5800 वर्ग किमी क्षेत्रफल के आइसबर्ग के दक्षिणी ध्रुव से टूटने से बढ़ा खतरा
दो वर्ष पूर्व प्रो. भरतराज सिंह ने अपनी पुस्तक में जताई थी इसकी आशंका
यदि पूरी पिघल गयी चट्टान की बर्फ तो 10 इंच बढ़ जाएगा समुद्र का जलस्तर
समुद्री जहाजों के टकराने की आशंका, कहीं भी हो सकती है बड़ी दुर्घटना
-डी.एन. वर्मा
विगत 10-12 जुलाई 2017 के बीच दक्षिणी ध्रुव के पश्चिमी छोर से एक आइसबर्ग जिसका क्षेत्रफल 5800 वर्ग-किलोमीटर और अनुमानित मोटाई 350 मीटर है, टूटकर अलग हो गया। इस आइसबर्ग का वजन एक खरब टन तथा इसकी अलग होकर समुद्र में चलने की रफ़्तार लगभग 325 किलोमीटर प्रतिघंटे आंकी गयी है। इससे यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि यदि इस चट्टान की बर्फ पूर्णतः पिघल जाएगी तो समुद्र के जलस्तर में लगभग 10 इंच की बढ़ोत्तरी हो जाएगी। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि इससे समुद्री जहाजों के टकराने का भी बहुत बड़ा खतरा बना हुआ है और छोटे द्वीपों के डूबने से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। इसका क्षेत्रफल गोवा से डेढ़ गुना, दिल्ली शहर से 4 गुना और अमेरिका के न्यूयॉर्क से 7 गुना के बराबर है।
स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट साइंसेज, लखनऊ के महानिदेशक (तकनीकी) प्रो. भरत राज सिंह का कहना है कि इस टूटे आइसबर्ग के किसी अन्य द्वीप के साथ टक्कर होने पर एक तरफ जहां उसके जलप्लावन से डूबने का खतरा है, वही दूसरी तरफ उस द्वीप के सभी जीव-जंतुओ, पेड़-पौधे और विकास की सभी सुविधाओं के समाप्त होने से भी नाकारा नहीं जा सकता है। यह प्रक्रिया इतनी भयावह हो सकती है कि इसके बारे में सोचना मुश्किल है। प्रो. सिंह यह भी बताते हैं कि इस आधुनिक युग में, जब हम सभी चीजों को अपनी खोज से पूर्वानुमान लगा लेते है, तब भी विश्व के सभी जनमानस को कुछ विकसित देश और कुछ विकासशील देश क्यों गुमराह कर रहे है। किसको अब यह जानकारी नहीं है कि विगत एक या डेढ़ शताब्दी में पृथ्वी पर हुई अप्रत्याशित जनसंख्या वृद्धि व असामान्य विकास की दरें इसके मुख्य कारक हैं जो पृथ्वी से खनिजों, तेल भण्डार और कोयले का अनाप-शनाप दोहन से उत्पन्न किया गया। प्रकृति से भी तरह-तरह से छेड़छाड़ की गयी जिसमें पेड़ों व जंगलों की कटान, वाहनों के अप्रत्याशित उपयोग और इंडस्ट्रीज का अंधाधुन्द बढ़ावा आदि ही वैश्विक तामपान के वृद्धि में मुख्य कारक पाए गए हैं।
उक्त घटना के पूर्व ही प्रो. भरत राज सिंह की किताब ग्लोबल वार्मिंग: काजेज, इम्पैक्ट एंड रेमेडीज, जो क्रोशिया में अप्रैल 2015 में प्रकाशित हुयी है, में इस बात का उल्लेख किया गया था कि अंटार्तिका (दक्षिणी ध्रुव) के पाईन-आइसबर्ग के पक्षिमी क्षेत्र से एक विशाल दरार नासा के सेट-लाइट के चित्र से देखी गयी है। इस पर नासा के वैज्ञानिकों का मत था कि इस प्रकार की दरारें वर्फ के पुनर्जमाव से भर जाती हैं। परन्तु प्रो० भरत राज सिंह ने, प्रो. रिग्नोट के बात का समर्थन करते हुए उल्लेख किया था कि वर्फ के वर्तमान गलने की दर को देखते हुए कुछ वर्षाें या मात्र सौ वर्षाें के अंतराल में ऐसे स्थानों के ग्लेशियर, इतिहास में कहानी का भाग बन जाएंगे। हम इस समय ऐसी स्थिति से गुजर चुके हैं जिसे अपने पूर्व स्थान पर पुनः वापस पहुंचाना असम्भव है। अतः इस स्थान की ग्लेशियर जहां दरारें पड़ चुकी है, का टूटना निश्चित है। जो घटना मात्र दो-वर्षाे के अन्तराल पर घटित हो गयी, विश्व के किसी स्थान व समय में, किसी भयावह अथवा बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती है।