पेंच में पर्यटकों को लुभा रहा है 9 माह का ‘ब्लैक पैंथर’
भोपाल : प्रदेश के पेंच राष्ट्रीय उद्यान के खवासा बफर क्षेत्र में दुर्लभ प्रजाति का एक काला तेंदुआ नजर आया। पार्क प्रबंधन द्वारा गुरुवार को ट्वीटर समेत अन्य सोशल मीडिया पर इसका फोटो साझा करते ही यह चर्चा का विषय बन गया। तेंदुए की इस प्रजाति का जिक्र प्रख्यात लेखक रुडयार्ड किपलिंग की कृति ‘द जंगल बुक ‘ में भी है। इसके आधार पर बने धारावाहिक ‘मोगली ‘में यह ‘बघीरा’ नाम से दिखाया गया। पेंच में दुर्लभ प्रजाति का यह तेंदुआ पर्यटकों को भी आकर्षित कर रहा है।
सूत्रों के अनुसार, पार्क में खवासा वन परिक्षेत्र के तेलिया जंगल में मादा तेंदुए के साथ नौ माह का यह शावक बीते कुछ दिनों से देखा जा रहा है। पर्यटकों ने जोन के कई हिस्सों में इसे देखा। गुरुवार को पेंच प्रबंधन ने भी ट्विटर व फेसबुक पेज पर इसका फोटो साझा किया। प्रबंधन ने इसके कैप्शन में लिखा गया कि दुनिया में दुर्लभ जानवरों को ढूंढने में कई महीने लगते हैं लेकिन पेंच में अक्सर दुर्लभ जानवर दिख जाते हैं। इस काले तेंदुए को देखकर बहुत से लोगों को जंगल बुक का ‘बघीरा’याद आ जाएगा। यह प्रजाति लेखक रुडयार्ड किपलिंग की कृति ‘द जंगल बुक’ के माध्यम से प्रसिद्ध हुई। ‘द जंगल बुक ‘ में ‘मोगली’ नामक मुख्य किरदार के साथ ‘बघीरा ‘ नामक एक काला तेंदुआ भी था। यह फोटो सार्वजनिक होते ही पेंच का ब्लैक पैंथर एक बार फिर चर्चा में है।
सूत्रों के अनुसार, इससे पहले जुलाई 2020 में एक अन्य काला तेंदुआ भी पेंच में दिखाई दिया था। यह अब दो साल से अधिक उम्र का हो चुका है। जो मां से अलग होकर खवासा से लगे पेंच महाराष्ट्र क्षेत्र के जंगल में देखा जा रहा है। दोनों काले तेंदुए को एक ही मां ने जन्म दिया है। मादा तेंदुए ने पहली बार में दो शावकों को जन्म दिया था। इसमें एक सामान्य व दूसरा दुर्लभ काले रंग का है। वहीं दूसरी बार जन्मे तीन शावकों में दो सामान्य व एक दुर्लभ काले रंग का हैं। दूसरी बार में जन्मा काला तेंदुआ खवासा क्षेत्र में नजर आ रहा है, जिसे सैलानी व वन्यजीव प्रेमी बघीरा (काला तेंदुआ) के नाम से पुकार रहे हैं। यह करीब नौ माह का हो चुका है। ‘बघीरा पेंच राष्ट्रीय उद्यान के खवासा बफर क्षेत्र में सैलानियों को लुभा रहा है।
बताया जाता है कि इस काले तेंदुए को देखने बंगाल, नासिक, मुंबई व महाराष्ट्र के कई शहरों के अलावा अन्य महानगरों से बड़ी संख्या में सैलानी पहुंच रहे हैं। प्रदेश में जारी अतिवृष्टि के कारण कुछ दिनों से बफर क्षेत्र में एक-दो वाहन में ही सैलानी सफर का लुत्फ उठाने पहुंच रहे थे, लेकिन अब काला तेंदुआ नजर आने से इनकी संख्या अचानक बढ़ गई है।
दरअसल,काला तेंदुआ भी अन्य तेंदुए की तरह ही होता है। यह अलग से कोई प्रजाति नहीं है। केवल आनुवंशिक परिवर्तन के कारण इनका रंग काला हो जाता है। इसी कारण ऐसे तेंदुए की उपलब्धता किसी भी घने और नमी वाले जंगलों में हो सकती है लेकिन इनकी संख्या गिनी चुनी है। इस नाते इन्हें दुर्लभ कहा गया।