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26 फरवरी को कैसे हुआ था सीता का जन्म, जानें पौराणिक कथा


रामायण में माता सीता को जानकी कहकर भी संबोधित किया गया है। देवी सीता मिथिला के राजा जनक की पुत्री थीं इसलिए उन्हें जानकी भी कहा जाता है। माता सीता को लक्ष्मी का अवतार माना जाता है जिनका विवाह अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र और स्वंय भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीराम से हुआ था। विवाह के उपरांत माता सीता को भगवान राम के साथ 14 साल का वनवास झेलना पड़ा। हालांकि माता सीता के जन्म को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित है। जिसके अनुसार कहा जाता है कि देवी सीता राजा जनक की गोद ली हुई पुत्री थीं जबकि कहीं-कहीं इस बात का जिक्र भी मिलता है कि माता सीता लंकापति रावण की पुत्री थीं। वाल्मिकी रामायण के अनुसार एक बार मिथिला में पड़े भयंकर सूखे से राजा जनक बेहद परेशान हो गए थे, तब इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उन्हें एक ऋषि ने यज्ञ करने और धरती पर हल चलाने का सुझाव दिया। ऋषि के सुझाव पर राजा जनक ने यज्ञ करवाया और उसके बाद राजा जनक धरती जोतने लगे। तभी उन्हें धरती में से सोने की खूबसूरत संदूक में एक सुंदर कन्या मिली। राजा जनक की कोई संतान नहीं थी, इसलिए उस कन्या को हाथों में लेकर उन्हें पिता प्रेम की अनुभूति हुई। राजा जनक ने उस कन्या को सीता नाम दिया और उसे अपनी पुत्री के रूप में अपना लिया।


पौराणिक कथा 2 : माता सीता के जन्म से जुड़ी एक और कथा प्रचलित है जिसके अनुसार कहा जाता है कि माता सीता लंकापति रावण और मंदोदरी की पुत्री थी। इस कथा के अनुसार सीता जी वेदवती नाम की एक स्त्री का पुनर्जन्म थी। वेदवती विष्णु जी की परमभक्त थी और वह उन्हें पति के रूप में पाना चाहती थी। इसलिए भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए वेदवती ने कठोर तपस्या की। कहा जाता है कि एक दिन रावण वहां से निकल रहा था जहां वेदवती तपस्या कर रही थीं और वेदवती की सुंदरता को देखकर रावण उस पर मोहित हो गया। रावण ने वेदवती को अपने साथ चलने के लिए कहा लेकिन वेदवती ने साथ जाने से इंकार कर दिया। वेदवती के मना करने पर रावण को क्रोध आ गया और उसने वेदवती के साथ दुर्व्यवहार करना चाहा। रावण के स्पर्श करते ही वेदवती ने खुद को भस्म कर लिया और रावण को श्राप दिया कि वह रावण की पुत्री के रूप में जन्म लेंगी और उसकी मृत्यु का कारण बनेगी। कुछ समय बाद मंदोदरी ने एक कन्या को जन्म दिया। लेकिन वेदवती के श्राप से भयभीत रावण ने जन्म लेते ही उस कन्या को सागर में फेंक दिया। जिसके बाद सागर की देवी वरुणी ने उस कन्या को धरती की देवी पृथ्वी को सौंप दिया और पृथ्वी ने उस कन्या को राजा जनक और माता सुनैना को सौंपा। इसके बाद राजा जनक ने सीता का पालन पोषण किया और उनका विवाह श्रीराम के साथ संपन्न कराया। फिर वनवास के दौरान रावण ने सीता का अपहरण किया जिसके कारण श्रीराम ने रावण का वध किया और इस तरह से सीता रावण के वध का कारण बनीं।

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