पिछले काफी समय से गाय को लेकर विवाद गर्माया हुआ है। लेकिन इस वक्त सबसे ज्यादा यह मुद्दा गुजरात में गर्माया हुआ है। गुजरात की राजधानी में गौसेवा आयोग और गौचार विकास बोर्ड का हेडक्वॉर्टर भी है। मवेशियों को लेकर सभी प्रकार के कानून राजधानी में लागू हैं।
नगर निगम ने 10 सितंबर 2014 से गाय के सीमा से बाहर आने पर प्रतिबंध लगा दिए हैं। बड़े शहरों में जिनमें अहमदाबाद, सूरत, वडोदरा और राजकोट को मवेशियों को लेकर होने वाले झगड़े के लिए जाना जाता है। खासकर मानसून में जब मवेशी कीड़ों से बचने के लिए गलियों सड़कों पर आ जाते हैं।
हालांकि प्रदेश की राजधानी गांधीनगर इस उपद्रव से बची हुई है। हालांकि अधिकतर शहरों में गाय को खिलाना-पिलाना भी एक आम रिवाज सा हो गया है।
लेकिन गांधीनगर में यह सब नहीं होता है। यदि कोई अपने निजी परिसर में गाय पालन करते पाया गया तो नगर-निगम के पास अधिकार है कि वह उसे दंडित कर सकता है। पूर्व नगर निगम कमिश्नर जी. आर. चौधरी का दावा कि , “खानाबदोशों की एक बड़ी संख्या शहर के बाहर शिविरों में रहती है।
वो अपने गौजातीय धन को साथ लेकर चलते हैं। जिसके कारण शहर में लोगों को परेशानी होती है। जब वो लोग शहर छोड़ते हैं तो साथ ही कुछ आवांछित जानवरों को भी वहीं छोड़ जाते हैं। यह एक चिंता का विषय है, इस तरह के कार्यों पर प्रतिबंध लगना चाहिए।”
गाय के साथ-साथ अन्य कई जानवरों के पालन पर है प्रतिबंध
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक जीएमसी (गांधीनगर नगर-निगम) ने गाय के साथ-साथ बकरियों, गधों, भेड़, घोड़े और भैंस के पालन पर भी प्रतिबंध लगया है। हालांकि यह प्रतिबंध निजी प्लॉट, सरकारी भूमि, और घर के एक सेक्शन पर लागू होगा। चौधरी प्रतिबंध के संदर्भ में बताते हुए कहते हैं कि, “गांधीनगर राजधानी होने के साथ-साथ राज्य विधानसभा, सचिवालय, मंत्रियों के बंगले, वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के क्वार्टर, और निजी सरकारी आवास आवास हैं।
आवार पशुओं की बढ़ती समस्या को देखते हुए उनके पालन पर प्रतिबंध लगाने व शहर में घुसने से रोकने के लिए नोटिफिकेशन जारी किया गया।” वर्तमान में नगर निगम आयुक्त डी एन मोदी टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, “हमारा प्रमुख सिद्धांत यह सुनिश्चित करना है कि आवारा पशुओं से रोड पर जाम न लगे। और यह किसी भी प्रकार की हानि न पहुंचा पाएं। इस सब को डील करने लिए हमारे पास विशेष कानून हैं।”