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ट्रंप के फैसले से अफरा-तफरी, कई मुस्लिम हिरासत में

सात मुस्लिम बहुल देशों के नागरिकों को गहन जांच के बाद ही अमेरिका में प्रवेश की इजाजत देने के डोनाल्ड ट्रंप के फैसले के फौरन बाद ही इस पर अमल भी शुरू हो गया। शनिवार को ईरान और इराक के कई लोगों को अमेरिका जाने से रोक लिया गया।
 
दूसरी तरफ ट्रंप के आदेश के दौरान विमान में सवार रहे इन मुस्लिम देशों के लोग जब अमेरिका पहुंचे, तो उनको हिरासत में ले लिया गया। ट्रंप का यह कदम कट्टर इस्लामिक आतंकवादियों को अमेरिका से दूर रखने की नीति का हिस्सा है।

ट्रंप के इस आदेश के तहत इराक, सीरिया, ईरान, सूडान, लीबिया, सोमालिया और यमन के लोगों की गहन जांच के बाद ही उन्हें अमेरिका में प्रवेश मिल सकता है। काहिरा में एक ईरानी दंपति और उनके दो बच्चों को न्यूयॉर्क जाने से रोक दिया गया। अमेरिकी वीजा और सीट आरक्षित होने के बावजूद भी परिवार को विमान में चढ़ने नहीं दिया गया।

इसके अलावा कई लोगों को हिरासत में लिया गया है। वहीं, ट्रंप के इस आदेश की अमेरिका समेत दुनिया भर में तीखी आलोचना हो रही है। शनिवार को अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन और अन्य एडवोकेसी समूहों ने ट्रंप के आदेश को अदालत में चुनौती दी है। वहीं, ईरान ने प्रतिबंध को अपमानजनक बताते हुए इसे वापस लेने को कहा है। 

पेंटागन में इस आशय के एक कार्यकारी आदेश पर दस्तखत करते हुए ट्रंप ने कहा, ‘मैं अमेरिका से कट्टर इस्लामिक आतंकवादियों को दूर रखने के लिए अच्छी तरह जांच पड़ताल के कदम उठाने जा रहा हूं। हम उन्हें यहां रहने नहीं देना चाहते।

हम उन्हीं लोगों को अपने देश में आने देंगे जो अमेरिका को सहयोग देंगे और अमेरिकियों को प्यार करेंगे।’ उन्होंने सीरिया से भागकर आने वाले परिवारों के लिए अगले आदेश तक प्रतिबंध लगा दिया है। इस तरह ट्रंप ने आतंकी गतिविधियों से जुड़े सात मुस्लिम देशों के नागरिकों का एक तरह से अमेरिका में प्रवेश रोक दिया है।

‘जो विदेश में हमारे सैनिकों के लिए खतरा हैं उन्हें अपने देश नहीं आने देंगे’

ट्रंप ने कहा, ‘11 सितंबर 2011 के बाद कई विदेशी नागरिकों को आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त पाए जाने पर दोषी पाया गया है। इनमें पर्यटक, छात्र या रोजगार वीजा पर अमेरिका आने वाले नागरिक या अमेरिकी शरणार्थी पुनर्वास कार्यक्रम के तहत यहां आने वाले नागरिक भी शामिल रहे हैं।’ हालांकि ट्रंप ने अपनी अत्यंत सख्त जांच के बारे में खुलासा नहीं किया।
ट्रंप ने कहा कि हम चाहते हैं कि हम उन लोगों को अपने देश में प्रवेश नहीं देंगे, जो देश-विदेश में हमारे सैनिकों के लिए खतरा बन रहे हैं। इस आदेश के मुताबिक मुसलमानों के बजाय ईसाई अथवा अन्य धर्मों के लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी।

अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन में जनरल जेम्स मैटिस को रक्षा मंत्री बनाए जाने के दौरान आयोजित होने वाले शपथ समारोह के बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने इसकी घोषणा की। उन्होंने कहा कि आने वाले चार माह तक अमेरिका में शरणार्थियों का प्रवेश और पुनर्वास भी पूरी तरह निलंबित हो जाएगा।

