हाईकोर्ट : क्यों न संसदीय सचिवों की नियुक्ति रद्द कर दी जाए
बिलासपुर, नईदुनिया न्यूज। एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने राज्य शासन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा है कि क्यों न संसदीय सचिवों की नियुक्ति रद्द कर दी जाए । डिवीजन बेंच ने राज्य शासन के साथ ही सभी 11 संसदीय सचिवों को भी नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया है।
रायपुर के आरटीआई कार्यकर्ता राकेश चौबे ने अपने वकील के जरिए हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर सत्ताधारी दल द्वारा 11 विधायकों को संसदीय सचिव के पद पर नियुक्ति को गलत ठहराया है। संसदीय सचिव नियुक्त करने के साथ ही राज्यमंत्री का दर्जा प्रदान किया है व एक-एक कैबिनेट मंत्री के सहयोगी के रूप में विभाग देखने की जिम्मेदारी भी दे दी है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि सत्ताधारी दल जो कि राज्य की सत्ता पर काबिज है अपने विधायकों को उपकृत करने के उद्देश्य से नियम विरुद्घ संसदीय सचिव के पद पर नियुक्ति दे दी है। ऐसा कर राज्य सरकार ने संवैधानिक प्रावधानों का खुले तौर पर उल्लंघन किया है।
याचिकाकर्ता ने संवैधानिक बाध्याताओं का हवाला देते हुए कहा कि संवैधानिक प्रक्रिया में इस तरह की नियुक्ति का कोई उल्लेख नहीं है। याचिकाकर्ता ने कहा कि राज्य सरकार ने राजनीतिक हितों को साधने की गरज से जनता की गाढ़ी कमाई का एक बड़ा हिस्सा इनकी सुविधाओं में खर्च कर रही है। सरकारी खजाने पर इसके चलते अतिरिक्त भार पड़ रहा है। इसके बाद भी 11 विधायकों को लाभ के पद से नवाजा गया है।
याचिकाकर्ता ने हिमाचल प्रदेश व दिल्ली का भी दिया उदाहरण
याचिकाकर्ता ने संसदीय सचिवों की नियुक्ति के संबंध में दिल्ली व हिमाचल प्रदेश का हवाला दिया है। याचिका के अनुसार हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किए गए संसदीय सचिवों की नियुक्ति को रद्द करने का आदेश जारी किया था। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा भी संसदीय सचिवों की नियुक्ति को रद्द की मांग की है।
ये विधायक हैं संसदीय सचिव की कुर्सी पर काबिज
राजू सिंह क्षत्रीय, तोखन साहू, अंबेश जांगड़े,लखन लाल देवांगन, मोतीलाल चंद्रवंशी, लाभचंद बाफना, श्रीमती रुपकुमारी चौधरी, शिवशंकर पैकरा,सुनीति राठिया, चंपादेवी पावले, गोवर्धन सिंह मांझी ।