सफाई के लिए आज भी करना पड़ता है स्वच्छाग्रह
केंद्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन द्वारा चलाए गए स्वच्छ भारत अभियान को लेकर सरकार इसकी दूसरी वर्षगांठ पर भव्य कार्यक्रम चलाने जा रही है। जिसमें सफाई और स्वच्छता का अलग जगाया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बीते एक – दो दिनों के बीच स्वच्छता अभियान पर चर्चा कर इसे स्वच्छाग्रह बनाने पर जोर दिया गया। यदि देखा जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील सही भी नज़र आती है।
भारतीय मान्यता में हम जीते आए हैं। यदि हम पर अंकुश न लगे या फिर हमें नियमों में बांधा न जाए तो हम प्रतिबंधों को नहीं मानते हैं और तो और नियम लगाने के बाद भी हम उन्हें नहीं मानते हैं। मसलन हम गुटखा खा रहे होंगे और हमें अपने आसपास मौजूद किसी अन्य व्यक्ति से कोई गैरजरूरी बात भी करनी हो तो हम गुटखे को सड़क पर या किसी महत्वपूर्ण ईमारत की दीवार पर थूकने में तक हिचकते नहीं हैं।
हालात ये है कि अपने घर का कचरा सड़क पर डालकर घर तो साफ कर लेते हैं लेकिन इसके बाद फिर वही कचरा उनके घर में आ जाता है। हमने अपने देश के परिवेश की सुरक्षा सरकारी एजेंसियों पर छोड़ दी है। जिस पर हम उन्हें सहयोग नहीं करना चाहते हैं। न तो यहां पर जनभागीदारी जैसी बात नज़र आती है और न ही सफाई समिति जैसा कोई प्लान यहां पर है हालांकि केंद्र में राजग सरकार बनने के बाद स्वच्छता को लेकर लोगों में अलख जरूर जगाया जा रहा है।
गांधी जयंती अर्थात् 2 अक्टूबर को स्वच्छ भारत अभियान के दो वर्ष पूर्ण होने पर सरकार फिर सफाई की बात करेगी। मगर अभी लोगों में साफ – सफाई को लेकर जागरूकता लाने का काम कई स्तरों पर होना है। देश में सफाई अभियान का यह कार्य घर से प्रारंभ होकर, खेत, खलिहान और नदियों तक लाना होगा। अक्सर गांवों और शहरों में तक यह होता आया है कि किसी बड़े मैदान या खाली खेत में कोई सामाजिक आयोजन किया जाता है।
आयोजन के बाद वहां पर डिस्पोजेबल सामग्री बिखरी रहती है। यही डिस्पोजेबल सामग्री मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरण को प्रभावित करती है। जबकि हम इसे एक जगह एकत्रित कर उसे ऐसे लोगों तक पहुंचा सकते हैं जो इसे रिसाईकल कर उसका उपयोग कर पाते हों। ऐसे में पर्यावरण की बचत होगी और भारत एक सुंदर और स्वच्छ राष्ट्र बनेगा।