देहरादून : उत्तराखंड की खुद की आर्थिक सेहत खतरे में है। इसके सुधार के लिए उत्तराखंड ने 15 वें वित्त आयोग से 35 हजार करोड़ रुपये की मांग की है। बड़े और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पर्वतीय भू-भाग में पलायन को रोकना चुनौतीपूर्ण बन गया है। मैदानी जिलों के चमकदार आर्थिक आंकड़ों के तले दबी सामाजिक-आर्थिक असमानता ने दुर्गम और दूरदराज सीमांत क्षेत्रों में आजीविका और रोजगार का संकट खड़ा कर दिया है। पर्यावरणीय बंदिशें ऊर्जा प्रदेश के ख्वाब को पलीता लगा चुकी हैं। सवा करोड़ आबादी की ओर बढ़ रहे उत्तराखंड के मुंहबाए खड़ी समस्याओं के समाधान को 15वें वित्त आयोग को तीसरा मेमोरंडम भेजा गया है। इसमें उत्तराखंड को पर्यटन प्रदेश के तौर पर विकसित करने समेत शहरी और ग्रामीण अवस्थापना सुविधाओं के विकास के लिए 35 हजार करोड़ की मदद की गुहार लगाई गई है। अलग उत्तराखंड राज्य बनने के बावजूद दूरस्थ व दुर्गम क्षेत्रों में स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, पानी, सड़क नेटवर्क की हालत लचर ही है।
राजस्व घाटे से जूझ रहे राज्य के लिए अपने वित्तीय संसाधनों के बूते अवस्थापना सुविधाओं का विस्तार परेशानी का सबब बना है। हिमालय, वन, जंगल, जैव विविधता के रूप में उत्तराखंड के पास मौजूद इको सिस्टम सर्विसेज उसके खुद के विकास के आड़े आ गया है। नतीजतन प्रदेश अपने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग नहीं कर पा रहा है। ऐसे में राज्य सरकार ने 15वें वित्त आयोग के पास मेमोरंडम-तीन भेजा है। साथ ही पर्यटन के लिए 24 हजार करोड़ और सौंग व जमरानी बांध के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट 4000 करोड़ के अलग-अलग मेमोरंडम भी भेजे गए हैं। मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने उत्तराखंड की विशेष परिस्थितियों को देखते हुए आयोग से राज्य की समस्याओं के समाधान के लिए पुरजोर पैरवी की है।
अहम प्रस्ताव
स्वास्थ्य: टेलीमेडिसिन व अन्य सुविधाओं को 300 करोड़ शहरी विकास। बुनियादी अवस्थापना सुविधाओं के निर्माण को 1200 करोड़।
ऊर्जाः बिजली वितरण व्यवस्था सुधार को 1200 करोड़।
पर्यटनः टिहरी झील के विकास को 4000 करोड़।
सिंचाई-पेयजलः सौंग व जमरानी बांध प्रोजेक्ट को 4000 करोड़।
वनः आग से रोकथाम के प्रबंधन को 300 करोड़ उद्यान: उद्यानों के आधुनिकीकरण को 400 करोड़।
पशुपालन: 150 करोड़।