21 मार्च को है शनि प्रदोष व्रत इस मुहूर्त में करें भगवान शिव को प्रसन्न, मनोकामना होगी पूर्ण
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, प्रदोष व्रत हर मास की त्रयोदशी तिथि को होता है। इस दिन प्रदोष काल में भगवान शिव की विधिपूर्वक आराधना की जाती है। जिस दिन को प्रदोष व्रत होता है, उस दिन को जोड़कर उसका नाम रखा जाता है। इस बार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 21 मार्च दिन शनिवार को है, इसलिए इस बार शनि प्रदोष व्रत है। दिन के अनुसार पड़ने वाले प्रदोष व्रत के फल और मनोकामना पूर्ति भी अलग-अलग होते हैं। शनि प्रदोष व्रत विशेष तौर पर उन लोगों को करना चाहिए, जो नि:संतान हैं। शनि प्रदोष व्रत कर भगवान शिव को प्रसन्न करने से व्यक्ति को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है। हालांकि शनि प्रदोष व्रत कोई भी कर सकता है।
शनि प्रदोष व्रत का मुहूर्त
इस बार शनि प्रदोष व्रत 21 मार्च को है। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ 21 मार्च दिन शनिवार को सुबह 07 बजकर 55 मिनट से हो रहा है, जो 22 मार्च दिन रविवार को सुबह 10 बजकर 07 मिनट तक है।
शनि प्रदोष पूजा मुहूर्त
प्रदोष व्रत में हमेशा ही सूर्यास्त के बाद यानी प्रदोष काल में भगवान शिव की आराधना करने का विधान है। इस बार शनि प्रदोष पूजा का मुहूर्त शाम को 06 बजकर 33 मिनट से रात 08 बजकर 55 मिनट तक है।
क्या है प्रदोष काल?
प्रदोष काल, सूर्य के अस्त होने के बाद तथा रात्रि से पहले का समय होता है। मुख्यत: प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद से 96 मिनट तक माना जाता है।
शनि प्रदोष व्रत एवं पूजा विधि
शनिवार को प्रात:काल में स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद भगवान शिव का स्मरण करके शनि प्रदोष व्रत का संकल्प लें। इसके पश्चात भगवान शिव की आराधना करें। फिर दिनभर फलाहार करें और शाम को पूजा मुहूर्त से पहले स्नान करें। इसके पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करके पूजा मुहूर्त में भगवान शिव की पूजा करें।
सर्वप्रथम पूजा स्थल पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठें और भगवान शिव की प्रतिमा या तस्वीर को एक चौकी पर स्थापित करें। इसके पश्चात भगवान शिव का गंगा जल से अभिषेक करें। अब उनको फूल, अक्षत्, भांग, धतूरा, सफेद चंदन, गाय का दूध, धूप आदि अर्पित करें। इस दौरान ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। उसके बाद शिव चालीसा का पाठ करें और अंत में भगवान शिव की आरती करें। अंत में भगवान शिव से अपनी मनोकामना व्यक्त करें और उसे पूर्ण करने का निवदेन करें।
इसके पश्चात प्रसाद लोगों में बांट दें तथा ब्राह्मण को कुछ दान करके भोजन कर व्रत को पूरा करें।