2014 के बाद एक बार फिर ‘धोखे की राजनीति’ से श्रीलंका में भूचाल
कोलम्बो : श्रीलंका में नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम के बीच शुक्रवार को राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने मौजूदा प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर दिया। वहीं उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को नया प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया। अमेरिका ने श्रीलंका की सभी राजनीतिक पार्टियों से संविधान का पालन करने और हिंसा से दूर रहने की अपील की है। अमेरिका ने कहा, हम उम्मीद करते हैं कि श्रीलंका सरकार ह्यूमन राइट्स, सुधार, जवाबदेही, न्याय और सुलह के लिए अपनी जेनेवा प्रतिबद्धताओं को कायम रखेगा। वहीं श्रीलंका के संयुक्त विपक्षी दल के नेतृत्व में दिसंबर 2014 में पूर्व राष्ट्रपति चंद्रिका बंडारनायके कुमारतुंगा और उस वक्त विपक्ष के नेता रानिल विक्रमसिंघे ने अपने एक फैसले से हर किसी को हैरान कर दिया था। इन दोनों ने कहा कि 2015 के राष्ट्रपति चुनावों में महिंदा राजपक्षे के खिलाफ मैत्रीपाला सिरिसेना मुकाबला करेंगे। श्रीलंका में इस फैसले से तहलका मच गया। चुनावी मैदान में उतरने के लिए वरिष्ठ मंत्री सिरीसेना ने राजपक्षे कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। ये कुमारतुंगा, विक्रमसिंघे और सिरीसेना का एक साहसिक फैसला था। तब तक महिंदा राजपक्षे को कुछ भी पता नहीं था, उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि सिरीसेना जैसे लो प्रोफाइल मंत्री उन्हें धोखा देकर विपक्ष के साथ हाथ मिलाएंगे। चुनाव के मैदान में दोनों के बीच ज़ोरदार टक्कर हुई और सिरीसेना ने राजपक्षे को हरा दिया। सत्ता में बने रहने के लिए राजपक्षे ने चुनाव परिणामों को रद्द कर दिया। बाद में सेना और पुलिस अधिकारियों को दखल देना पड़ा। आखिरकार महिंदा राजपक्षे को कुर्सी छोड़नी पड़ी। उम्मीदों के मुताबिक सिरीसेना ने रणिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया। राजपक्षे का दौर खत्म हो चुका था। कुछ महीने बाद, श्रीलंका की संसद को भंग कर दिया गया। यूनाइटेड नेशनल पार्टी और श्रीलंका फ्रीडम पार्टी ने हाथ मिला लिया। लिहाजा सिरीसेना और विक्रमसिंघे के नेतृत्व में नई सरकार बनी जो शुक्रवार तक चली। पहले दो वर्षों में, दोनों नेताओं के बीच अच्छा तालमेल देखने को मिला। एक दशक बाद श्रीलंका की जनता वास्तविक लोकतंत्र का अनुभव कर रही थी। लेकिन तख्तापलट के संकेत साल 2017 से ही मिलने लगे थे, एशिया में पड़ोसी देशों से संबंध को लेकर सिरीसेना और विक्रमसिंघे के अलग-अलग मत थे। खास कर भारत और चीन से राजनीतिक संबंध को लेकर दोनों के अलग-अलग रास्ते थे। इसके अलावा घरेलू मामलों में भी दोनों के बीच लगातार खींचतान चल रही थी। दोनों के बीच दूरियां बढ़ती चली गई, लेकिन किसी को ये उम्मीद नहीं थी कि वो रणिल विक्रमसिंघे को धोखा देंगे। वो नेता जिसने सिरीसेना को राजनीतिक जोखिम उठाकर राष्ट्रपति बनाया। कोलंबो के कुछ राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक राजपक्षे के प्रभाव में, राष्ट्रपति ने कई अजीबो-गरीब बयान दिए। दावा किया गया था कि भारत की रॉ उनकी हत्या की साजिश रच रहा था, उनके इस बयान की श्रीलंका में आलोचना हुई थी। विक्रमसिंघे ने कहा था कि सिरीसेना उस समय उनकी सबसे अच्छी पसंद थी, यहां तक कि कुमारतुंगा ने भी सिरीसेना में विश्वास दिखाया था।2014-15 की तरह, सिरीसेना ने एक बार फिर श्रीलंका और उसके पड़ोसियों को हैरान कर दिया है। दिसंबर 2014 तक किसी ने सोचा नहीं था कि सिरीसेना राजपक्षे को धोखा देने जा रहे थे, उसने ऐसा किया। इस महीने तक, किसी ने सोचा नहीं था कि वो विक्रमसिंघे को धोखा देने जा रहा थे, लेकिन अब उसने ये भी कर दिया है। विक्रमसिंघे ने अपना पद छोड़ने से मना कर दिया है, उन्होंने अपनी बर्खास्तगी को असंवैधानिक करार दिया है। ऐसे में श्रीलंका में राजनीतिक और संवैधानिक संकट जल्द खत्म होने की संभावना नहीं है।