उत्तर प्रदेशलखनऊ

23वीं बरसी पर हर किसी को खल रही सिंहल की कमी

ashthi-kalash-yatra-of-ashok-singhal-565331d685c04_exlstविरोधी हों या समर्थक हर किसी को इस बार अशोक सिंहल की कमी खल रही है। यह सही है कि सिंहल का हर साल 6 दिसंबर को अयोध्या में रहना जरूरी नहीं था लेकिन अब जबकि वह नहीं हैं तो इस तारीख पर उनकी याद हर व्यक्ति को किसी न किसी रूप में आ रही है। वह किसी के लिए खलनायक तो किसी के लिए नायक थे।

हाशिम की नजर में लकड़ी तोड़ने वाला उस जैसा शख्स मिलना अब मुश्किल है तो मंदिर के लिए पत्थर तराशने वाले कारीगर गिरीश भाई सोमपुरा के मुताबिक समय और हालात की चिंता किए बगैर लक्ष्य पाने के लिए सब-कुछ कर गुजरने वाली ‘वैसी शख्सियत’ की तलाश काफी कठिन है।

लोगों की यह राय यूं ही नहीं है। विरोधी भी यह स्वीकार करते हैं कि सिंहल ने जिस तरह मंदिर आंदोलन को लोगों तक पहुंचाया वह आसान काम नहीं था। अयोध्या के एक शख्स नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि विश्व हिंदू परिषद के लिए इस तरह का लड़ाकू आदमी तैयार करना मुश्किल होगा। बात आगे बढ़ाते हुए वह बोले- ‘हो कुछ भी लेकिन लड़ने में मजा दो से ही आया एक रामचंद्र परमहंस और दूसरे सिंहल।’

पेशे से शिक्षक मो. सलमान से एक मस्जिद के पास मुलाकात होती है। सिंहल के बारे में पूछने पर कहते हैं, ‘मैं तो बस्ती से यहां रिश्तेदारी में आया हूं। पर, सिंहल के बारे में जानता खूब हूं। मस्जिद तुड़वाने की जिद न करते और इस तरह के आंदोलन से न जुड़ते तो काफी अच्छे आदमी माने जाते।’

एक प्रमुख मुस्लिम नेता कहते हैं, ‘थे तो हिंदू-मुसलमानों की एकता के लिए खलनायक लेकिन गजब के जज्बे वाले थे। जो ठान लिया वह करके माने।’ इस सवाल पर कि तोगड़िया भी तो आग उगलते हैं, यह सज्जन जवाब देते हैं- ‘तोगड़िया हल्की बात करते हैं। गंभीर नहीं है।’ सिंहल हमारे कट्टर विरोधी थे लेकिन वह हल्की बात नहीं करते थे।

अशोक सिंहल की दिल्ली में अंत्येष्टि को लेकर भी यहां के लोगों में नाराजगी है। अयोध्या घूमने आए बस्ती के दीनानाथ चौरसिया जानना चाहते हैं कि जो शख्स जीवन भर अयोध्या का नाम लेकर जीता रहा हो उसकी दिल्ली में अंत्येष्टि करने का क्या तुक था?

हिंदुत्व का नाम लेकर राजनीति करने वाले अपने लोगों का सम्मान करना कब सीखेंगे। उनके पास खड़े एक सज्जन रामचंद्र परमहंस की समाधि की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं- देखो समाधि पर कुत्ते लोट रहे हैं। चौरसिया सिर झटकते हुए कहते हैं कि जब ये लोग परहंस और सिंहल के नहीं हुए तो हिंदुओं के क्या होंगे।

सिंहल जैसा शख्स मिलना मुश्किल
कारसेवकपुरम हो या सरयू तट, सिंहल के बिना अयोध्या की चर्चा यहां भी अधूरी है। शिवनारायण कहते हैं- निधन के बाद परमहंस की कमी इसलिए ज्यादा नहीं खली क्योंकि तब सिंहल मौजूद थे। भरोसा था कि कोई ऐसा व्यक्ति है जो मंदिर के बहाने भले ही भाजपा को फायदा पहुंचाना चाह रहा हो लेकिन हिंदुओं के लिए ईमानदारी से लड़ने वाला है।

कई लोग शिवनारायण की हां में हां मिलाते हुए कहते हैं- अब ऐसी क्षमता वाला शख्स वह भी अयोध्या से सरोकार रखने वाला मिलना मुश्किल होगा। आंजनेय सेवा संस्थान के एक व्यक्ति के अनुसार सिंहल ही नहीं, किसी की भी क्षतिपूर्ति पूरी तरह नहीं हो सकती।

 

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