गंगोत्रीधाम आने वालों सैलानियों और श्रद्धालुओं को अब गोमुख के दर्शन न होने के साथ गंगोत्री ग्लेशियर की भी वो रंगत नहीं दिखेगी। इस बदलाव से वैज्ञानिक भी सकते में हैं।
144 वर्ग किमी में फैले कभी लुभावने नीले रंग के दिखने वाले गंगोत्री ग्लेशियर का रंग अब प्रदूषण के कारण काला पड़ रहा है। इसकी सतह पर कार्बन और कचरे की काली पर्त जम गई है।
इसके साथ ही ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान बढ़ने से गढ़वाल हिमालय का यह सबसे बड़ा ग्लेशियर 18 मीटर प्रति वर्ष की गति से सिकुड़ता जा रहा है।
गंगा का उद्गम होने की वजह से गंगोत्री ग्लेशियर लोगों की आस्था का केंद्र है। लाखों की संख्या में देश-विदेश से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं। ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण के कारण ग्लेशियर का मुहाना गोमुख पहले ही बह चुका है और अब इस ग्लेशियर के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है।
ग्लेशियर के मुहाने को प्रदूषण और कचरे की काली पर्त ने ढक लिया है। वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान के ग्लेशियर स्टडी सेंटर के वैज्ञानिक ग्लेशियर की स्थिति देखकर लौटे हैं। गंगोत्री ग्लेशियर की माइक्रो क्लाइमेट में तेजी से बदलाव आ रहा है।