किसानों की सम्पन्नता ही लक्ष्य
साक्षात्कार : वीरेन्द्र सिंह ‘मस्त’
रामकुमार सिंह
खांटी किसान होने के साथ ही खेत, खलिहान और खेती की सिर्फ परिभाषा से ही परिचित नहीं खेतों में अपना पसीना भी बहाने वाले इस ऐतबार से ही वे विरोधियों को चुनौती देने में भी नहीं चूकते कि खेती किसानी को लेकर उनका ज्ञान सतही नहीं है। उन्हें मालूम है कि चीनी खेत में नहीं उगती और न ही कॉटन। वे परंपरागत कृषि को तो समझते तो हैं ही, कृषि क्षेत्र में होने वाली नयी प्रगति और तकनीकों की भी उन्हें खूब जानकारी है। यही वजह है कि जब भी संसद में या फिर संसद के बाहर किसानों की बात पर बहस होती है तो वे अपने तर्कों से उनका मुंह बंद करने में हर बार सफल रहते हैं। उनका स्वदेशी जागरण मंच और भारतीय मजदूर संघ से भी जुड़ाव रहा।
वास्तव में दत्तोपंत ठेंगडी के नेतृत्व वाले स्वदेशी जागरण मंच की स्थापना उनके ही नार्थ एवेन्यू के आवास पर हुई थी और बरसों तक उसका कामकाज उनके यहां से ही चलता रहा था। भारत की खेती-किसानी पर जब डंकेल ड्राफ्ट की मार पड़ रही थी, तब वे इस किसान विरोधी प्रावधानों के खिलाफ खड़े होने वाले पहले व्यक्तियों में से थे। किसानों के इतर राजनीति में पैसे और पिस्तौल के दखल के खिलाफ भी उन्होंने पूरे पूर्वांचल में बहुत सफल अभियान चलाया। वहीं भदोही के कारपेट उद्योग पर जब भी कोई संकट खड़ा हुआ, तब कारपेट उद्योग के समर्थन में सबसे आगे बढ़कर नेतृत्व और संघर्ष की कमान उन्होंने ही संभाली। सक्रिय राजनीति में मूल्यों, मर्यादाओं और शुचिता के पक्षधर, अपने चरित्र और चिंतन के कारण भी इनको खूब ख्याति मिली। इसीलिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, भारतीय मजदूर संघ, किसान मोर्चे जैसे महत्वपूर्ण संगठनों में इन्हें अगुवाई का मौका मिला। श्री सिंह 1991 और 1998 में क्रमश: 10वीं और 12वीं लोकसभा के सदस्य चुने गए और 1996-98 तक उत्तर प्रदेश में भाजपा किसान मोर्चा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वर्तमान में 16वीं लोकसभा के सदस्य के रूप में लोकसभा में किसानों के हितों के विषयों को प्रमुखता से रखने का काम करते हैं। बीते साल लोकसभा में जब किसानों के मुद्दे पर बहस हो रही थी तब वीरेन्द्र सिंह मस्त ने अपने तर्कों से विरोधियों के मुंह सिल से दिए थे। उप्र की ही गौरवशाली और प्रतिभा संपन्न माटी के सपूत वीरेंद्र सिंह। ‘मस्त’ स्वभाव के कारण यह उपनाम हासिल करने वाले वीरेन्द्र सिंह वर्तमान में उप्र की भदोही लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं। इस मस्त शख्सियत और गंभीर राजनीतिज्ञ से सम्पादक रामकुमार सिंह से हुई बेबाक बातचीत के प्रमुख अंश-
सबसे पहले आपको भाजपा किसान मोर्चा का अध्यक्ष बनने पर बधाई। किसान मोर्चा का अध्यक्ष के नाते आपकी पहली चुनौती क्या होगी?
