अद्धयात्म

99 % लोग नही जानते होंगे वैष्णोदेवी मंदिर का यह रहस्य

भारत की बात करें तो भारत को रीति रिवाज और संस्कारों का देश जाना जाता है। यहां रहने वाले ज्यादातर लोग भगवान में काफी ज्यादा आस्था रखते हैं। आज भारत में हजारों की संख्या में गुरुद्वारे मंदिर और मस्जिद मौजूद है जहां अलग-अलग धर्म के लोगों का तांता लगा रहता है। अगर हिंदू धर्म की बात करें तो हिंदू धर्म में बहुत सारे धार्मिक स्थल मौजूद है। आज हम उन्हीं में से एक धार्मिक स्थल के बारे में बताने वाले हैं जिनका नाम देश में रहने वाला हर एक हिंदू बच्चा जानता होगा। जी हां हम आपको बता दें कि आज हम जिस धार्मिक स्थल की बात करने वाले हैं वह धार्मिक स्थल कोई और नहीं बल्कि वैष्णो देवी मंदिर है। जम्मू से थोड़ा आगे कटरा की पहाड़ियों के बीच मौजूद इस मंदिर से जुड़े कुछ ऐसे रहस्य के बारे में आज हम आपको बताने वाले हैं जिससे कि आप सभी लोग अंजान होंगे।

ऐसा बताया जाता है कि कटरा से थोड़ी दूर मौजूद हंसाली ग्राम में माता के परम भक्त श्रीधर रहा करते थे। माता के परम भक्त श्रीधर की कोई संतान नहीं थी जिसकी वजह से वह हमेशा दुखी रहते थे। दुखी रहने की वजह से एक बार उन्होंने नवरात्रि के दौरान होने वाले कन्या पूजन की सूची तैयार कर कुंवारी कन्याओं को अपने घर बुलाया। जिस वक्त उन्होंने कुंवारी कन्याओं को अपने घर बुलाया उसी दौरान माता वैष्णवी ने इन्हीं कन्याओं में से एक कन्या का रूप धारण कर उनके बीच जाकर बैठ गई। जब यह पूजा खत्म हो गई तो सभी कन्याएं वहां से चली गई परंतु माता वैष्णो वहीं पर बैठी रही और उस कन्या ने श्रीधर से कहा कि वह सब को अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आए।

उस कन्या की बात सुनकर श्रीधर पहले तो अचंभित रह गए परंतु बाद में उन्होंने माता वैष्णो की बात मान ली। माता वैष्णो की बात मान लेने के बाद उन्होंने आस-पास के गांव में मौजूद लोगों के पास जाकर भंडारे का संदेशा पहुंचा दिया। श्रीधर के द्वारा दिए गए निमंत्रण को पाने के बाद हर कोई हैरान था। हर किसी के मन में इस बात को जानने की इच्छा होने लगी कि आखिर वह कौन सी कन्या है जो कि एक साथ इतने लोगों का भोजन करवाना चाहती है। भंडारे का निमंत्रण मिलने के बाद गांव के सभी लोग भंडारे के लिए पहुंच गए। तभी माता वैष्णो ने विचित्र पात्र से लोगों को भोजन परोसना शुरू कर दिया। परंतु जब वह कन्या भैरव नाथ जी के पास पहुंची तो पारसनाथ जी ने उनसे मांस एवम मदिरा की मांग रख दी। जिसके बाद कन्या का वेश धारण कर रखी माता वैष्णो ने उन्हें जवाब दिया कि उस भंडारे में मांस और मदिरा नहीं मिलेगा। बावजूद इसके पारसनाथ की ने मांस और मदिरा खाने की जिद पकड़ ली जिसके बाद माता वैष्णो ने उनकी चाल समझकर पवन का रूप धारण करने के बाद उन्हें चित्रकूट पर्वत की ओर ले कर चली गई।

वहां मौजूद भैरवनाथ जी ने उस पवन का पीछा किया। ऐसा बताया जाता है कि उस समय देवी मां के साथ उनका एक दिन लंगूर भी मौजूद था। इसी बीच माता वैष्णो ने एक गुफा में रुक कर वहां लगभग 9 महीने की कठिन तपस्या की। वहीं दूसरी ओर भैरवनाथ जी उनकी खोज में उस गुफा तक भी पहुंच गए। गुफा के रास्ते में पहुंचने के दौरान उन्हें वहां एक साधु मिला जिन्होंने भैरवनाथ को माता वैष्णो की महाशक्तियों के बारे में बताया। बावजूद इसके भैरवनाथ ने उस साधु के बातों के ऊपर यकीन ना करते हुए माता की तलाश में निकल पड़े। वहीं दूसरी ओर जब माता को इस बात का पता लगा तो वह दूसरे रास्ते से बाहर निकल गई। आपको बता दें कि आज भी इस गुफा को गर्भजून के नाम से जाना जाता है।

माता वैष्णो के पास पहुंच जाने के बाद जब माता वैष्णो ने भैरवनाथ को वहां से वापस लौटने की चेतावनी दी तो भैरवनाथ ने उनकी बातों को अनसुना कर दिया। अनसुना करने के साथ ही भैरवनाथ ने उन्हें अपने साथ युद्ध करने के लिए आगे ललकारा। माता को ललकारता देख उनका वीर लंगूर भैरवनाथ को रोकने के लिए आगे बढ़ा परंतु वह वहीं पर गिर पड़ा। जिसके बाद माता वैष्णो ने चंडी का रूप धारण कर भैरव के सिर को उसके धड़ से अलग कर दिया। आपको बता दें कि जिस जगह भैरव का सिर जाकर गिरा था वह जगह आज लोगों के बीच भैरव घाटी के नाम से जानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि सर कटने के बाद भैरवनाथ में माता वैष्णो से अपने द्वारा की गई गलतियों को लेकर माफी मांगी। जिसके बाद देवी मां ने प्रसन्न होकर भैरवनाथ को यह वरदान दिया कि जो कोई व्यक्ति मेरी दर्शन के लिए मंदिर आएगा वह तुम्हारा दर्शन जरुर करेगा। तुम्हारे दर्शन करने के बाद उस व्यक्ति की यात्रा हमेशा के लिए सफल बन जाएगी। यही वजह है कि आज भी जो लोग माता वैष्णो के दर्शन करने जाते हैं उनके लिए भैरव नाथ के दर्शन करना जरूरी हो जाता है।

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