र या पद्म-क्षेत्र कहा जाता था। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को उनके श्राप से कोढ़ रोग हो गया था। साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में, बारह वर्षों तक तपस्या की और सूर्य देव को प्रसन्न किया था। सूर्यदेव, जो सभी रोगों के नाशक थे, ने इसके रोग का भी निवारण कर दिया था। तदनुसार साम्ब ने सूर्य भगवान का एक मन्दिर निर्माण का निश्चय किया। अपने रोग-नाश के उपरांत, चंद्रभागा नदी में स्नान करते हुए उन्हें सूर्यदेव की एक मूर्ति मिली। यह मूर्ति सूर्यदेव के शरीर के ही भाग से, देवशिल्पी श्री विश्वकर्मा ने बनायी थी। साम्ब ने अपने बनवाये मित्रवन में एक मन्दिर में, इस मूर्ति को स्थापित किया, तब से यह स्थान पवित्र माना जाने लगा। कई आक्रमणों और नेचुरल डिजास्टर्स के कारण जब मंदिर खराब होने लगा तो 1901 में उस वक्त के गवर्नर जॉन वुडबर्न ने जगमोहन मंडप के चारों दरवाजों पर दीवारें उठवा दीं और इसे पूरी तरह रेत से भर दिया। ताकि ये सलामत रहे और इस पर किसी डिजास्टर का प्रभाव न पड़े। इस काम में तीन साल लगे और 1903 में ये पूरी तरह पैक हो गया। वहां जाने वाले को कई बार यह पता नहीं होता है कि मंदिर का अहम हिस्सा जगमोहन मंडप बंद है। बाद में आर्कियोलॉजिस्ट्स ने कई मौकों पर इसके अंदर के हिस्से को देखने की जरूरत बताई और रेत निकालने का प्लान बनाने की बात भी कही।
मंदिर के बारे में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने लिखा है, कोणार्क, जहां पत्थरों की भाषा मनुष्य से श्रेष्ठ है। भारत के पास ये विश्व की धरोहर है। अगर आप मंदिर गए हैं, तो आपने देखा होगा कि तीन मंडपों में बंटे इस मंदिर का मुख्य मंडप और नाट्यशाला ध्वस्त हो चुके हैं और अब इसका ढांचा ही शेष है। बीच का हिस्सा, जिसे जगमोहन मंडप या सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता है, इसमें 1901 में चारों तरफ से दीवारें उठवाकर रेत भर दी गई थी। सूर्य मंदिर के मुख्य अधिकारी निर्मल कुमार महापात्र के मुताबिक, कोणार्क में रोज करीब 10 हजार लोग आते हैं। सीजन में यह संख्या 25 हजार तक पहुंच जाती है। कोणार्क में लाइट और साउंड शो की तैयारी है, जिसके लिए ट्राइकलर इंडिया कंपनी से बातचीत हो चुकी है और काम चल रहा है। यह माना जाता है कि 200 साल में केवल एक बार ऐसा संयोग होता है जैसे मानों सूरज मंदिर के अंदर उग रहा हो।