मनोरंजन
50 की उम्र में ‘प्रेग्नेंट’ हुईं इस एक्ट्रेस ने निकाला अपना गुस्सा

नीना गुप्ता हिंदी फिल्मों के इतिहास की संभवत: पहली और आखिरी अभिनेत्री हैं, जिन्होंने संस्कृत में एम.ए, एम.फिल की पढ़ाई की। वह रंगमंच से सिनेमा में आईं और खूब साहित्य पढ़ा। बधाई हो के लिए इन दिनों वह सुर्खियों में हैं। 60 के करीब उम्र में भी उन्हें अपने लिए बेहतरीन भूमिकाओं की तलाश है…
फिल्म बधाई हो से बॉलीवुड में जबरदस्त वापसी करने वालीं अभिनेत्री नीना गुप्ता इन दिनों फिर सुर्खियों में हैं। 50 पार की उम्र में गर्भवती की भूमिका निभाने वालीं नीना के रोल की सराहना तो हो ही रही है, फिल्म के बारे में भी बॉलीवुड के दिग्गज मान रहे हैं कि इसे खूब जमा कर लिखा गया है। फिल्म के निर्देशक अमित शर्मा बता चुके हैं कि उन्होंने अपने राइटरों की टीम के साथ मिलकर करीब डेढ़ साल में इसे लिखा। इस बात की इंडस्ट्री में खूब चर्चा हो रही है।

एक दौर में हिंदी फिल्मों में साहित्य रचने वाले लेखक जुड़ा करते थे लेकिन अब ऐसा नहीं हैं। खूब फिल्में बन रही हैं परंतु ज्यादातर खराब स्क्रिप्ट की वजह से वहीं बैठ जाती हैं। आखिर क्या हुआ फिल्मी दुनिया के राइटरों को? अमर उजाला से विशेष बातचीत में नीना ने कहा, ‘मनोरंजन की दुनिया के राइटरों को टीवी ने मार दिया। टीवी में आपको धड़ाधड़ लिखना पड़ता है। पैसा आता है। मुझे लगता है कि गंभीर विचारों वाली राइटिंग अब खत्म हो चुकी है। कोई राइटर अगर एक बार टीवी पर लिखने लगे तो समझिए कि वह खत्म हो गया।’
यह पूछने पर कि दूरदर्शन के दौर में टीवी पर भी अच्छे लेखक थे और संवेदनशील-तार्किक-मनोरंजनक चीजें लिखी जाती थीं। अच्छे सीरियल भी आते थे। इस पर उन्होंने कहा- ‘मैं उस दौर में काम कर रही थी और तब सीरियल साप्ताहिक हुआ करते थे। अब तो डेली सोप हो गए हैं। यह किसी पागलपन की तरह है।’ नीना गुप्ता कहती हैं कि वह समझ नहीं पाती हैं कि हिंदी में लिखने वाले लेखक/साहित्यकार ज्यादातर मनोरंजक चीजों के लेखन से दूर क्यों रहते हैं? वह मानती हैं कि हिंदी का थियेटर भी कमजोर है। इसके पास दर्शक भी नहीं हैं। जबकि गुजराती-मराठी में दर्शक भी हैं और यहां का रंगमंच भी समृद्ध है। अच्छे-अच्छे नाटक हैं। हिंदी अच्छे नाटकों का अकाल है।
नीना गुप्ता ने ने कहा कि हिंदी में नए अच्छे नाटक आए ही नहीं। पुरानी चीजें ही बार-बार दोहराई जाती हैं। अभी तक लोग मोहन राकेश के नाटक ही किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि पूरा समाज ईजी-मनी की तरफ जा रहा है। सबको जल्दी-जल्दी पैसा कमाना है। अत: लेखक भी वैसा ही कर रहे हैं। नीना बताती हैं कि ‘बीए में मैंने पास कोर्स किया था। उस वक्त एक विषय संस्कृत था। वह इसलिए लिया था कि उसमें नंबर अच्छे आते हैं। तब मैं हॉकी खेला करती थी। कॉलेज पॉलिटक्स में भी थी तो लगता था कि एक आसान विषय ले लो। मेरे विषय थे राजनीति शास्त्र, हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी मेरे विषय थे। फिर मुझे संस्कृत में मजा आने लगा। कालिदास में मजा आने लगा।’
नीना ने आगे कहा कि ‘यह इतना अच्छा लगा कि मैं इसी में एमए करूं। तब मेरे सामने राज खुला कि जब मैं मां के गर्भ में थी, उस समय वह संस्कृत में एमए कर रही थीं। वह उस समय डबल एमए थीं। पॉलिटिकल साइंस और संस्कृत में। संस्कृत के साथ मुझे ड्रामा का शौक था तो स्कूल ऑफ ड्रामा भी किया। मैं ड्रामा और संस्कृत को मिलाकर पढ़ना चाहती थी तो मैंने एमफिल का विषय लिया: स्टेज टेक्निक्स इन संस्कृत ड्रामा-थ्योरी एंड प्रैक्टिस। मैं आगे भी बढ़ना चाहती थी परंतु तब तक एनएसडी से पास होने पर फिल्म मिल गई, आधारशिला। वह मेरी पहली फिल्म थी। इसके के बाद मैं रंगमंच और फिल्मों में ही आगे बढ़ती गई।’