स्थापत्य कला की उत्कृष्टता के लिहाज से कई भारतीय मंदिर अपने समय से काफी आगे थे. इन्हीं भारतीय मंदिरों में से एक सोमनाथ का मंदिर है. सोमनाथ वह पवित्र स्थान है जहाँ आदि ज्योर्तिलिंग स्थापित हुआ था. भक्तों के बीच सोमनाथ की मिट्टी इसलिये भी पवित्र मानी जाती है क्योंकि भगवान श्री कृष्ण उसी भूमि से निजधाम की ओर अपनी अंतिम यात्रा पर गये थे.
सोमनाथ का मंदिर अरब सागर के तट पर अवस्थित है. समुद्र की लहरे इस मंदिर को छू कर गुजरती थी. यहाँ स्थापित सोमनाथ की मूर्ति स्थापत्य कला की उत्कृष्ट मानी जाती रही है. यह मूर्ति मंदिर के मध्य बिना किसी सहारे के खड़ी थी. बिना आधार की इस मूर्ति को ऊपर से सहारा देने के लिये भी कुछ नहीं था.
इसे हवा में तैरते हुए देखने पर दर्शकों के आश्चर्य की सीमा नहीं रहती. यह मंदिर शीशा जड़ी सागवान की लकड़ी के छप्पन स्तम्भों पर खड़ा था. मूर्ति का पूजागृह में अंधेरा हुआ करता था. उसके समीप ही एक सोने की जंजीर टँगी होती थी. इसका वजन करीब दो सौ मन था. हिंदू भक्तों का हुजूम चंद्रग्रहण के अवसर पर इस मंदिर में जमा होता था.
उस जंजीर का प्रयोग पहर की समाप्ति पर ब्राह्मणों के दूसरे दल को जगाने के लिये किया जाता था. यह मान्यता रही कि मनुष्यों की आत्मायें अपने शरीर से अलग होकर वहाँ जमा होती थीं. इसके बाद यह मूर्ति इन आत्माओं को अपनी इच्छानुसार दूसरे शरीरों में प्रविष्ट करा देती थीं. ज्वार भाटे को समुद्र द्वारा मूर्ति की पूजा-अर्चना समझा जाता था. कहा जाता है कि वहाँ गंगा नदी के पानी से मंदिर को धोया जाता था. उस समय मंदिर को करीब दस हजार गाँव दान में प्राप्त हुए थे.
सन 1025 के दिसम्बर के मध्य गज़नी का तुर्क सरदार महमूद यहाँ आया था. उसके लिये भी मूर्ति का बिना किसी सहारे के खड़े होना अचरज की बात थी. उसने अपने सेवकों से इसका कारण पूछा जिसका उसे तुरंत संतोषजनक उत्तर नहीं मिला. यह मूर्ति किसी गुप्त वस्तु के सहारे खड़ी है ऐसा अधिकांश सेवकों का विश्वास था. यह जानकर उसने मूर्ति के चारों ओर भाला घुमाकर सेवकों से रहस्य का पता लगाने को कहा.
सभी सेवकों ने उसके आदेश का पालन किया. हालांकि, उन्हें ऐसी कोई वस्तु नहीं मिली जो भाले में अटके. महमूद मायूस हुआ. फिर उसे किसी सेवक ने बताया कि मंदिर का मंडप चुम्बक जड़ित है जबकि मूर्ति लोहे की बनी है. उसने इसे किसी कुशल कारीगर की कारीगरी करार दी जिसने यह व्यवस्था की थी. चुम्बक इस तरह व्यवस्थित रखी गयी कि किसी ओर अधिक दबाव न पड़े.
इस राय को सुनने के बाद महमूद ने मंडप की छत से कुछ पत्थर निकालने का आदेश दिया. आदेश के पालन के दौरान मूर्ति एक ओर झुक गयी. सारे पत्थर निकाल लेने पर मूर्ति जमीन पर गिर पड़ी. इस तरह सोमनाथ मंदिर में रखी गयी मूर्ति के पीछे की स्थापत्य कला की जानकारी आम लोगों को हुई.