‘ये आदमी पहले घर-घर भीख मांगता था, आज है 40 करोड़ का मालिक’
इंदौर। कौन सोच सकता था कि बचपन में घर-घर जाकर अनाज मांगने वाला लड़का जो 10वीं कक्षा फेल हो गया था और जिसके पास खुद का एक रुपया नहीं था वह आज 40 करोड़ की कंपनी का मालिक है। ऐसी ही शख्सियत हैं रेणुका आराध्य। शुक्रवार को वे इंदौर मैनेजमेंट एसोसिएशन के कार्यक्रम ‘वन्स अपॉन अ टाइम’ में अपने अनुभव साझा कर रहे थे।
डेली कॉलेज ऑडिटोरियम में मॉडरेटर संदीप अत्रे से बात करते हुए रेणुका ने अपनी जिंदगी के संघर्ष की कहानी साझा की। दरअसल, उनकी जिंदगी की कहानी किसी बिजनेस मैनेजमेंट की किताब की तरह है, जिसके कुछ पन्ने हम आपके लिए प्रकाशित कर रहे हैं।
गोल सेटिंग : आसान नहीं बड़ा काम करने की कोशिश
उन्होंने कहा कि मेरे पिता बैंगलुरु के पास गोपासंद्र गांव में पुजारी थे परंतु पूरे परिवार का भरण-पोषण हो जाए इतनी आय भी नहीं होती थी, इसलिए मैं और मेरे पिता गांव में जाकर अनाज मांग कर लाते थे। 8वीं तक पढ़ने के बाद उन्होंने मुझे एक आश्रम में भेज दिया, जहां पढ़ाई के साथ वेद और संस्कृत भी अनिवार्य रूप से पढ़ाई जाती थी पर भरपेट भोजन यहां भी नसीब में नही था।
हमें सुबह 8 बजे और रात 8 बजे खाना दिया जाता था, वह भी बहुत खराब होता था। हमारे सीनियर्स पुरोहित थे, जो गांव में पूजा-पाठ कराने जाते थे, वहां खाना भी अच्छा मिल जाता था। उनके साथ जाने के लिए मैं हर रोज 15 सीनियर्स के कपड़े धोता था। इन अभावों के कारण मैं दसवी कक्षा में फेल हो गया। इधर पिता का देहांत होने के कारण घर की जिम्मेदारी भी मुझ पर आ गई।
वेद और संस्कृत का ज्ञान था, चाहता तो आसानी से पुरोहित बन सकता था पर मैं मेहनत करके कमाना चाहता था इसलिए मैंने पहले लैथ मशीन पर काम करना शुरू किया। फिर प्लास्टिक फैक्टरी में काम किया। 30 हजार रुपए की पूंजी लगाकर टीवी, फ्रिज कवर्स बेचने का काम शुरू किया पर सारा पैसा डूब गया। 600 रुपए महीने पर सिक्योरिटी गार्ड भी बना। साथ ही सिर्फ 15 रुपए के लिए नारियल के पेड़ पर चढ़कर उसकी देखभाल करने और नारियल उतारने का काम भी किया करता था।
रिस्क टेकिंग : सारी पूंजी लगा कर खरीदी नई कंपनी
बतौर सिक्योरिटी गार्ड मेरा काम अच्छा चल रहा था, पर मुझे कौशलपूर्ण काम करना था इसलिए सोचा ड्राइविंग सीखी जाए। पैसे नहीं थे इसलिए शादी की अंगूठी बेचकर और पत्नी के भाई से उधार लेकर ड्राइविंग लायसेंस बनवाया। एक जगह काम भी मिला पर एक्सीडेंट होने के बाद वह काम छोड़ना पड़ा। तभी बैंगलुरू के ट्रेवल एजेंट सतीश शेट्टी ने कहा कि मैं तुम्हें काम देता हूं। एक्सीडेंट होने पर गाड़ी का पैसा तो इंश्योंरेंस से मिल जाएंगा तुम बस अपना ध्यान रखना।
मैंने काम शुरू कर दिया। कई फॉरेन कस्टमर्स भी मेरे साथ सफर करते थे और डॉलर्स में टिप देते थे। इन्ही पैसों से खुद की इंडिका खरीदी। फिर एक गाड़ी से पांच गाड़ियां हो गई और खुद की कंपनी भी शुरू कर ली, पर कुछ बड़ा करने की चाहत अभी पूरी कहां हुई थी। जैसे ही पता लगा इंडिया सिटी टैक्सी नाम की एक कंपनी बिकने वाली है, मैंने अपनी सारी गाड़ियां बेचकर उस कंपनी को खरीद लिया। मैंने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा जोखिम उठाया था, जो आज मुझे कहां से कहां ले आया।
फायनेंस मैनेजमेंट : खुद जमा करें सीड फंडिंग
अक्सर लोग अपना बिजनेस शुरू करने के लिए दूसरों से पैसे मांगते हैं, जो कि गलत है। आप सफल व्यक्तियों से पैसे नहीं सिर्फ उनका मार्गदर्शन मांगें। सीडफंडिंग हमेशा खुद एंटरप्रेन्योर की होनी चाहिए, जिससे ‘सेंस ऑफ रिस्पांसबिलिटी’ बढ़ती है। दूसरों की कंपनियों के लिए ड्राइविंग करते वक्त मुझे जो टिप्स मिलती थी, उसे जमाकर मैंने 75 हजार रुपए इकट्ठा किए थे। थोड़े पैसे अपने पत्नी के पीएफ से लिए और अपना बिजनेस शुरू किया।
कस्टमर डिलाइट : पांच मिनट लेट होने पर पैनल्टी
आपका बिजनेस तभी सफल हो सकता है जब आपके कस्टमर खुश हो। जब मैं खुद टैक्सी चलाता था तब भी मेरे व्यवहार से खुश होकर मुझे तारीफ और अच्छी टिप मिलती थी। अब जब मेरी कंपनी के लिए दूसरे ड्राइविंग करते हैं तब भी मैं ग्राहक के समय, संतुष्टि और आराम का पूरा ध्यान रखता हूं। यदि मेरी गाड़ी पांच मिनट भी देर से पहुंचती है तो कस्टमर को पैनल्टी दी जाती है।
प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल्स : समस्या के पास ही रखा है हल
रेणुका आराध्य ने कहा कि जीवन में हम अक्सर सिर्फ समस्याओं पर ध्यान देते हैं जबकि हर समस्या के पास ही उसका हल भी रखा होता है। यदि हम जरा-सा सिर घुमाकर देखें तो हमें उतनी ही आसानी से हल भी नजर आने लगेगा।
जिंदगी के इतने उतार-चढ़ावों के बीच वह कौन-सी ताकत थी, जिसने कभी टूटने नहीं दिया। इस सवाल पर रेणुका कहते हैं कि जिंदगी खुद आपको हर पल प्रोत्साहित करती है। इस पूरी दुनिया को किसी एक ताकत ने बनाया है, उस ईश्वर को हम चाहे जिस नाम से पुकारें परंतु यदि आप उसमें अद्म्य विश्वास रखते हैं तो वह कभी आपको गिरने नहीं देगा।