नए नियमों में इस बात की पुख्ता व्यवस्था करने की कोशिश की जाएगी कि जिन लोगों को अमेरिका में शरणार्थी का दर्जा मिला हुआ है वे अमेरिका के लिए सुरक्षा संबंधी कोई खतरा पैदा न करें। हालांकि मानवाधिकार संगठनों ने ट्रंप के इस कदम की आलोचना करते हुए कहा है कि इससे देश की अप्रवासियों का स्वागत करने वाली प्रतिष्ठा धूमिल होगी। साथ ही संयुक्त राष्ट्र ने ट्रंप से अमेरिका की प्रवासियों को शरण देने की परंपरा को बनाए रखने को कहा है। 

जुकरबर्ग बोले, प्रवासियों का ही देश है अमेरिका

शांति के लिए सबसे कम उम्र में नोबेल पुरस्कार पाने वाली पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई ने कहा है कि वह ट्रंप के इस आदेश से ‘बहुत दुखी’ हैं। मलाला ने ट्रंप से अनुरोध किया है कि वह दुनिया के सबसे असुरक्षित लोगों को इस तरह अकेला न छोड़ें।
पाक में कन्या शिक्षा की खुलकर वकालत करने वाली 19 वर्षीय मलाला को वर्ष 2012 में स्कूल जाते वक्त आतंकवादियों ने सिर में गोली मारी थी। मलाला ने कहा कि मैं अत्यंत दुखी हूं कि आज राष्ट्रपति ट्रंप हिंसा और युद्ध से जूझ रहे देशों को छोड़कर भाग रहे बच्चों, माताओं और पिताओं के लिए दरवाजे बंद कर रहे हैं।

मुस्लिम देशों से आने वाले शरणार्थियों पर रोक लगाने के फैसले पर फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने ट्रंप के नाम फेसबुक पर संदेश लिखा है। उन्होंने ट्रंप से अनुरोध किया है कि वह शरणार्थियों के लिए अमेरिका के दरवाजे बंद ना करें।

उन्होंने कहा है कि उनके पूर्वज जर्मनी, ऑस्ट्रिया और पोलैंड से आए थे। उनकी पत्नी प्रिसेला के दादा-परदादा चीन और वियतनाम के शरणार्थी थे। उन्होंने कहा, ‘अमेरिका प्रवासियों का ही देश है और देश को इस पर गर्व होना चाहिए। दुनिया भर के लोग यहां आकर रहते हैं, काम करते हैं और अपना योगदान देते हैं, जिससे अमेरिका को लाभ होता है।’

गूगल ने फैसले की निंदा की, विदेश से 100 कर्मचारियों को वापस बुलाया

ईरान के राष्ट्रपति हसन रोहानी ने ट्रंप द्वारा मैक्सिको सीमा पर दीवार बनाने के फैसले की तीखी आलोचना की और कहा कि यह समय देशों के बीच दीवार बनाने का नहीं है। रोहानी ने कहा कि ट्रंप भूल रहे हैं कि कई साल पहले बर्लिन की दीवार भी गिरा दी गई थी।

उन्होंने कहा कि यदि किन्हीं देशों के बीच में दीवार है तो उसे गिरा दिया जाना चाहिए। हालांकि रोहानी ने ट्रंप द्वारा ईरान पर लगाए गए वीजा प्रतिबंध पर सीधे रूप से कुछ नहीं बोला लेकिन कहा कि ईरान ने 2015 में परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद से विदेशी पर्यटकों के लिए अपने दरवाजे खोले हुए हैं।

भारत में जन्मे गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने ट्रंप के विवादित आव्रजन आदेश की निंदा की है। उन्होंने कहा कि इससे दुनियाभर की प्रतिभाओं को अमेरिका पहुंचने में रुकावटें पैदा हो जाएंगी। गूगल ने विदेश यात्रा पर गए अपने 100 कर्मचारियों को अमेरिका लौटने का आदेश दिया है, जो इस फैसले से प्रभावित होंगे।

स्टाफ को भेजे ई-मेल में पिचाई ने कहा कि सात मुस्लिम-बहुल देशों के नागरिकों पर अमेरिकी प्रतिबंध के फैसले से कम से कम 187 गूगल कर्मचारी प्रभावित होंगे। उन्होंने आगे कहा, ‘हम इस फैसले और ऐसे किसी भी प्रस्ताव से पड़ने वाले प्रभाव से परेशान हैं जिससे गूगल के कर्मचारियों और उनके परिवारों या दुनियाभर के प्रतिभाशाली लोगों को अमेरिका पहुंचने में बाधा आए।’ 

 
 

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