परिवर्तन का दौर, हम अब वेब मीडिया युग में
लखनऊ (दस्तक ब्यूरो) विश्व के अन्य विकसित देशों की तरह ही भारत में वेब मीडिया यानी मोबाइल पर नेट के माध्यम से देश और दुनिया की जानकारी लेने का सिलसिला तेजी से विस्तार ले रहा है। अब लोग अखबारों और संदर्भ पुस्तकों की जगह सीधा मोबाइल पर टिक-टिक कर सब कुछ जान लेते हैं।
भारत में जहां लोग साक्षर भी नहीं हैं वे चित्रों के माध्यम से वेब मीडिया का लाभ लेकर दुनिया से जुड़ रहे हैं। एक सर्वेक्षण के आंकड़े बतलाते हैं कि देश में 75 करोड़ लोग वेब मीडिया से जुड़े हैं। यद्यपि यह संख्या 80 प्रतिशत गरीबी और 35 प्रतिशत अशिक्षा वाले देश में अतिशयोक्ति ही लगती है परन्तु असंभव नहीं। आगे आना वाला समय ऐसा होगा कि जब मोबाइल ही उपभोक्ता का संसार होगा, वहीं खबरें, वहीं से बैंक खातों का संचालन, वहीं से रेल-बस के टिकट यहां तक कि घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति भी उसी से होगी।
इस बदलाव का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि आज जो समाज बिखर गया है, वह वापस जुड़ जाएगा, यह हर खास और आम की जरूरत बन ही जाएगा। व्यक्ति का दायरा घर, गांव, प्रांत, देश की सीमाओं से बाहर निकलकर पूरी दुनिया से हो जाएगा, बस एक ही शर्त रहेगी कि हर व्यक्ति को अपने आपको मोबाइल के सिस्टम से जोड़कर रखना होगा, जो मोबाइल से जुड़ जाएगा वह दुनिया से जुड़ जाएगा उसका नाम पता मोबाइल डायरेक्ट्री में होगा जो बाहर रहेगा, वह अलग-थलग पड़ जाएगा।
मसलन, डॉक्टर, वकील, शिक्षक, इंजीनियर यहां तक की घरेलू नौकरों के नाम भी मोबाइल पर मिलेंगे, हर जगह का नक्शा और वहां रहने वाले उनके कार्य सब टिक-टिक पर उपलब्ध होंगे। सहज प्रश्न होगा कि अखबार और वेब मीडिया में अंतर क्या रहेगा? सहज अन्तर मिल जाएगा कि अखबार एक क्षेत्र विशेष, वहां की भाषा, बोलचाल, रहन-सहन, जीवन शैली से प्रभावित होता है, उसमें भाषाई प्रतिबद्धताएं होती हैं परन्तु वेब मीडिया में ऐसी प्रतिबद्धता नहीं है। अखबार की भाषा सहज, सरल, स्पष्ट होनी चाहिए तो वेब चालू भाषा में ही चलती है यानी हिन्दी अंग्रेजी मिलाकर हिंग्लिश भाषा का प्रयोग खूब प्रचलित है और लोगों की पसंद भी बन रहा है।
हालांकि कई अखबारों ने जो संस्कृतनिष्ठ भाषा की विशेषता से चलते थे उन पर तो असर नहीं है
परन्तु युवा पाठकों को लुभाने के लिए कुछ सांध्य दैनिक व टेबलॉयड अखबारों ने मिला-जुला भाषायी प्रयोग शुरू कर दिया है। अब अंग्रेजी शब्दों का मिला-जुला प्रयोग कर रहे हैं, केवल अंग्रेजी ही नहीं अगर जेपनीज, प्रâेंच तथा अन्य भाषाओं के प्रचलित शब्द हैं तो वे भी उपयोग किये जाने लगे हैं।
लोग वेब मीडिया में ज्यादा विस्तार नहीं देखना चाहते लोगों को संक्षिप्त, स्पष्ट समाचार चाहिए होते हैं। अखबारों की हैडलाइन जैसी खबरें चाहिए हर खबर के विस्तार से वास्ता नहीं है। जो देखने में आया उसके अनुसार अखबार और वेब मीडिया के पाठक अलग-अलग होते हैं। इंटरनेट प्रयोग करने वाले आमतौर पर युवा और नई पीढ़ी के हैं।
जाने-माने मीडिया विश्लेषक और प्रभा साक्षी डॉट कॉम के संपादक बालेन्दु शर्मा ‘‘दधीच’’ मानते हैं कि इंटरनेट के पाठक देश-विदेश में पैâले हैं उनमें वे पाठक भी हैं जिन्हें हिन्दी ठीक से नहीं आती वे चाहते हैं कि समझ में आने वाली भाषा के शब्द ज्यादा आकर्षित करते हैं।
युवा विश्लेषक विनीत कुमार का कहना है कि आजकल पाठक कटाक्ष पसंद करता है क्योंकि कटाक्ष में खबर का आंतरिक स्वरूप भी दिख जाता है। इसीलिए जिन अखबारों या इंटरनेट पर समाचार कटाक्ष के साथ प्रस्तुत होते हैं वे ही हॉट डेक की तरह बाजारवादी व्यवस्था में चलने लगते हैं। विनीत कुमार मानते हैं कि अखबारों की भाषा निवेश की भाषा हो गई है, वे जो लिखते हैं उसकी एक लागत होती है जिसका बिजनेस मॉडेल होता है जो कहीं न कहीं भाषा, शैली को प्रभावित करता है।
अखबारों की तुलना में वेबसाइट पर जगह की समस्या नहीं रहती लेकिन समस्या जगह की नहीं समय की होती है, उन पाठकों के पास समय का अभाव है इसलिए वे जब समय मिलता है, जहां मिलता है, वहां अपना टेब या लैपटॉप खोलकर बैठ जाते हैं और टीवी की फटाफट 200 खबरों की तर्ज पर जल्दी से देश, दुनिया की प्रमुख खबरों से वाकिफ होना चाहते हैं।
एक्सप्रेस न्यूज समूह के प्रधान संपादक सनत जैन का आज की बाजारवादी व्यवस्था और बदलते परिवेश पर अनुभवजन्य अध्ययन है वे कहते हैं कि आने वाले कुछ समय में ही टीवी और अखबारों की तुलना में वेब मीडिया बाजार में छा जाएगा। इस विधा से जुड़े लोग ही संसार के सारे क्रिया कलापों के अंग रहेंगे जो नहीं जुड़ेंगे वे देश, परदेश और समाज से कट जाएंगे। इसलिए आने वाले सौ दो सौ साल तक यही रुझान रहने वाला है। श्री जैन का कहना है कि ई गवर्मेंट और गवर्नेस के मूल में जो भावना है उसका सीधा अर्थ यही है कि लोक प्रशासन की सबसे छोटी इकाई पंचायत से लेकर प्रदेश की सरकार और केंद्रीय सरकार तक सब एक दूसरे से सामूहिक और पृथक-पृथक आवश्कतानुसार जुड़े रहेंगे और जो समाज का बिखराव पिछले तमाम वर्षो में हो गया है वह वेब मीडिया और नेट के द्वारा फिर से जुड़ने का काम शुरू हो गया है। इस नये परिवेश से जुड़े रहने वाले लोग विश्व बिरादरी के सदस्य रह पाएंगे इसलिए सभी को प्रयत्नशील होना चाहिए कि जल्दी से जल्दी नई विधा को अंगीकार करने विश्व मैराथन में शामिल हो जाएं।