अद्धयात्म

9 मई को अक्षय तृतीया, ऐसे प्राप्त करें सुख व सौभाग्य का वरदान

l_akha-teej-1462427623हिन्दी वर्ष के वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष में आने वाली तृतीया अक्षय तृतीया (9 मई 2016, सोमवार) के नाम से जानी जाती है। इस दिन भगवान विष्णु का अभिषेक कर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। 

अक्षय तृतीया देश के विभिन्न भागों में विविध रूप में मनाई जाती है। पुराणों में अक्षय तृतीया का एक बहुत ही अक्षय फलदायिनी तिथि के रूप में वर्णन किया गया है। इस तिथि को अक्षय तृतीया या आखातीज कहने के पीछे कई मान्यताएं एवं कथाएं प्रचलित हैं।

ज्योतिष शास्त्री सुरेश शास्त्री के अनुसार बारह मास में सभी तिथियों का क्षय होता है, लेकिन बैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली इस तिथि का कभी भी क्षय नहीं होता।

पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर छठा अवतार लिया था तथा भगवान परशुराम भी इसी दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे। दक्षिण भारत में भी इस तिथि का बड़ा महत्व है। 

इसी धार्मिक आस्था के चलते इस दिन बद्रीनाथ की प्रतिमा की स्थापना कर पूजा की जाती है। भगवान बद्रीनारायण मंदिर के कपाट भी इसी दिन खुलते हैं। पुराणों के अनुसार युगादि तिथि होने के कारण सतयुग व त्रेता युग का प्रारंभ भी इसी दिन हुआ बताते हैं।

अक्षय पुण्य देने वाली तिथि

अक्षय तृतीया अक्षय पुण्य देने वाली तिथि मानी जाती है। इस दिन किया गया दान पुण्य फल एवं अक्षय माना जाता है। इस दिन किया गया जप, तप, हवन, ध्यान, दान, भगवत आराधना, स्वाध्याय आदि सबकुछ अक्षय हो जाता है। 

इस दिन किया गया दान पुण्य अक्षयकारी होने से लोग मंदिरों में जाकर जलयुक्त घड़े, छाते, पंखे, जूते, खरबूजा, ककड़ी, इमली, सत्तू आदि दान करते हैं, जिनसे अक्षय पुण्य मिलता है। ऐसा माना जाता है कि इस जन्म में जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाता है वह अगले जन्म में प्राप्त होती है।

सामाजिक-सांस्कृतिक एकता का अनूठा संगम

अक्षय तृतीया को विवाह मुहूर्त के लिए भी जाना जाता है। इस दिन राजस्थान सहित उत्तर भारत में हजारों की संख्या में एकल एवं सामूहिक विवाह संपन्न होते हैं। इस दिन राजस्थान के अजमेर, नागौर, जोधपुर, पाली, सीकर, अलवर, जयपुर आदि जिलों में गुर्जर, रावत, जाट, रेबारी, मीणा, जाति के लोग बड़ी संख्या में बाल विवाह करते हैं।

आखातीज अबूझ सावा होने के कारण बिना मुहूर्त विवाह संपादित करने पर कोई दोष नहीं लगता। कई जगहों पर बच्चे गुड्डे-गुड्डियों का विवाह रचाते हैं जिसमें बच्चों के साथ बड़े भी चाव से भाग लेते हैं। इसीलिए आखातीज को सामाजिक एवं सांस्कृतिक एकता के अनूठे संगम का त्योहार भी कहा जाता है।

अक्षय तृतीया और शगुन

अक्षय तृतीया मांगलिक व शुभ कार्यों के लिए ही नहीं, बल्कि खेती-बाड़ी के लिए भी अति शुभ मानी जाती है। इस दिन किसान चाहे बारिश हो या न हो रबी की फसल की बुआई इसी दिन करना श्रेष्ठ मानते हैं। इस दिन किसान एक जगह एकत्र होकर वर्षभर के लिए शगुन लेते हैं, जो 100 फीसदी सही साबित होते हैं। किसान इसी दिन अनाज को भंडार गृह में भरते हैं। पुराने समय में राजपूत लोग इस दिन शिकार पर जाने को बहुत शुभ मानते थे।

जैन धर्म में अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया का हिंदुओं में ही नहीं, जैन धर्म में भी धार्मिक रूप से विशेष महत्व है। वर्षीतप करने वालों को महान तपस्वी माना जाता है। इसके पीछे एक कथा है। कहते हैं कि भगवान आदिनाथ ने दो दिन बेला (दो उपवास) की तपस्या के साथ दीक्षा ग्रहण की।

 भगवान को नगर भ्रमण के बाद भी भिक्षा में शुद्ध आहार नहीं मिलने के कारण 13 महीने 11 दिन तक कठोर उपवास के बाद हस्तिनापुर के युवराज श्रेयांश कुमार के हाथ से इक्षुरस से पारणा किया था। जैन धर्म में वर्षी तप करने वाले अक्षय तृतीया के दिन इक्षुरस से ही पारणा करते हैं।

दाल, ककड़ी व मिश्री का भोग

भगवान विष्णु का जन्मदिन होने से सभी वैष्णव मंदिरों में विग्रहों का अभिषेक कर नवीन पोशाक धारण करवा कर शृंगारित किया जाता है। इस दिन भगवान को चने की दाल, कमल-ककड़ी एवं मिश्री युक्त प्रसाद का भोग लगाया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन किए गए प्रायश्चित से मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं। भगवान विष्णु को हलुए का भोग लगाया जाता है।

नहीं चढ़ती कड़ाही

राजस्थान में आखातीज के दिन घरों में पकवान बनाने के लिए कड़ाई का प्रयोग वर्जित होता है। विष्णु भगवान को भोग लगाने के लिए बनाए जाने वाले लपटा (एक प्रकार का आटे से बना पतला हलुआ) के आटे को एक दिन पूर्व सेक लिया जाता है और आखातीज के दिन भगोने या ढेकची में बनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि आखातीज के दिन घर में कड़ाई चढ़ाने से वर्ष भर घर में क्लेश रहता है। 

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