पर्यावरण असंतुलन रोकना जरूरी
डॉ0 भरत राज सिंह
आज पर्यावरण के असंतुलन से सम्पूर्ण विश्व आपदाओं से घिरा हुआ है। हम यह भी जानते हैं कि इसका मुख्य कारण विश्व की जनसंख्या में अप्रत्याशित वृद्धि; जिसके फलस्वरूप विकसित व विकासशील देशों में औद्योगिकीकरण की बढ़ोतरी हुयी और पृथ्वी के अवयवों का विशेषकर-हाइड्रोकार्बन का अनियमित दोहन हुआ है। वही दूसरी तरफ वाहनों की आवश्यकता में कई गुना वृद्धि से पर्यावरण में कार्बन के उत्सर्जन व अन्य नुकसानदायक गैसों की मात्रा में निर्धारित सीमा से कई गुना वृद्धि प्रत्येक वर्ष हो रही है जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि और पर्यावरण असंतुलन के कारण सम्पूर्ण विश्व आपदाओं से घिरा हुआ है।
पिछले 4-दशकों में तापमान में भी 2-3 डिग्री सेन्टीग्रेड की वृद्धि हो चुकी है। इससे ग्लेसियर, आइस लैण्ड व आर्कटिक समुद्र में अत्यधिक पिघलाव हो रहा है। प्रत्येक दशक में ग्लेसियर में 12.5 प्रतिशत की कमी आ रही है तथा समुद्र की सतह में निरन्तर 2.54 मि0मी0 प्रतिवर्ष की बढ़ोतरी हो रही है। उपरोक्त कारणों से जलवायु में परिवर्तन बहुत तेजी से हो रहा है तथा विश्व में अप्रत्याशित आपदाएं भी घटित हो रही है। जिसका आकलन करना असम्भव हो रहा है कि विश्व में कब, कहाँ व क्या घटित होगा? इन आपदाओं से कही अतिवृष्टि से अधिक जानमाल का नुकसान तो कही सूखे की मार से जन-जीवन को भारी नुकसान हो रहा है।
आज सम्पूर्ण विश्व जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान की विभीषिका से ग्रसित है। उत्तरी धु्रव के तेजी से पिघलने के कारण जहां समुद्र की सतह में बढ़ोतरी हो रही है वही अटलांटिक महासागर की छोर जो कनाडा, उत्तरी-पूर्वी अमेरिका तथा पश्चिमी-उत्तरी संयुक्त राष्ट्र के देशों (फ्रांस, जर्मनी ब्रिटेन) में समुद्री तूफान, जलप्लावन, ओलावृष्टि आदि से दिसम्बर माह से अप्रैल तक जनजीवन अस्त-व्यस्त रहा है। कभी-कभी 4 से 6 फीट बर्फबारी होने से आपातकाल लागू किया जाता है और वहां के निवासियों को 15-20 दिन न निकलने के लिए हिदायत दी जाती है। यह स्थिति जब एक विश्व का विकसित देश सामना कर रहा है तो विकासशील देशों जैसे- भारतवर्ष, चीन आदि की स्थिति तूफानों और अतिवृष्टि, सूखा आदि से बद से बदतर हो जाती है। ऐसी स्थिति में सम्पूर्ण विश्व मानव को पर्यावरण सुरक्षा हेतु कारगर उपाय तत्काल ढूढ़ने व उसे तत्परता से लागू करने की आवश्यता है जिससे वर्तमान में हो रही अप्रत्याशित घटनाओं में कमी लायी जा सके और आने वाली पीढ़ी को भी राहत मिल सके।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि यदि वर्तमान में कारगर उपाय न किये गये तो वर्ष 2040 तक हाइड्रोकार्बन जिसका पृथ्वी से दोहन हो रहा है, लगभग समाप्त के कगार पर होगा व उत्तरी धु्रव पर बर्फ के तीव्रता से पिघलने के कारण नाम-मात्र ही बर्फ मौजूद रहेगी तथा विश्व के सभी पर्वतीय श्रृंखलाओं में जहां ग्लेशियर है, समाप्त हो जायेंगे, जिससे समुद्र की सतह में लगभग 13 से 14 फीट पानी की बढ़ोत्तरी होना सम्भव है तथा 2015 के वर्तमान शोध के अनुसार पृथ्वी के घूर्णन में परिवर्तन होना निश्चित है एवं पृथ्वी की गति में भी कमी आना सम्भव है, जिससे किसी भी अप्रत्याशित घटना होने से नकारा नहीं जा सकता है। आइये हम प्रत्येक दिवस को ‘पर्यावरण दिवस’ मनाकर, सम्पूर्ण जनमानस को पर्यावरण संरक्षण हेतु निम्नलिखित नारे से झंकृत करें। ‘‘पर्यावरण बचाओ, पृथ्वी बचाओ,
जीवन बचाओ’’
पर्यावरण सुरक्षा के लिए निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देना जरूरी
– रोशनी मे परिवर्तन एल0ई0डी0 बल्ब/एल0ई0डी0 ट्यूब लाइट का प्रयोग
– अधिक से अधिक पेड़ों का लगाया जाना
– जल संरक्षण के सार्थक उपाय
– वैकल्विक ऊर्जा का अधिक से अधिक उपयोग (जैसे-सोलर, बायोमास, मिनी हाइड्रो)
– तापीय बिजली घरों का नवीनीकरण
– वाहनों में बिना ज्वलनशील ईधन का उपयोग
– इलेक्ट्रानिक उपकरणों का जब प्रयोग न हो तो बन्द रखना।
– पॉलीथीन बैग की जगह कागज व कपड़े के थैलों का उपयोग करना।
– पर्यावरण के मुद्दों के बारे में सूक्ष्म जानकारी दूसरों के साथ बांटना।
(लेखक एसएमएस लखनऊ में निदेशक एवं वरिष्ठ पर्यावरणविद हैं।)