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नई दिल्ली । दिल्ली में शुक्रवार को एक नाटकीय घटनाक्रम में मात्र 49 दिनों पूर्व 28 दिसंबर को गठित आम आदमी पार्टी (आप) की अल्पमत सरकार के कार्यकाल का पटाक्षेप हो गया। 7० सदस्यीय विधानसभा में 27 के मुकाबले 42 मतों से जन लोकपाल विधेयक पेश नहीं होने के कारण यह तय माना जा रहा था कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस्तीफा दे देंगे। केजरीवाल ने कहा है कि वे राष्ट्रीय राजधानी में नए सिरे से चुनाव कराने की मांग करेंगे। विधानसभा से निकलने के बाद केजरीवाल ने अपने मंत्रिमंडल की अंतिम बैठक की और आप मुख्यालय पर यह घोषणा की। उधर शुक्रवार की कार्यवाही के बाद दिल्ली विधानसभा का सत्र अनिश्चितकाल तक के लिए स्थगित कर दिया गया। सत्रावसान की घोषणा से पहले सरकार ने आवश्यक खर्चों के लिए दो मूल्यावधारण विधेयक (एप्रीसिएशन बिल) पेश किया जिसे विधानसभा ने पारित कर दिया। केजरीवाल ने गुरुवार को ही कहा था कि यदि विधानसभा में जन लोकपाल विधेयक पारित नहीं हो पाया तो वे इस्तीफा दे देंगे। शुक्रवार को मुख्यमंत्री केजरीवाल ने हंगामे के बीच जन लोकपाल विधेयक पेश किया जिसके बाद सदन में शोर-शराबा बढ़ गया। विपक्ष के नेता हर्षवर्धन और समर्थन दे रही कांग्रेस के नेता अरविंदर सिंह लवली सहित कई विधायकों ने विधेयक पेश किए जाने का विरोध किया और विधानसभा अध्यक्ष एम. एस. धीर पर दबाव बनाया। विरोध कर रहे सदस्यों ने विधानसभा अध्यक्ष से कहा कि उपराज्यपाल ने विधानसभा को भेजे गए पत्र में कहा है कि जन लोकपाल पर उनकी सहमति नहीं है इसलिए इसे सदन में पेश नहीं किया जाए। चूंकि यह विधेयक संविधान के विरुद्ध है इसलिए इसे पेश नहीं किया जा सकता। विरोध में सदस्यों की संख्या अधिक देख विधानसभा अध्यक्ष एम. एस. धीर ने व्यवस्था दी कि आप सरकार द्वारा लाया गया जन लोकपाल विधेयक सदन में पेश नहीं हुआ क्योंकि अधिकांश विधायक इसके खिलाफ हैं। उन्होंने कहा ‘‘विधेयक पेश किए जाने के विरोध में 42 सदस्य हैं जबकि आम आदमी पार्टी के 27 सदस्य इसके समर्थन में हैं।’’ इससे पहले शोरगुल के बीच मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा में विधेयक पेश किया जिसका तीखा विरोध शुरू हो गया। हंगामे के कारण कुछ देर के लिए कार्यवाही स्थगित हुई और उसी दौरान दिल्ली के कानून मंत्री सोमनाथ भारती ने कहा कि विधेयक पेश हो गया है और सरकार इस पर चर्चा का स्वागत करेगी। कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही उपराज्यपाल नजीब जंग की दिल्ली विधानसभा को भेजी गई सलाह का हवाला देते हुए विधेयक को पेश किए जाने का विरोध किया। उपराज्यपाल ने अपने पत्र में विधेयक को पेश नहीं करने की सलाह दी थी क्योंकि सरकार ने इसके लिए अनिवार्य पूर्व अनुमति का पालन नहीं किया था।