पदोन्नति में आरक्षण की आग फिर धधकाएगी सूबे को
सरिता अरगरे
मध्यप्रदेश के बयानवीर मुख्यमंत्री एक बार फ़िर सुर्खियों में हैं। पदोन्नति में आरक्षण को लेकर एक बार फ़िर सियासी दाँव-पेंच शुरू हो गए हैं। दरअसल मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने आरक्षण के आधार पर प्रमोशन को अवैध क़रार दिया है। कोर्ट ने 30 अप्रैल को दिए अपने फैसले में कहा, ‘नियुक्तियों के दौरान समाज के पिछड़े और वंचित वर्ग को नियमानुसार आरक्षण मिलना चाहिए, लेकिन पदोन्नतियों में आरक्षण ग़लत है। इसकी वजह से वास्तविक योग्यता वालों में कुंठा घर कर जाती है।’ वहीं हाईकोर्ट ने सिविल सर्विसेज़ प्रमोशन रूल 2002 को भी ख़ारिज कर दिया है। इस नियम के तहत अनुसूचित जाति और जनजाति को प्रमोशन में 36 प्रतिशत तक आरक्षण दिया जाता है। हाईकोर्ट के फ़ैसले को राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और 12 मई को सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश पर स्टे लगा दिया। हाईकोर्ट ने 2002 के बाद आरक्षण के आधार पर किए सभी प्रमोशन भी रद्द कर दिए हैं। आरक्षण के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में लगभग 20 याचिकाएँ लगी थीं। कोर्ट ने माना कि अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को पदोन्नति में सामान्य वर्ग से वरीयता देना किसी तरह से ठीक नहीं है। एक ओर सूबे का मुखिया हाईकोर्ट के फैसले को कानूनन ला कर पलटने की तैयारी कर रहे हैं। साथ ही अपने बयानों से आरक्षित वर्गों को साधने की हर मुमकिन कोशिश करते दिखाई देने की कोशिश में जुटे हैं। वो लगातार ‘पोजिशनिंग’ में जुटे शिवराज खुद को आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों और गरीबों का मसीहा के तौर पर प्रस्तुत करने का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहते।
वहीं दूसरी ओर आरक्षित वर्ग के अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी भी मैदान में कूद गए हैं। कानून में तब्दीली के मुख्यमंत्री के ऐलान के बाद से ही सरकारी कर्मचारी दो धड़ों में बँट गए हैं। आरक्षित वर्ग की अगुवाई आईएएस अधिकारी कर रहे हैं। मुखालफ़त की कमान कर्मचारी नेताओं ने सम्हाल रखी है। स्थगन आदेश के संबंध के विरोध में पूरे प्रदेश में हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा है। सामान्य वर्ग के कर्मचारियों में सबसे ज्यादा गुस्सा मुख्यमंत्री के रवैये को लेकर है। 12 जून को शिवराज ने भोपाल में अजाक्स की आरक्षण बचाओ-देश बचाओ रैली के दौरान ऐलान किया था कि जब तक वे हैं, कोई माई का लाल मध्यप्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण खत्म नहीं कर सकता। शिवराज ने कहा कि राज्य सरकार पदोन्नति में आरक्षण की पक्षधर है। इस संबंध में नियमों में आवश्यक बदलाव के लिये कैबिनेट की सब कमेटी बनाई जाएगी। उन्होंने जोर देकर कहा कि आरक्षण कोई समाप्त नहीं कर सकता है।
राज्य शासन ने शासकीय पदों पर पदोन्नति में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के कर्मचारियों को आरक्षण देने के नये नियम बनाने के लिए मंत्रि-परिषद समिति का गठन किया है। समिति में वन मंत्री गौरीशंकर शेजवार, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री विजय शाह, ऊर्जा और जनसम्पर्क मंत्री राजेन्द्र शुक्ल, आदिम जाति कल्याण एवं अनुसूचित जाति कल्याण मंत्री ज्ञान सिंह और सामान्य प्रशासन राज्य मंत्री लाल सिंह आर्य को शामिल किया गया है। प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन समिति के संयोजक रहेंगे। यह समिति नियमों का प्रारूप 31 जुलाई तक देगी।
उधर पदोन्नति में आरक्षण का विरोध करने वालों का कहना है कि आरक्षण के नाम पर हर क्षेत्र में मिल रही सुविधा और विशेषाधिकार से आपत्ति नहीं है लेकिन आरक्षण का यह ‘एक्सटेंशन’ कतई सहन नहीं किया जा सकता। नौकरी में काबिलियत, दक्षता, मेहनत और ईमानदारी जैसे गुणों के साथ काम करने वाले कर्मचारी का यह नैसर्गिक अधिकार है कि उसे अपने काम के बदले सही वक्त पर सही रूप में पदोन्नति मिले लेकिन अगर यहाँ भी ‘आरक्षण का बताशा’ उसकी जिंदगी में जहर घोले तो यह कैसे स्वीकार हो सकता है?
