मंदिर हो या गुरुद्वारा में क्यों अंदर जूते-चप्पल ले जाना इसलिए होता है वर्जित
हिन्दू हो या सिख या मुसलमान, सभी अपने धार्मिक स्थलों पर जूते- चप्पल बाहर ही उतार कर जाते हैं। यही नहीं कई घरों एवं प्रतिष्ठानों के भीतर भी लोग जूते-चप्पल पहन कर नहीं जाते।
इसके पीछे मुख्य कारण सफाई है। ऐसी मान्यता है कि यदि स्थानों पर इन जूते-चप्पल पहन कर जाएंगे तो बाहर की गंदगी उनके जरिए अंदर प्रवेश कर जाएगी। इससे घर में नकारात्मक शक्तियों का प्रवेश होगा।
बाहर की गंदगी जूते-चप्पलों के माध्यम से धार्मिक स्थलों एवं घरों में नहीं जाए, इसीलिए धार्मिक स्थलों के साथ घर में भी लोग जूते-चप्पल पहन कर प्रवेश नहीं करते।
धार्मिक स्थल की भूमि को सकारात्मक ऊर्जा या पॉजिटिव एनर्जी का वाहक माना जाता है और यह ऊर्जा भक्तों में उनके पैर के जरिए ही प्रवेश कर सकती है। इसलिए मंदिर के अंदर नंगे पांव जाते हैं। इसके अलावा एक कारण भी है।
हम चप्पल या जूते पहनकर कई जगहों पर जाते हैं। ऐसे में मंदिर जो कि एक पवित्र जगह है, उसके अंदर बाहर की गंदगी या नकरात्मकता ले जाना सही नहीं है। धार्मिक स्थलों एवं घर में दैवीय शक्तियों का वास होता है। जहां देवी-देवता रहते हैं वहां जूते-चप्पल पहनकर जाना सही नहीं है, इसलिए ऐसा करने से बचना चाहिए।
धार्मिक स्थल से लोगों की आस्था जुड़ी है। ऐसे में अपने धार्मिक स्थल पर सम्मान के लिए जूते-चप्पल उतार कर जाते है।
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में लोग नमन करने के लिए फर्श पर माथा टेकते हैं। ऐसे में यदि जूते-चप्पल अंदर लेकर जाएंगे तो कोई माथा नहीं टेकेगा।
हिन्दू मान्यताओं में घर को भी मंदिर माना गया है, इसे एक पवित्र स्थल का दर्जा दिया जाता है। जिस तरह पवित्र स्थलों पर जूते पहनकर जाना सही नहीं है, इसलिए घर के भीतर चप्पल ले जाना धार्मिक मान्यताओं के विरुद्ध है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार यह माना जाता है कि अगर बाहर पहनने वाली जूते-चप्पलों को घर के भीतर पहना जाता है तो बाहर की नकारात्मक ऊर्जाएं हमारे पैरों के जरिए धार्मिक स्थल घर में प्रवेश कर जाती हैं।