धन्यवाद। देश में 82 फीसदी जनसंख्या किसानों की है, हमारी पहली चुनौती है कि किसानों की आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक मर्यादा स्थापित हो, किसान संपन्न हों यही हमारी पहली कोशिश होगी। कृषि भारत की जीवनधारा है और इस जीवनधारा का वाहक किसान। हम किसानों की संपन्नता और सम्मान को स्थापित करके देश की जीवनधारा को ही सशक्त बनाने का प्रयास करेंगे।
इस बदलाव के प्रयास की रूपरेखा क्या होगी?
डॉ. राममनोहर लोहिया और पं. दीनदयाल उपाध्याय इस बात से सहमत थे कि किसानों के हक में नित नये आयामों और नीतियों में उनकी सुविधानुसार बदलाव किये जायें। हम किसान नीतियों में वर्तमान परिस्थिातियों के हिसाब से सकारात्मक बदलाव की बात करेंगे। देश के अन्य सभी उत्पाद निर्माता अपने उत्पाद का मूल्य स्वयं तय करते हैं जबकि हमारे देश में किसान ही एक ऐसा वर्ग है जो अपनी फसल का मूल्य स्वयं नहीं तय कर पाता। हम इसकी पुरजोर वकालत करेंगे कि किसान अपनी फसल का दाम स्वयं तय कर पाने में सक्षम हो सकें।
क्या आप देश भर के किसानों को एक मंच पर ला सकेंगे?
उत्तर प्रदेश ही नहीं देश का किसान भाजपा के साथ है। मैं किसान हूं और जब किसान मेरे सिर पर किसानी पगड़ी देखेगा तो वह बीजेपी से अपने आपको जोड़ेगा। हम किसानों को हर वह सुविधा देने की बात करेंगे जिससे किसान की तरक्की और खुशहाली बढ़े। हम प्रयास करेंगे कि किसानों की नीतियां तय करने में किसानों की भी सहभागिता हो।
किसान यूनियन और अफसरशाही किसानों के विकास में सहायक हैं या बाधक?
किसान यूनियनों से किसानों को कुछ भी लाभ नहीं होता। कई बार अफसरशाही ऐसी पॉलिसी तय करता है जो व्यावहारिक नहीं होती। जैस गेहूं का आयात कहीं से व्यवहारिक नहीं लगता। हम इस पर रोक लगायेंगे। हम प्रयास करेंगे कि किसान नीतियों को तय करने वाले एसी कमरो में बैठने वाले योजनाकार ही न हों, उसमें कुछ ऐसे लोग भी शामिल हों जिन्हें व्यावहारिक धरातल पर किसानों की या कृषि की मूलभूत जानकारी भी हो।
आप एक साथ गांधीवादी, लोहियावादी व समाजवादी कैसे रह पाते हैं जबकि आप भाजपा में हैं?
यह सही है कि मेरे गांधीवादियों, लोहियावादियों या यूं कहें समाजवादियों से अच्छे संबंध रहे हैं। इन सभी से मेरा घनिष्ठ संबंध था और आज भी है। गांधीवादी इतिहासकार धर्मपाल से मेरे घनिष्ठ संबंध रहे हैं। मैं जेपी ट्रस्ट से भी जुड़ा रहा हूं। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी से तो घनिष्ठता थी ही, जॉर्ज फर्नान्डिस से भी मेरे बहुत सौहाद्र्र भरे संबंध रहे हैं।
21वीं सदी के भारत और गुलाम भारत में आप क्या अंतर देखते हैं?
भारत सोने की चिड़िया भी कहा जाता था और विश्व गुरु भी। भारत की यह स्थिति भारत की स्वदेशी प्रणाली के लागू होने से थी। गांव-गांव स्वायत्त थे, और एक-दूसरे से इस तरह जुड़े थे कि कला-कौशल, पठन-पाठन, उद्योग-धंधे, साहित्य-संस्कृति आदि सभी का सर्वोच्च स्तर तक विकास होता चले। जब पश्चिम में स्कूल-कॉलेज भी नहीं खुले थे, तब भारत में नालंदा और तक्षशिला में 70-70 विषयों में स्नातक की पढ़ाई होती थी। यह भारत के गांवों के स्वतंत्र, स्वायत्त और मजबूत होने से सम्भव हुआ था।
ये आपके अमेरिका जाने को लेकर क्या विवाद है?
