3 पूर्व विदेश सचिवों की चेतावनी, कहा-कच्चातिवु द्वीप को सियासी अखाड़ा न बनाएं पार्टियां
नई दिल्ली: देश के तीन पूर्व विदेश सचिवों ने कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को दिए जाने के मामले में सियासत न करने की चेतावनी देते हुए कहा है कि इसके गंभीर परिणाम निकल सकते हैं। 285 एकड़ में फैला यह द्वीप रामेश्वरम से 20 कि.मी. दूर है। दरअसल डी.एम.के. ने इस पूरे मामले में राजनीति की शुरुआत की है। पार्टी के 2024 के चुनाव घोषणा पत्र में डी.एम.के. ने आरोप लगाया कि भाजपा की केंद्र सरकार 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा श्रीलंका को दिए गए द्वीप को वापस लेने में नाकाम रही है।
समझौतों का करना चाहिए सम्मान
चुनावी मौसम के बीच यह मुद्दा राजनीति का अखाड़ा बना हुआ है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने राजनीतिक दलों को इस मामले को तूल न देने की चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि भारत के राजनीतिक दलों द्वारा इस मामले को तूल देना सैल्फ गोल करने के बराबर है। श्रीलंका में भारत की राजदूत रह चुकी पूर्व विदेश सचिव निरुपमा राव ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समझौतों की अपनी एक मर्यादा होती है और एक सरकार द्वारा देश के हित में किए गए समझौतों का आने वाली सरकारों को सम्मान करना चाहिए। यदि भारत एकतरफा तरीके से इन समझौतों को निरस्त करता है तो उसकी छवि को नुकसान पहुंचता है।
लीज पर लेना चाहिए द्वीप के साथ लगता इलाका
राव ने कहा कि इस द्वीप को वापस लेने की बजाय द्वीप के साथ-साथ इसके साथ लगता समुद्री इलाका भी लीज पर ले लिया जाना चाहिए। तमिलनाडु की राजनीति को नजदीक से देखने वाले राजनीतिक विश्लेषक जी.सी. शेखर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कभी भी यह नहीं कहा कि उनकी सरकार यह टापू श्रीलंका से वापस लेगी। पूर्व अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी सुप्रीम कोर्ट में कह चुके हैं कि यदि श्रीलंका से यह टापू वापस लेना है तो उसके खिलाफ जंग छेड़नी पड़ेगी। उन्होंने इस मामले को डी.एम.के. द्वारा तूल दिए जाने के पीछे उनकी मंशा पर भी सवाल उठाए हैं।