राष्ट्रीय

7 राज्य ,18 महीने, कांग्रेस-भाजपा में सेमीफाइनल

नई दिल्ली: बीते सप्ताह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राजग कैम्प में शामिल होने और महागठबंधन तोड़ कर राजग के समर्थन से दोबारा मुख्यमंत्री बनने से कांग्रेस को बिहार में गहरा झटका लगा है। बिहार में सियासी परिदृश्य बदलने से आगामी 18 महीनों के लिए कांग्रेस और भाजपा के बीच 7 राज्यों में सियासी लड़ाई शुरू हो गई है। इनमें 6 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। साथ ही पंजाब में एक लोकसभा सीट और 4 नगर निगमों के लिए चुनाव होने हैं । इस साल के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं तथा अगले साल अप्रैल महीने में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने हैं। वहीं राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी 2018 में विधानसभा चुनाव होने हैं। सियासी माहिर इन चुनावों को 2019 के लोकसभा चुनाव से पूर्व कांग्रेस और भाजपा के बीच सैमीफाइनल के तौर पर देख रहे हैं। जिन 6 विधानसभाओं के लिए आगामी 18 महीनों में चुनाव होने हैं उनमें 4 विधानसभाओं में भाजपा की सरकारें हैं और हरेक स्टेट के अपने मुद्दे हैं। इन राज्यों में कांग्रेस को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

कांग्रेस के मिशन रिपीट में कई चुनौतियां
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के मिशन रिपीट की राह आसान नहीं है। चुनावी वर्ष में सत्ता-संगठन की आपसी तकरार यहां लगातार बढ़ रही है। सत्ता-संगठन में आपसी लड़ाई का आलम यह है कि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ ही पार्टी का एक खेमा अंदरखाते मोर्चा खोल चुका है। इसके तहत सी.एम. को पद से हटाने के लिए 6 विधायकों द्वारा हाईकमान को पत्र लिखने की बात भी उजागर हो चुकी है। इसके साथ ही हाल ही में सामने आए गुडिय़ा प्रकरण, वन रक्षक होशियार सिंह मर्डर केस, चंबा के तीसा में नाबालिग युवती के साथ बलात्कार के बाद भड़की ङ्क्षहसा से भी कांग्रेस सरकार बैकफुट पर जाती नजर आ रही है। विपक्ष भी बिगड़ती कानून व्यवस्था पर सरकार को घेर रहा है। इसके साथ ही भ्रष्टाचार और माफिया राज के आरोप लगाते हुए भाजपा जनता के बीच जा रही है।

विकास के दम पर चुनावी मैदान में जाएगी सरकार
प्रदेश में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार की मानें तो साढ़े 4 साल में किए गए विकास कार्य के नाम पर वह चुनाव में जनता के बीच जाएगी। सरकार का दावा है कि उसने पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र को नीतिगत दस्तावेज बनाया है और अधिकतर वायदे पूरे किए हैं। इसके साथ ही सरकार ने साढ़े 4 साल में प्रदेश के हर वर्ग को राहत पहुंचाई है। लोगों की मांग के अनुरूप स्कूल, कालेज, सड़क निर्माण, पी.एच.सी., सी.एच.सी., मंडल और उपमंडल खोलने के साथ ही कई अन्य विकास कार्य किए हैं।

मोदी मंत्र के सहारे सत्ता की दहलीज तक पहुंचने में जुटी भाजपा
चुनावी वर्ष में भाजपा प्रदेश सरकार के खिलाफ आक्रामक हो चुकी है। हाल ही में परिवर्तन रथ यात्रा का आयोजन कर विपक्ष में बैठी भाजपा चुनावी शंखनाद कर चुकी है। परिवर्तन रथ यात्रा में केंद्रीय मंत्रियों सहित भाजपा शासित विभिन्न राज्य के मुख्यमंत्री यहां प्रचार कर पार्टी के पक्ष में चुनावी माहौल बनाने का प्रयास कर चुके हैं। सत्ता-संगठन में चल रही तकरार और अपनी ही पार्टी के नेताओं द्वारा मुख्यमंत्री को घेरे जाने से भाजपा को बैठे-बैठे एक ओर मुद्दा मिल चुका है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री के खिलाफ अदालत में चल रहे विभिन्न मामलों को भी विपक्ष चुनावी मुद्दा बना रहा है। प्रदेश में सत्ता में वापसी के लिए भाजपा के पास पी.एम. नरेंद्र मोदी जैसा चेहरा है, जिनके दम पर भाजपा ने लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव में वोट मांगे थे और सफलता हासिल की थी। भाजपा में कांग्रेस की अपेक्षा अंदरुनी लड़ाई कम है। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के अलावा केंंद्रीय मंत्री जे.पी. नड्डा को यहां मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा है।

