भारत में 10 में से 8 लोगों को नहीं पता कि अच्छा समरिटिन कानून-2016 क्या है। कई शहरों में किए गए एक सर्वे में इस बात का पता चला है। यह सर्वे नॉन प्रॉफिट एनजीओ सेवलाइफ ने किया है। बता दें अच्छा समरिटिन कानून नागरिकों को पुलिस और एजेंसी के उत्पीड़न के डर के बिना पीड़ितों को प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध कराने के लिए प्रेरित करता है।
दक्षिण के महानगरों में बहुत ही कम लोग इस कानून के बारे में जानते हैं। चेन्नई में 93 फीसदी लोगों ने कहा कि वह इस कानून के बारे में नहीं जानते। बंगलूरू में 82 फीसदी लोग इस बारे में नहीं जानते और हैदराबाद में 89 फीसदी लोगों को इस कानून की जानकारी नहीं है। वहीं दूसरी तरफ जिन लोगों को इस कानून के बारे में जानकारी है उसमें मध्य प्रदेश का इंदौर सबसे आगे है। यहां 29 फीसदी लोग अच्छा समरिटिन कानून के बारे में जानते हैं। जयपुर में 28 फीसदी लोगों को इस कानून की जानकारी है और दिल्ली में 21 फीसदी लोग इस कानून के बारे में जानते हैं।
सर्वे में ये भी पता चला है कि पीड़ितों की मदद करने के मामले में लोगों की सामान्य इच्छा का प्रतिशत भी बढ़ा है। यह साल 2013 में 26 फीसदी था जो साल 2018 में बढ़कर 88 फीसदी हो गया है। इस सर्वे में 3667 लोगों का इंटरव्यू लिया गया, जिसमें आम लोग, अच्छे समरिटिन, पुलिस अफसर, डॉक्टर, अस्पताल प्रशासन से जुड़े लोग और ट्रायल कोर्ट के वकील शामिल थे। वहीं जो लोग पीड़ितों की मदद करने के इच्छुक हैं, उनमें 29 फीसदी ऐसे हैं जो पीड़ित को अस्पताल पहुंचाने के इच्छुक होते हैं, 28 फीसदी लोग एंबुलेंस को फोन के इच्छुक होते हैं, 12 फीसदी लोग केवल पुलिस को ही फोन करने की बात कहते हैं।
कानून की 100 फीसदी अवज्ञा होती है
अच्छा समरिटिन कानून आमतौर पर उन लोगों के लिए बुनियादी कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है, जो घायल या खतरे में पड़ने वाले व्यक्ति की सहायता करते हैं। वहीं सर्वे में पता चला है कि इस कानून की 100 फीसदी अवज्ञा की जाती है। कानून कहता है कि अगर कोई आपात स्थिति में हो और उसकी मदद के लिए कोई व्यक्ति पुलिस को फोन करे तो पुलिस उससे उसकी पहचान बताने को नहीं कहेगी। व्यक्ति को उसकी पहचान और पता अस्पताल स्टाफ और पुलिस को नहीं बताना होगा। और यदि अच्छा समरिटिन किसी घटना का गवाह बनता है तो पुलिस अत्यधिक देखभाल के साथ उससे जांच में सहयोग के लिए पूछताछ आदि करेगी।
रिपोर्ट में ये भी पता चला है कि 59 फीसदी अच्छे समरिटिन को पुलिस के उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। अधिकतर पुलिसकर्मियों का कहना है कि वह अच्छे समरिटिन से उसकी निजी जानकारियां लेते हैं। 74 फीसदी पुलिसकर्मी और 87 फीसदी चिकित्सा पेशेवरों का कहना है कि कानून को लागू करने को लेकर उन्हें कोई ट्रेनिंग नहीं दी जाती है। सेवलाइफ के सीईओ का कहना है कि कानून के लागू होने के दो साल बाद भी लोगों को इसकी जानकारी नहीं है। इसी वजह से लोग मदद करने में हिचकिचाते हैं।
अगर लोगों को इस कानून की जानकारी होगी तो हजारों लोगों की जान बच सकती है, जो सड़क दुर्घटना का शिकार होते हैं। लोगों को अगर कानून की जानकारी होगी तो वह बिना पुलिस के उत्पीड़न से डरे लोगों की जिंदगी बचा पाएंगे। क्योंकि एंबुलेंस को भी बुलाना पड़ता है और उसे आने में भी समय लगता है। ऐसे में पीड़ितों की मदद करने से ही उनकी जान बच पाएगी।