
25,000 कुण्डीय महायज्ञ : दिव्यता से आलोकित काशी, आस्था का अनुपम महोत्सव
एक लाख दीपों का दीप -सागर : संस्कृति, करुणा और कर्तव्य का संदेश, वैदिक ध्वनि, दीप – सागर और योग – यज्ञ के संगम का अद्भुत दृश्य, भक्ति, कला और संस्कृति का समवेत संगम, धाम से उठी दिव्यता की धारा, पूरे काशी में फैल गई
–सुरेश गांधी
वाराणसी : स्वर्वेद महामंदिर धाम की पवित्र भूमि पर बुधवार को जो दृश्य उभरा, वह केवल आध्यात्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा – यज्ञ का विराट पुनर्जागरण था। 25,000 यज्ञ – कुण्डों की प्रज्वलित ज्वालाओं के बीच उठती वैदिक मंत्रों की अनुगूँज, लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति और समष्टि कल्याण की सामूहिक भावना, सब कुछ मिलकर एक ऐसा वातावरण रच रहे थे, जिसे शब्दों में बांधना कठिन है। यह केवल आयोजन नहीं, सनातन ज्ञान की प्राचीन परंपरा का पुनः प्राण – प्रतिष्ठान था।
सायं पांच बजे का दृश्य तो और भी अद्भुत था। जब एक लाख दीपों की पंक्तियाँ एक साथ प्रज्वलित हुईं, तो स्वर्वेद महामंदिर धाम अलौकिक प्रकाशदृमंडल में बदल गया। हर दीप अपने भीतर तीन संदेश सँजोए था, गौ – सेवा का प्रकाश. गुरुकुल – संरक्षण की करुणा, राष्ट्र – प्रहरियों के सम्मान का तेज. काशी का आकाश उस क्षण दिव्यतम आलोक से भर उठा। सांस्कृतिक संध्या ने तो वातावरण में भक्ति – रस का अमृत भर दिया, भजनों की मधुर धुन, लोकनृत्य की सहजता, और कत्थक की गरिमा, इन सबने मानो काशी की पारंपरिक संस्कृति को आज और भी जीवंत कर दिया।

स्वर्वेद महामंदिर धाम में सम्पन्न यह महायज्ञ केवल एक दिन का आयोजन नहीं रहा, यह भारतीय संस्कृति की आत्मा यज्ञ को पुनः जनदृजन में प्रज्ज्वलित करने वाला दिव्य पर्व बन गया। इसकी पवित्रता और दिव्यता केवल परिसर तक सीमित न रही, पूरी काशी में आध्यात्मिक सुगंध, निर्मलता और शांतिमय ऊर्जा का प्रसार करती हुई फैल गई।
यज्ञ सनातन संस्कृति की आत्मा है : संत प्रवर विज्ञान देवजी
यज्ञानुरागियों के विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए महाराज श्री की वाणी आज मानो वैदिक काल की पुनरावृत्ति कर रही थी। उन्होंने कहा यज्ञ श्रेष्ठतम शुभ कर्म है। यज्ञ का अर्थ है त्याग भावना। अग्नि की ज्वाला सदैव ऊपर उठती है, उसे झुकाया नहीं जा सकता। हमारा जीवन भी इसी ऊर्ध्वगामी पथ का पथिक बने। महाराज श्री ने यज्ञ के वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और सामाजिक स्वरूप को सरल भाषा में समझाते हुए बताया कि अंतःकरण में ज्ञान की अग्नि, शरीर में कर्म की अग्नि, इन्द्रियों में तप की अग्नि, और विचारों में सद्भाव की अग्नि निरंतर प्रज्वलित रहनी चाहिए। यज्ञ केवल आहुति नहीं, बल्कि अहंकार, लोभ, ईर्ष्या और अशुद्धियों का समर्पण है, अपने भीतर की दुर्बलताओं को अग्नि को सौंप देने का पवित्र साहस।

ग्लोबल वॉर्मिंग पर वैदिक समाधान
संत प्रवर श्री ने आधुनिक समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में एक, ग्लोबल वॉर्मिंगकृका उल्लेख करते हुए कहा कि यज्ञ पर्यावरण रक्षा का सशक्त और प्रमाणिक वैदिक उपाय है। वैज्ञानिकों और पर्यावरण चिंतकों को इस दिशा में गंभीर अध्ययन करना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि यज्ञ का धुआँ आयुर्वेदिक जड़ीदृबूटियों का दिव्य धूम्र है, जो वातावरण को शुद्ध करता है, प्रदूषित नहीं।
25,000 कुण्डों में सामूहिक आहुतियां, आस्था का महाज्योति पर्व
वेददृमंत्रों की लयबद्ध धारा के बीच लाखों दंपत्तियों ने एक साथ भौतिक व आध्यात्मिक कल्याण हेतु आहुति प्रदान की। मानो हर कुण्ड में एक-एक परिवार का सपन, विश्वास और संकल्प प्रज्वलित हो रहा था। यज्ञ के उपरांत सद्गुरु देव व संत प्रवर श्री के दर्शन हेतु जनसैलाब उमड़ पड़ा, जिसने पूरे धाम को आस्था के सतत प्रवाह में परिणत कर दिया।

स्वर्वेद चेतन प्रकाश है : संत प्रवरश्री की अमृतवाणी
जय स्वर्वेद कथा के दौरान संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज ने कहा स्वर्वेद ज्ञान का वह प्रकाश है, जिसके आलोक में अविद्या, भ्रम और अंधकार नष्ट होते हैं। स्वर्वेद हमारी चेतना को सदैव जागृत रखता है। उनकी वाणी ने लाखों भक्तों के हृदय में विनम्रता, आत्म – जागृति और शांति का संचार किया।
योग को केवल आसन तक सीमित न करें : आचार्य स्वतंत्रदेव
अंत में सद्गुरु आचार्य श्री स्वतंत्र देव जी महाराज ने योग के मूल स्वरूप को स्पष्ट करते हुए कहा, आज योग विश्व – विख्यात है, पर इसे केवल आसन – प्राणायाम तक सीमित कर दिया गया है। योग का वास्तविक मार्ग आत्मज्ञान और परमात्मज्ञान की अंतर-साधना है। उन्होंने कहा, “विहंगम योग संपूर्ण योग है, जहाँ शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक चारों स्तरों का उत्कर्ष संभव है।”