सत्ता की दौड़ में 3 नाम
मध्य प्रदेश हमेशा से भाजपा का गढ़ रहा है। दिग्विजय सिंह को हराने के बाद भाजपा ने इस गढ़ को कभी कांग्रेस के हाथ में नहीं जाने दिया। सुंदरलाल पटवा, उमा भारती और अब शिवराज सिंह चौहान इन तीनों बड़े नेताओं ने भाजपा के गढ़ को मध्य प्रदेश में मजबूत किया है। उमा भारती की घर वापसी के बाद भाजपा मध्य प्रदेश में मजबूत हुई है लेकिन पिछले कुछ समय मेें किसान आंदोलन और प्याज के मुद्दे को लेकर सरकार की परेशानी बढ़ी है। किसान आंदोलन को कांग्रेस ने बड़ी प्रमुखता से उठाया है हालांकि भाजपा ने कांग्रेस नेताओं पर इस आंदोलन को हिंसक करने के आरोप लगाए हैं और कई कांग्रेस नेताओं पर मामले भी दर्ज किए हैं लेकिन इसके बावजूद किसानों की कर्जमाफी मध्य प्रदेश में बड़ा मुद्दा बनती जा रही है। किसानों की आत्महत्याओं के मामले प्रदेश में बढ़े हैं। ऐसी भी चर्चा है कि भाजपा का एक बड़ा गुट राज्य में नेतृत्व परिवर्तन करना चाहता है लेकिन केंद्रीय नेतृत्व अभी तक इसके लिए तैयार नहीं है। भाजपा को इस खतरे का आभास हो गया है इसलिए संघ अभी से भाजपा के इस गढ़ को बचाने में जुट गया है। कांग्रेस की तरफ से ज्योतिरादित्य सिंधिया मैदान में उतरे हैं। इन्हें राहुल गांधी का समर्थन प्राप्त है और यहां पर भी ज्योतिरादित्य सिंधिया को अगले मुख्यमंत्री के तौर पर देखा जा रहा है लेकिन दूसरे राज्यों की तरह यहां भी कांग्रेस मेें गुटबाजी है। एक बार तो कमलनाथ के पार्टी छोडऩे की बात सामने आई थी। ऐसी चर्चा थी कि वह भाजपा में शामिल हो सकते हैं लेकिन बाद में उन्होंने इस बात का खंडन किया। कांग्रेस के राहुल गांधी इस प्रयास में हैं कि किसी तरह युवाओं और पुराने नेताओं में समन्वय बनाकर मध्य प्रदेश किले को फतह किया जा सके। राज्य में दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ 3 बड़े नेता सत्ता की दौड़ में हैं।

लंबे समय से सत्ता से बाहर कांग्रेस, चुनौतियां भारी
गुजरात में 19 साल से कांग्रेस सत्ता से बाहर है। वर्तमान में गुजरात में भाजपा के मुख्यमंत्री हैं जबकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शंकर सिंह वाघेला गुजरात विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद से इस्तीफा देकर भाजपा का हाथ थाम चुके हैं। वाघेला ने अपना इस्तीफा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजते हुए आरोप लगाया कि वह सख्त फैसले के लिए बाध्य हुए क्योंकि पार्टी के कुछ नेता दिसम्बर में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले उनके खिलाफ साजिश कर रहे थे। यह पत्र मीडिया से सांझा किया गया। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता शंकर सिंह वाघेला ने कांग्रेस छोडऩे से पहले पार्टी रणनीति को लेकर हाईकमान पर सवाल उठाए और आंतरिक गुटबाजी के आरोप लगाए थे। सोनिया गांधी को सौंपे अपने इस्तीफे में वाघेला ने कहा कि अब तक उनके खिलाफ सोच-समझ कर साजिश होती रही थी। आगे उन्होंने पार्टी पर आरोप लगाए कि उन्होंने जो भी चुनावी रणनीति संबंधी सुझाव राहुल गांधी, अहमद पटेल और अशोक गहलोत को दिए उन्हें कभी सकरात्मक तौर पर नहीं लिया गया।

भाजपा का मजबूत होल्ड
वाघेला के कांग्रेस छोड़ जाने से कांग्रेस को कई महत्वपूर्ण सीटों पर विधानसभा चुनावों में जीत के लिए मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है। इन सीटों पर वाघेला की मजबूत पकड़ होने के कारण भाजपा का होल्ड मजबूत हो गया है। दूसरी तरफ गुजरात में भाजपा के लिए जीतना सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि आधी से ज्यादा सीटों पर निर्णायक भूमिका अदा करने वाले पाटीदार समुदाय भाजपा से नाराज हो सकता है। पाटीदार समुदाय के बड़े नेता हाॢदक पटेल ने भाजपा के लिए मोर्चा खोला हुआ है और उन्होंने घोषणा कर रखी है कि वह किसी भी दल में शामिल नहीं होंगे तथा उनका एकमात्र मकसद भाजपा को हराना है। कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी समस्या यह है कि शंकर सिंह वाघेला के पार्टी छोडऩे के बाद पार्टी गुटबाजी से उभर नहीं पाई है। दूसरा बड़ा कारण भाजपा का संगठन गुजरात में मजबूत है। सौराष्ट्र में पानी की समस्या दूर करने के कारण भाजपा ने अपना आधार मजबूत किया है। भाजपा हमेशा गुजरात में ङ्क्षहदू कार्ड खेलती रही है और इस बार फिर अपने इस किले को बचाने के लिए आर.एस.एस. के साथ मिलकर बूथ स्तर पर अपने आप को मजबूत कर रही है। गुजरात जो कि इस समय बाढ़ का सामना कर रहा है ऐसी स्थिति में कांग्रेस विधायकों का अहमद पटेल की राज्यसभा सीट बचाने के लिए बेंगलूर जाकर रुकना कांग्रेस को महंगा पड़ सकता है क्योंकि जमीनी स्तर पर कांग्रेस नेताओं के बाढ़ पीड़ितों के साथ खड़ा नहीं होने के कारण लोग कांग्रेस से नाराज हो सकते हैं।

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