महज इसलिए कि उसने एक ऐसी जाति में जन्म लिया है जो प्रचलित नियमों के अनुसार अगड़ी और सक्षम मानी जाती है। चाहे वरिष्ठता के मान से उसके अवसर प्रबल हो चाहे योग्यता के लिहाज से उसकी उम्मीद उजली हो लेकिन एकमात्र आरक्षण जैसे शब्द के कारण उसके आगे बढ़ने के मौके निर्ममता से कुचले जाएँगे और उसी के सामने कम योग्य, उससे कनिष्ठ या निहायत ही मक्कार को भी प्रमोशन मिल सकता है। स्वाभाविक सी बात है यह बिल उसके मनोबल को ना सिर्फ कमजोर करेगा बल्कि खत्म ही कर देगा। दिलचस्प पहलू यह भी है कि एक तरफ़ संघ प्रमुख मोहन भागवत आरक्षण की मुखालफ़त करते नजर आते हैं, तो वहीं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पदोन्नति में आरक्षण बरकरार रखने का खम ठोक कर वर्ग संघर्ष के हालात पैदा कर रहे हैं। पदोन्नति में आरक्षण का मुद्दा धीरे-धीरे सुलग रहा है। सूबे में जगह-जगह प्रदर्शन और आँदोलन हो रहे हैं। छोटी सी ये चिन्गारी कब बेकाबू होकर दावानल का रूप ले ले, फ़िलहाल समझ पाना मुश्किल है, लेकिन इतना तय है कि वोट बैंक बढ़ाने की इस पेशकश से भड़का अगड़ा वर्ग इस मुद्दे पर संगठित होकर लड़ाई लड़ रहा है। शिवराज ऐलानिया कह चुके हैं कि आरक्षण हर हाल में जारी रहेगा, फ़िर चाहे इसके लिए कानून क्यों न बनाना पड़े। रीवा में आयोजित भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति ने भी राजनीतिक प्रस्ताव पारित कर दिया है। हालाँकि बीजेपी में भी इस मसले पर एक राय नहीं है। खबर है कि रीवा में भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में पदोन्नति के खिलाफ आवाज उठाई गई जिसे मुख्यमंत्री और अन्य भाजपा नेताओं ने दबा दिया। शिवराज के धुर विरोधी समझे जाने वाले कैलाश विजयवर्गीय समेत कई नेताओं ने बैठक में खुलकर अपनी बात रखी। मगर उनके आपत्तियों को दरकिनार कर दिया गया।
पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सांसद कांतिलाल भूरिया ने मुख्यमंत्री के बयान ‘मेरे जीते जी नहीं खत्म हो सकता आरक्षण’ पर पलटवार करते हुए कहा कि शिवराज हवा-हवाई बातें कर आदिवासियों और दलितों को छलने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘क्योंकि पदोन्नति में आरक्षण का मामला उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है और ऐसी स्थिति में निर्णय सिर्फ उच्चतम न्यायालय ही कर सकता है।’ भूरिया ने कहा कि मुख्यमंत्री का ये कहना कि कोई माई का लाल मेरे रहते आरक्षण समाप्त नहीं कर सकता, क्या उच्चतम न्यायालय को खुली चुनौती नहीं है। एक तरफ तो मध्य प्रदेश शासन उच्च न्यायालय के आदेश के तत्काल बाद पदोन्नति में आरक्षित पदों की समीक्षा करने का काम कर आरक्षित वर्ग के हितों पर कुठाराघात करने का काम करता है, वहीं मुख्यमंत्री इस तरह ही नौटंकी कर आरक्षित वर्ग के लोगों को भरमाने का काम करते हैं। उन्होंने पूछा कि क्या मुख्यमंत्री का यह कृत्य प्रदेश के आदिवासियों और दलितों के साथ धोखाधड़ी नहीं है।
