एजेन्सी/उज्जैन। भारतीय ज्योतिष शास्त्र तथा नक्षत्र मेखला की गणनानुसार देखा जाए तो लगभग 12 वर्षों बाद सिंहस्थ महाकुंभ का आयोजन होता है। सिंहस्थ की दृष्टि से देखें तो सिंह राशि के बृहस्पति तथा मेष राशि के सूर्य की साक्षी में सिंहस्थ महापर्व का आयोजन होता है।
गणना तथा तिथि सिद्धांत के अनुसार देखा जाए तो बृहस्पति की एक राशि में परिभ्रमण की स्थिति 361 दिन की होती है। इसके अनुसार सिंहस्थ महापर्व 12 वर्ष में अपनी परिक्रमा का बृहस्पति का अनुक्रम समाप्त होता है।
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डिब्बावाला ने बताया कि पंचांग के अनुसार सिंहस्थ में वार, तिथि, योग, नक्षत्र, करण इन पांच अंगों का विशेष महत्व है। सिंहस्थ महापर्व पर सभी दिव्य संयोग पंचांग के पांच अंगों से आगे बढ़ते हैं।
जैसे- चैत्र मास की पूर्णिमा से लेकर वैशाख पूर्णिमा तक सिंहस्थ का आयोजन एक माह का माना गया है, किंतु इसमें भी विशेष तिथि तथा योग एवं नक्षत्र पर बल दिया जाता है।
देवी-देवताओं से परिपूर्ण है भूमि
उज्जैन की भूमि देवी-देवताओं से परिपूर्ण है। यहां उत्तर वाहिनी शिप्रा, दक्षिणेश्वर ज्योतिर्लिंग श्रीमहाकाल, दक्षिणेश्वरी महाकाली हरसिद्धि, दक्षिणी तंत्र प्रधान अष्ट महाभैरव, अष्टविनायक श्रीगणेश सहित नवनाथ, तंत्रसिद्ध स्थली, ओखरेश्वर, महाशक्तिभेद, श्मशान तीर्थ, चक्रतीर्थ, चौरासी महादेव, नवनारायण आदि विशेष देव तथा देवियों से परिपूर्ण है उज्जयिनी।
3 बिंदुओं का मिलन, जीरो रेखांश से संबंधित
यहां दो प्रकार के मत हैं। पहला शिप्रा के तट पर बसी उज्जयिनी, जो मोक्षदायिनी शिप्रा के नाम से जानी जाती है। दूसरा महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, जिसका शिव महापुराण में उल्लेख है। महाकालेश्वर ने अघोर पंथ के तीन बिंदुओं का समायोजन उज्जयिनी के जीरो रेखांश से संबंधित बताया है।