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3 नवम्बर को मोक्ष प्राप्ति के लिए करें रमा एकादशी व्रत, पूजन से दूर होते हैं ब्रह्महत्या जैसे पाप

ज्योतिष डेस्क : रमा एकादशी को रम्भा एकादशी भी कहते हैं। इस बार रमा एकादशी दीपावली के ठीक चार दिन पहले 3 नवम्बर को पड़ रहा है। 3 नवंबर को सुबह 5 बजकर 9 मिनट पर रमा एकादशी प्रारम्भ होगी और 4 को 3 बजकर 14 मिनट तक रहेगी। रमा एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इस दिन भगवान विष्ण की पूजा की जाती है। क्योंकि उन्हें एकादशी बहुत प्रिय है। माना जाता है की रमा एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को जीवन में कभी धन की कमी नहीं होती। इस दिन विष्णु जी की पूजा करने से मन प्रसन्न रहता है और सच्चे मन से की कई पूजा से यदि श्री हरि प्रसन्न हो जाते हैं इस साल यह एकादशी 3 नवंबर को है। इस व्रत के प्रभाव से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, यहां तक कि ब्रह्महत्या जैसे महापाप भी दूर होते हैं। सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए यह व्रत सुख और सौभाग्यप्रद माना गया है। शास्त्रों के अनुसार रमा एकादशी का व्रत करने से मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही सौभाग्य, समृद्धि की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति रमा एकादशी के दिन व्रत करता है उसके सभी पाप धुल जाते हैं, उसके रास्ते में आर्इ सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं और वो आध्यात्मिक रूप से मोक्ष को प्राप्त करता है। मोक्षदायिनी रमा एकादशी सनातन धर्म में भगवान विष्णु के लिए किए जाने वाले एकादशी व्रत का पालन व्यक्ति को धर्म, अर्थ, काम, तथा मोक्ष चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति देता है। दीपावली से चार दिन पहले मनाई जाने वाला रमा एकादशी पर्व अपने आप में बहुत खास है। इस एकादशी में मूल रूप से महालक्ष्मी के रमा स्वरूप के साथ ही भगवान विष्णु के आठवें पूर्णावतार श्रीकृष्ण के केशव स्वरूप के पूजन का विधान है। देवराज इंद्र द्वारा रचित महालक्ष्मी अष्टक स्रोत के अनुसार देवी का ‘रमा’ नाम देवी लक्ष्मी के एकादश प्रिय नामों में से एक है।


पूजा करने के लिए 10 बातों का रखें ध्यान
– सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद सूर्य पूजा के लिए तांबे की थाली और तांबे का लोटा लें। किसी ऐसे स्थान पर जाएं जहां से सूर्य देव आसानी दिख रहे हैं।
– लोटे में साफ जल भरें और थाली में लाल चंदन, लाल फूल, चावल, प्रसाद के लिए गुड़ और अन्य पूजन सामग्री रखें। एक दीपक रखें।
– लोटे में जल के साथ एक चुटकी लाल चंदन पाउडर मिला लें। लोटे में लाल फूल भी डाल लें। थाली में दीपक जलाएं और लोटा रख लें। थाली नीचे जमीन पर रखें।
– इसके बाद ऊं सूर्याय नमः मंत्र का जाप करते हुए सूर्यदेव को प्रणाम करें।
– लोटे से सूर्य देवता को जल चढ़ाएं। सूर्य मंत्र का जाप करते रहें। इस प्रकार से सूर्य को जल चढ़ाना सूर्य को अर्घ्य देना कहलाता है।
– अर्घ समर्पित करते समय लोटे से गिरने वाली जल की धारा से सूर्य को देखें।
– सूर्य को अर्घ्य देने के बाद सूर्य देव की आरती करें। गुड़ का प्रसाद चढ़ाएं।

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