नई दिल्ली : देवरहा बाबा का निवास स्थान गोरखपुर के पास स्थित देवरिया में था। आध्यात्म के क्षेत्र में वे इस कदर चर्चित थे कि दूर-दूर से श्रद्धालु उनकी एक झलक पाने के लिए यहां आते थे। राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन जैसे जाने-माने हस्ती भी बाबा को काफी मानते थे। योग की हर विधा में पारंगत देवरहा बाबा के चमत्कारों की कोई गिनती नहीं है। अब बात करते हैं उनकी उम्र के बारे में तो इस विषय में विभिन्न लोग अलग-अलग तर्क देते हैं। बाबा के बारे में बताया जाता है कि उनका जन्म करीब 900 साल पहले हुआ था। उन्होंने 19 जून 1990 को अपना महापरिनिर्वाण किया। जी हां, 11 जून 1990 को बाबा ने अचानक अपने भक्तों को दर्शन देना बंद कर दिया और इसी बीच वे दुनिया छोड़ कर चले गए। देवरहा बाबा के जन्म को लेकर कुछ लोगों का कहना है कि बाबा 900 सालों से इस धरती पर थे तो वही कुछ का कहना है कि करीब 250 साल की उम्र में देवरहा बाबा ने अपने पार्थिव शरीर को त्याग दिया था। ऐसे भी लोग हैं जिनका यह मानना है कि उनकी आयु 500 साल थी। जन्म के बारे में कोई निश्चित आंकड़ा उपलब्ध न होने के कारण लोग तरह-तरह की बातें करते हैं। जहां तक बात रही उनके चमत्कारों की तो इसे शब्दों में बयां करना नामुमकिन है। देवरहा बाबा अपने सभी भक्तों से बहुत प्रेम से मिलते थे। इतना ही नहीं हर किसी को प्रसाद के तौर पर कुछ ना कुछ जरूर देते थे। ऐसा कहा जाता है कि, बाबा अपने मचान में हाथ डालकर उसमें से कुछ ना कुछ निकालकर दर्शनार्थियों को प्रसाद के रूप में दिया करते थे।
आश्चर्य की बात यह है कि मचान में पहले से कोई ऐसी चीज नहीं रखी होती थी, लेकिन बावजूद इसके बाबा मचान में से कैसे कुछ निकालते थे ये वाकई में हमेशा से एक कौतुहल का विषय रहा है। पुराने जमाने के लोगों का तो यह तक कहना है कि, उन दिनों कभी किसी ने बाबा को कहीं आते-जाते नहीं देखा। बाबा खेचरी मुद्रा की वजह से बैठे-बैठे एक स्थान से दूसरे स्थान को चले जाते थे। बाबा जहां बैठते थें वहां चारों तरफ मनमोहक खुशबू छायी रहती थी, आस-पास के बबूल के पेड़ों में कांटे नहीं उगते थे। बाबा अन्तर्यामी थे। उन्हें कभी कुछ बताने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। एक सिद्ध पुरुष होने के नाते उनका हर चीज पर नियंत्रण रहता था। सजीव से लेकर निर्जीव वस्तु पर भी उनका वश था। बाबा के आशीर्वाद देने का तरीका भी बड़ा निराला था। मचान पर बैठे-बैठे ही बाबा अपना पैर जिसके सिर पर रख देते थें वह धन्य हो जाता था। बाबा ने पूरा जीवन अन्न का सेवन नहीं किया। दूध व शहद पीकर ही उन्होंने अपनी जिंदगी गुजार दी। श्रीफल का रस भी उन्हें बेहद पसंद था। बाबा जहां भी जाते वहीं मचान बनाकर ही रहते थें। कभी बनारस के रामनगर में गंगा के बीच, माघ में प्रयाग, फागुन में मथुरा के मठ में रहें। इसके कुछ समय तक हिमालय में एकांतवास में भी थें। उनके बारे में कुछ शब्दों में बयां करना संभव नहीं है क्योंकि उनके चमत्कारों की कोई सीमा नहीं है। आज भी उनका नाम लोगों की जुबां पर है। वाकई में भारत में ऐसे महापुरूषों की कोई कमी नहीं है।