नहीं, विवाद कुछ नहीं है। हुआ यह था कि अमेरिका जाने के लिए वीजा बनवाते वक्त जब यह बात सामने आयी कि हमें किसानी पगड़ी उतारकर अमेरिका जाना होगा, तो मैंने तत्काल मना कर दिया और नहीं गया। दरअसल, अमेरिकी दूतावास ने मुझे किसानों पर एक कार्यक्रम के लिए अमेरिका में आमंत्रित किया था। जब मैं वहां वीजा डॉक्युमेंटेशन के लिए पहुंचा, तो उन्होंने बिना पगड़ी के मेरी तस्वीर लेनी चाही, जिससे मैंने इनकार कर दिया। वास्तव में मैंने उन्हें आमंत्रित करने के लिए नहीं कहा था। उन्होंने ही मुझे आमंत्रित किया था।
नोटबंदी का किसानों पर क्या असर देखते हैं?
नोटबंदी से किसानों को क्षणिक समस्या का सामना तो करना पड़ा है, लेकिन दीर्घकाल में इससे किसानों को बहुत लाभ होने वाला है। नोटबंदी से कालाबाजारी पर अंकुश लगेगा, जिसका सीधा फायदा किसानों को पहुंचेगा।
लोकसभा में आपकी ताजा टिप्पणी पर खासा हंगामा हुआ, ऐसा क्या हुआ था?
मैंने ऐसी कोई असंसदीय भाषा का प्रयोग नही किया कि जिसके लिए माफी मांगने की जरूरत पड़े। वास्तव में कांग्रेस को पूरे देश से मांफी मांगनी चाहिए कि आखिर वह संसद ठप करने पर क्यों अड़ी रही? उसे किसने इस बात का विशेषाधिकार दे दिया कि वह सदन में प्रधानमंत्री को हिटलर कहे। ऐसे नारे लगाए कि, मोदी सरकार होश में आओ। दरअसल कांग्रेस वाले इस बात को हजम नहीं कर पा रहे हैं कि कैसे एक आम आदमी प्रधानमंत्री बन गया है? सच्चाई यह है कि राहुल गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किसान और खेत की बातें केवल किताबों में पढ़ी है, लिहाजा वे किसानों की असली पीड़ा कहां समझेंगे।
लेकिन आपकी टिप्पणी को तो लोकसभा की कार्यवाही से निकाल दिया गया, आखिर क्यों?
इस पर मैं कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सकता। यह लोकसभा अध्यक्ष का विशेषाधिकार है। वैसे मैं आपको बता दूं कि मैं खुद इतना अनाज उपजाता हूं कि इन दोनों नेताओं (राहुल गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया) की सात पीढ़ियां खा सकती हैं।
इसके बाद भी आपने सांसदों को कुश्ती लड़ने के लिए क्यों ललकारा?
मुस्कुराते हुए, संसद जनसरोकार से जुड़े मुद्दों पर बहस करने के लिए है, न कि हंगामा करने के लिए। लोकसभा में खेल के मसले पर चर्चा के दौरान विपक्षी सांसदों के हंगामे पर मैंने कहा था कि मैं कुश्ती का खिलाड़ी रहा हूं। विपक्ष के लोग हंगामा बंद नहीं किए तो उन्हें कुश्ती से सबक सिखा सकता हूं। आज भी इतना दमखम तो है ही कि दुनिया का कोई सांसद मुझे कुश्ती में नहीं हरा सकता। जनता के आदेश पर देशभर से पांच सौ से अधिक सांसद चुनकर लोकसभा में आते हैं, लेकिन कुछ लोगों ने मिलकर संसद के अधिकारों का अपहरण कर लिया है। बे सिर-पैर की बातों को लेकर हंगामा किया जा रहा है। जनता की समस्याएं भुला दी गईं हैं। संसद की कार्यवाही में आए दिन खलल पड़ने से तकलीफ होती है।