ज्ञान भंडार
देश में पहली बार मिला हरे रंग का चावल,
रायपुर.अभी तक आपने सफेद और भूरे रंग का चावल देखा होगा। लेकिन अब बहुत जल्द हरे रंग के चावल की नई प्रजाति देखने को मिलेगी। जिसमें उत्पादन क्षमता और महक के साथ कई विशेषताएं है। यह प्रजाति इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को पिछले साल किसानों से प्राप्त हुई थी। जिसके बाद से विवि में कौतुहल का विषय बना हुआ था। परिसर में बुवाई कर रिसर्च का काम शुरु कर दिया गया है।
– प्रजाति का नाम तिलकस्तूरी और कोरमा रखा गया है। विवि का दावा है कि देश में पहली बार इस तरह की प्रजाति प्राप्त हुई है।
– इसी तरह के अन्य प्रजातियों के लिए पौधा किस्म संरक्षण एवं कृषक अधिकार प्राधिकरण नई दिल्ली द्वारा किसानों के लिए कृषक प्रजातियों का डीयूएस परीक्षण कार्यक्रम संचालित किया।
– ताकि उनके द्वारा संरक्षित प्रजातियों की विशेषता जानकर बौद्धिक संपदा अधिकार दिलाई जाए। राज्य से अब तक 1267 नई प्रजाति की सैंपल प्राधिकरण को भेजी गई है।
– इसी चरण में हरे रंग के चावल तिलकस्तूरी और कोरमा का सैंपल भेजकर हमारे द्वारा रिर्सच किया जा रहा है। किसानों द्वारा संग्रहित दुर्लभ प्रजाति के धान किस्मों को बाजार तक लाने के लिए विवि प्रयासरत है।
– विवि किसानों द्वारा संरक्षित धान समेत अन्य फसलों के दुर्लभ प्रजातियों को बाहर लाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है।
– विवि के अनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ.दीपक शर्मा ने बताया कि यह प्रजाति दुर्ग के रोहित साहू और धमतरी के प्रहलाद साहू से प्राप्त हुई। जो वर्षो से संरक्षण कर रखे हैं, लेकिन इसकी बुवाई और प्रचार-प्रसार नहीं कर पाए।
नई प्रजाति की विशेषता
हरे रंग का चावल, अवधि 135 दिन, प्रति एकड़ 4 टन उत्पादन,कम पानी और सभी तापमान में भी उत्पादन, प्रचुर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, पौधे की उंचाई 125 सेमी।
हरे रंग का चावल, अवधि 135 दिन, प्रति एकड़ 4 टन उत्पादन,कम पानी और सभी तापमान में भी उत्पादन, प्रचुर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, पौधे की उंचाई 125 सेमी।
अभी भी कई दुर्लभ प्रजाति मिलने की उम्मीद
सभी फसलों की प्रजातियों में अलग-अलग जीन्स पायी जाती है। ऐसे में हरे रंग का दुर्लभ चावल मिलना कृषि वैज्ञानिकों को फसलों में इनोवेशन करने के लिए चुनौती दे रही है। इससे कृषि क्षेत्र की कई समस्याएं दूर हो सकती है। निश्चित रुप से राज्य में धान की 23 हजार प्रजाति है। अभी भी कई दुर्लभ प्रजाति मिलने की उम्मीद है।” -डॉ.आरके साहू, कृषि विशेषज्ञ
हम चाहते है कि इन दुर्लभ बीजों का उपयोग ज्यादा से ज्यादा हो। जिसका सीधा लाभ किसानों को मिले। हरे रंग की तिलकस्तूरी और कोरमा प्रजाति देश में पहली बार है। इसलिए विवि इस पर गंभीरता से रिर्सच कर रही है।