नई दिल्ली : मरणोपरांत अभिनेता विनोद खन्ना को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पुरस्कार लेने आये विनोद खन्ना के बेटे अक्षय खन्ना ने ज्यूरी का आभार जताया। फिल्म ‘नगरकीर्तन’ के लिए रिद्धि सेन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के पुरस्कार के लिए चुना गया। राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में क्षेत्रीय फिल्मों का जलवा देखने को मिला है। एक रिपोर्ट उन क्षेत्रीय फ़िल्मों पर जो फ़िल्म पुरस्कारों में छा गई हैं। क्षेत्रीय फिल्मों के महत्व का बात इस बात से पता चलता है जब फीचर फिल्म के ज्यूरी के प्रमुख शेखर कपूर ने पुरस्कारों की घोषणा करने से पहले कहा था कि क्षेत्रीय सिनेमा की गुणवत्ता ने हमें स्तब्ध कर दिया है, ये विश्वस्तरीय है और अब क्षेत्रीय सिनेमा का टैग दूर करने का समय आ गया है। इस बार 65वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में मलयालम फिल्मों का जलवा रहा। मलयालम फिल्म भयानकम, थोंडिमुथलम द्रिकशाक्शियम और टेक ऑफ ने तीन-तीन पुरस्कार जीते। मलयालम फिल्म ‘भयानकम’ की कहानी द्वितीय विश्व युद्ध के वक्त की है। कुट्टाडू गांव पर आधारित फिल्म गांववालों की नजर से युद्ध की विभीषिका बयां करती है जहां से 650 लोग हुकूमते-ब्रितानिया के लिए जंग लड़ने गए थे। एक डाकिया के जिम्मे उन सैनिकों की मौत की खबरें गांववालों तक पहुंचाने का काम आता है, और फिल्म इसी केंद्रीय पात्र के द्वंदों व गांववालों द्वारा उसे अपशगुनी मानने के इर्द-गिर्द अपनी कहानी रचती है। इसी तरह दूसरी मलयालम फिल्म थोंडिमुथलम द्रिकशाक्शियम’ घरवालों की मर्जी के खिलाफ जाकर शादी करने वाले निम्नवर्गीय पति-पत्नी की कहानी है जिसमें कुछ वक्त बाद एक चोर मुख्य पात्र बन जाता है क्योंकि वो नायिका की सोने की चेन गले से निकाल कर पकड़े जाने से पहले निगल लेता है. उसे पकड़कर पास के ही पुलिस स्टेशन ले जाया जाता है, जहां वो चोरी करने की बात से ही इंकार कर देता है और वहां से फिल्म इतने दिलचस्प मोड़ लेती है कि दर्शकों को हैरान कर देती है। इसी तरह तीन राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली मलयालम फिल्म ‘टेक ऑफ’ में इस्लामिक स्टेट के नियंत्रण वाले वाले इराक में रहने वाली केरल की नर्सों की कहानी है। मुश्किल हालातों में हमेशा से जीने को मजबूर ये नर्सें जब और मुश्किल हालात में फंस जाती हैं, तब कैसे जिंदा रहने की कोशिशें करती हैं, इसी स्थिति को यथार्थवादी अंदाज में दिखाया गया है।