भूरिया ने कहा, ‘प्रदेश के मंत्री डॉ. गौरीशंकर शेजवार की अध्यक्षता में जिस रिव्यू कमेटी बनाने की मुख्यमंत्री बात कह रहे हैं, उसे बनाने का उन्हें अधिकार ही नहीं है, क्योंकि प्रकरण उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है और आदिवासी, दलित और आरक्षित वर्ग के लोग अब इतने नासमझ नहीं है जो घोषणावीर मुख्यमंत्री के लालीपॉप से भ्रमित हो जाएँ।” भूरिया ने कहा कि यह स्पष्ट हो चुका है कि प्रदेश की भाजपा सरकार पदोन्नति में आरक्षण की विरोधी है और इस वर्ग के सभी अधिकारियों, कर्मचारियों को उनके हक से वंचित करने की साजिश कर रही है। जबकि काँग्रेस की सरकार ने इस वर्ग के हितों की रक्षा करते हुए पदोन्नति में आरक्षण का नियम बनाया था।
इस बीच संघ के साथ सक्रियता से जुड़े लोग ही शिवराज के इस रवैये पर सवाल उठा रहे हैं। सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी है। वे पूछ रहे हैं मामाजी ने ‘प्रमोशन’ में आरक्षण देने के लिए कमर कस ली है। तो मामाजी से एक मासूम सवाल है क्या ‘प्रमोशन में आरक्षण’ का नियम वे खुद पर भी लागू करेंगे? क्या वे अपने स्थान पर किसी जूनियर दलित मंत्री को प्रमोट करके मुख्यमंत्री बनाएँगे? वैसे भी मध्यप्रदेश में दलित या आदिवासी मुख्यमंत्री शायद कभी बना नहीं है। तो मामाजी से उम्मीद है कि वे ‘प्रमोशन में आरक्षण’ को सख्ती से सभी स्तरों पर लागू करेंगे और किसी जूनियर दलित मंत्री को तत्काल मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप देंगे। बेरोजगारी से जूझ रहा पढ़ा-लिखा युवा वर्ग नेताओं से जानना चाहता है- ‘जातिगत आरक्षण की आवश्यकता क्यों? क्या मात्र वोटों के लिए? अभी तक कितनों ने आरक्षण का लाभ एक बार से अधिक बार लिया? शासन ने क्या कभी रिकॉर्ड रखा? आरक्षण पर आरक्षण यानी पदोन्नति में आरक्षण क्यों? आर्थिक आधार पर आरक्षण क्यों नहीं?
उसमें क्या खराबी है, इस पर विचार विमर्श क्यों नही किया जाता? यदि वोटों की खातिर यूँ ही योग्यता की बलि चढ़ाई जाती रही तो लम्बी अवधि में देश को भारी नुकसान होगा।’
आँखें मूँद लेने से हकीकत बदल नहीं जाती। आरक्षण के ज्वालामुखी पर देश धधक रहा है और हम सत्ता के लिए चाहें जो कुछ बोल रहे हैं। भाषणों से भला नहीं होगा, स्पष्ट नीति और साफ़ नीयत से ही भला होगा। सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्णय के बावजूद भाजपा सरकार पदोन्नति में आरक्षण जारी रखने के पक्ष में है। यद्यपि अब आरक्षण का कोई औचित्य नहीं रहा। अब अगर जातीय भेदभाव है तो उसके कारण दूसरे हैं, जिसे आरक्षण से कभी भी दूर नहीं किया जा सकता। अब आरक्षण न केवल संविधान विरोधी है बल्कि अमानवीय है। मौजूदा आरक्षण के रहते ‘समतामूलक जाति विहीन समाज’ की कल्पना निरर्थक है। इसके बाद भी यदि आरक्षण जारी रखना अपरिहार्य है भी तो कम से कम अजा और जजा में ‘क्रीमिलियर व्यवस्था’ लागू करना अत्यावश्यक है। इसके बिना हम उस समुदाय का भी भला नहीं करेंगे, जिनके प्रति हमारे नेताओं का अनुराग थमने का नाम ही नहीं लेता। यदि आरक्षण जारी रखना भी है तो उसकी 50% सीमा को बनाए रखना आवश्यक है। यदि उसे भी तोड़ना मजबूरी हो गया हो तो पदोन्नति में आरक्षण तो किसी भी सूरत में नहीं दिया जाना चाहिए। आरक्षण से सेवा में तो आ गए, तो क्या अब काम भी नहीं करेंगे?ल्ल