बांदा। बुंदेलखंड में ताकतवर महिला संगठन ‘गुलाबी गैंग’ में छह साल कमांडर रहीं संपत पाल को संकटों से छुटकारा मिलने के आसार नहीं हैं। कमांडर पद से बर्खास्तगी के बाद कांग्रेस ने पहले बांदा लोकसभा सीट से उन्हें टिकट से वंचित किया और अब एक अदालत के आदेश पर पुलिस उन्हें ‘बेघर’ कर सकती है। सुरक्षा के मुद्दों पर आक्रामक रहने वाली संपत पाल इस समय चौतरफा संकटों से घिरी हुई हैं। गुलाबी गैंग की महिलाओं ने उन पर तानाशाही का आरोप लगाकर दो मार्च को उन्हें गैंग की कमांडर पद और प्राथमिक सदस्यता से उन्हें बर्खास्त कर दिया था और महोबा की सुमन सिंह चौहान को कमान सौंपी थी। गैंग से बर्खास्तगी का असर यह हुआ कि कांग्रेस ने बांदा लोकसभा सीट से संपत पाल को टिकट नहीं दिया। साथ ही जर्मनी में 21 मार्च को सामाजिक कार्यकर्ता ऑमना की अगुआई में होने वाले महिला सेमिनार में शिरकत करने के लिए हवाई यात्रा का उनका टिकट भी निरस्त कर दिया गया। संपत के सामने नई मुसीबत जिले की एक अदालत के उस आदेश से आ गई है जिसमें उन्हें रिहायशी घर छोड़ने का हुक्म सुनाया गया है। अदालत का यह आदेश हालांकि डेढ़ साल पहले आया था लेकिन वह उच्च न्यायालय में अपील की वजह से बची रहीं। लेकिन हाईकोर्ट से अपील खारिज होने से उन्हें अब ‘बेघर’ होने का डर सताने लगा है। मामला कुछ यों है कि ससुराल रौली कल्याणपुर से निकाले जाने के बाद संपत पाल अपने परिवार के साथ बदौसा कस्बे से लगे दुबरिया गांव में इलाहाबाद राजमार्ग के फतेहगंज तिराहे पर करीब दस साल पूर्व धर्मराज सिंह पुत्र प्रभुदयाल की जमीन मुफ्त में मांगकर चाय की दुकान खोली थी लेकिन गुलाबी गैंग के वजूद में आने पर उन्होंने पक्का मकान बना लिया। वादी धर्मराज ने अपर जिला जज बांदा की अदालत में दायर किए गए वाद में कहा है कि विवादित भूमि गाटा संख्या-8741/1क 8741/1ख एवं गाटा संख्या-8741/1 कुल क्षेत्रफल ०.245 हेक्टेयर उसकी भूमिधर जमीन है जिस पर संपत पाल ने जबरन मकान बना लिया है। अदालत में दाखिल हलफनामे में संपत ने इस भूखंड को खुद की जमीन तो बताया लेकिन दस्तावेजी प्रमाण नहीं दे सकीं। राजस्व अभिलेखों में मौजूद साक्ष्यों के आधर पर विवादित भूखंड धर्मराज का पाया गया। प्रथम अपर जिला जज बांदा वी.के. श्रीवास्तव ने 8 जुलाई 2०11 को पारित आदेश में संपत की दलील खरिज कर दी और वादी धर्मराज को कब्जा दिए जाने का हुक्म सुना दिया। संपत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील दाखिल किया लेकिन वहां भी असफल रहीं। वादी धर्मराज ने बताया कि हाईकोर्ट से मामला निस्तारित होने के बाद उसने सिविल जज (जूनियर डिवीजन) अतर्रा की अदालत में प्रार्थनापत्र के साथ पुलिस बल को लगने वाला शासकीय खर्च भी जमा कर जरिए कोर्ट अमीन कब्जा दिलाने की आरजू की है। उधर संपत का कहना है कि वादी ने उन्हें मौखिक तौर पर यह जमीन बेची थी अब लालच के चलते वह अदालती आदेश पर बेघर करना चाह रहा है। कुल मिलाकर संपत के लिए ‘चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात’ वाली कहावत चरितार्थ हो रही है पुलिस जल्द ही अदालती आदेश के अनुपालन में उन्हें ‘बेघर’ कर सकती है।