2019 की जंग फतह करने के लिए पूर्वांचल में कमल खिलाने में जुटी BJP
देश की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर जाता है और यूपी को जीतने के लिए पूर्वांचल को जीतना जरूरी है. इसी फॉर्मूले से 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में यूपी में सबसे ज्यादा सीटें हासिल करने वाली बीजेपी अब 2019 की जंग फतह करने के लिए पूर्वांचल में पैठ बनाने की कोशिश में है.
पूर्वांचल को साधने के लिहाज से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मगहर के बाद अब सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ में 14 जुलाई को एक रैली करेंगे. इस दौरान मोदी जहां उत्तर प्रदेश सरकार की सबसे बड़ी परियोजना पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का शिलान्यास करेंगे, वहीं कुछ नई योजनाओं की घोषणा भी कर सकते हैं.
बता दें पिछले दिनों संत कबीर नगर के मगहर में पीएम मोदी की जनसभा हुई थी. इस दौरान मोदी ने सपा और बसपा सहित तमाम विपक्षी दलों पर हमला किया था. माना जा रहा है कि इस हमले को आजमगढ़ में वे और आक्रामकता दे सकते हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ पूर्वांचल की इकलौती सीट थी, जहां बीजेपी नहीं जीत सकी थी.
पीएम मोदी ही नहीं बल्कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी पूर्वांचल को साधने की कोशिश में लग गए हैं. शाह ने बुधवार को पूर्वांचल में मिशन-2019 का तानाबाना विंध्याचल धाम से बुनने का फैसला किया है. वे 4 जुलाई को मिर्जापुर और वाराणसी पहुंच रहे हैं. शाह यहां से अवध, काशी और गोरखपुर प्रांत के 30 लोकसभा क्षेत्र के प्रभारियों के साथ बैठक कर जमीनी स्तर पर संगठन व जनता की नब्ज टटोलेंगे.
गौरतलब है कि मोदी को सत्ता में आने से रोकने के लिए यूपी में विपक्षी दल एकजुट हो रहे हैं. पूर्वांचल के गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा-बसपा की एकता से बीजेपी चारों खाने चित हो गई थी. इसके बाद विपक्ष की एकता की ताकत की अजमाईश पश्चिम यूपी के कैराना में भी दिखी, जहां आरएलडी ने बीजेपी को शिकस्त दी.
उपचुनाव में मिले जीत के फॉर्मूले से उत्साहित सपा, बसपा और कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन बनाकर उतरने का मन बना रहे हैं. तीनों दलों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर मंथन जारी है. माना जा रहा है कि महागठबंधन के सहयोगियों के बीच सीटों का तालमेल बहुत कुछ तक 2009 पर आधारित होगा, क्योंकि 2014 में तो विपक्ष पूरी तरह से धराशाई हो गया था.
2009 को आधार बनाया जाएगा तो तीनों ही दलों के बीच जमकर रस्साकसी होगी, क्योंकि पूर्वांचल क्षेत्र की सीटों के 2009 के परिणाम पर गौर फरमाया जाए तो तीनों दलों के बीच बहुत ज्यादा अंतर नहीं है. आंकड़े बताते हैं कि तब 21 में से सर्वाधिक आठ सीट बसपा को, 7 सपा और 6 सीट कांग्रेस को मिली थीं. जबकि 2014 की बात की जाए तो केवल सपा को एक सीट मिली, वो भी तब जब खुद मुलायम सिंह आजमगढ़ से मैदान में उतरे. ऐसे में अब देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस, सपा और बसपा के बीच सीटों का तालमेल कैसे होता है, किसे कितनी सीटें मिलती हैं.
2019 में विपक्ष महागठबंधन बनाकर उतरता है, तो बीजेपी के लिए 2014 जैसे नतीजे दोहराना आसान नहीं होगा. वाराणसी जैसी सीट छोड़ दें तो पूर्वांचल की ज्यादातर सीटें बीजेपी के हाथों से निकल जाएंगी. बीजेपी के हाथों से पूर्वांचल खिसका तो फिर देश की सत्ता तक पहुंचना मुश्किल हो जाएगा.
यूपी के बदले सियासी मिजाज के तहत बीजेपी के लिए पूर्वांचल को साधना काफी अहम हो गया है. शायद यही वजह है कि पीएम मोदी और अमित शाह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुकाबले पूर्वी उत्तर प्रदेश पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं. बीजेपी की प्रदेश इकाई पूर्वांचल के कई जिलों में मोदी की रैलियां कराकर माहौल को अपने पक्ष में बनाने की कोशिश में जुट गई हैं. माना जा रहा है पीएम की हर महीने यूपी में एक रैली कराने का पार्टी ने प्लान बनाया है.