उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में पलायान सबसे बड़ा मुद्दा है। हालात यह हैं कि उत्तराखंड के तीन हजार गांव में एक भी मतदाता नहीं है।
देहरादून, [केदार दत्त]: ज्ञानार्जन व तीर्थाटन के लिए तो पलायन की बात समझ में आती है। लेकिन, उत्तराखंड में हालात जुदा हैं। यहां तो जिसने एक बार गांव से विदा ली दोबारा वहां का रुख नहीं किया। उम्मीद थी कि अलग राज्य बनने के बाद तस्वीर बदलेगी, लेकिन इसमें रत्तीभर भी बदलाव नहीं हुआ। बल्कि, गुजरे 16 सालों में तो पलायन की रफ्तार थमने की बजाए ज्यादा तेज हुई है। सूबे के कुल 16793 गांवों में से तीन हजार का वीरान पड़ना इसे तस्दीक करता है। दो लाख 57 हजार 875 घरों में ताले लटके हैं। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में यह सबसे बड़ा मुद्दा है।
चीन और नेपाल से सटे सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कहे जाने वाले उत्तराखंड में गांवों का खाली होना बाह्य व आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरनाक हो सकता है। बावजूद इसके अब तक यहां की सरकारों ने शायद ही कभी पलायन के मुद्दे पर गंभीरता से मंथन कर इसे थामने के प्रयास किए हों। इसी का नतीजा है कि रोजगार के लिए न तो पहाड़ में उद्योग चढ़ पाए और न मूलभूत सुविधाएं ही पसर पाईं। ऐसे में गांव खाली नहीं होंगे तो क्या होगा।
किसी भी क्षेत्र और राज्य के विकास के लिए 16 साल कम नहीं होते, मगर उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों के सुदूरवर्ती गांवों के हालात आज भी ठीक वैसे ही हैं जैसे राज्य बनने से पहले थे। ये बात अलग है कि उत्तराखंड की मांग के पीछे भी गांवों को सरसब्ज बनाने के साथ ही शिक्षा एवं रोजगार के अवसर जुटाने की मंशा थी, मगर सियासतदां ने विषम भूगोल वाले पहाड़ के गांवों की पीड़ा को समझा ही नहीं। परिणामस्वरूप शिक्षा, रोजगार व सुविधाओं का अभाव लोगों को पलायन के लिए विवश कर रहा है।
अब थोड़ा हालात पर भी नजर दौड़ाते हैं। राज्य में सरकारी अस्पताल तो खुले हैं, लेकिन इनमें चिकित्सकों के आधे से अधिक पद खाली हैं। दवा मिलना तो दूर की बात है। शिक्षा की बात करें तो एनुअल स्टेटस आफ एजुकेशन की रिपोर्ट बताती है कि बुनियादी शिक्षा बदहाल है। सरकारी प्राथमिक स्कूलों में 40 फीसद से अधिक बच्चे गुणवत्ता के मामले में औसत से कम हैं। 71 फीसद वन भूभाग होने के कारण पहाड़ में तमाम सड़कें अधर में लटकी हुई हैं।
रोजगार के अवसरों को लें तो 2008 में पर्वतीय औद्योगिक प्रोत्साहन नीति बनी, मगर उद्योग पहाड़ नहीं चढ़ पाए। करीब चार हजार के करीब तोक गांवों को बिजली का इंतजार है। जिन क्षेत्रों में पानी, बिजली आदि की सुविधाएं हैं, उनमें सिस्टम की बेपरवाही किसी से छिपी नहीं है।इस सबके चलते पलायन की रफ्तार तेजी से बढ़ी है। पहाड़ से जनशून्य होते गांवों का बोझ राज्य के शहरों पर बढ़ने लगा है। आंकड़ों पर ही गौर करें तो पलायन के कारण अल्मोड़ा और पौड़ी जनपदों में आबादी घटी है। वहीं, दूसरी तरफ देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल, ऊधमसिंहनगर में जन दबाव बढ़ा है। अंतर्राष्ट्रीय एकीकृत विकास केंद्र (ईसीमोड) के एक अध्ययन पर नजर दौड़ाएं तो कांडा (बागेश्वर), देवाल (चमोली), प्रतापनगर (टिहरी) क्षेत्र के गांवों से पलायन दर लगभग 50 फीसद तक पहुंच गई। इनमें 42 फीसद ने रोजगार, 26 फीसद ने शिक्षा और 30 फीसद ने मूलभूत सुविधाओं के अभाव में गांव छोड़ना मुनासिब समझा।
तस्वीर बताती है कि पलायन के मुद्दे पर सरकारें कितनी गंभीर रही हैं। पलायन थामने के मद्देनजर विकास नीति में पर्वतीय परिप्रेक्ष्य की झलक नजर नहीं आती। न तो रोजगार की ठोस नीति बनी और न युवा नीत। अलबत्ता, हर बार ही चुनाव से ऐन पहले युवाओं को सब्जबाग दिखाने के लिए सियासी दल हर हथकंडा अपनाते आ हैं, लेकिन चुनाव के बाद…। और तो और अब तक यहां राज करने वाले दलों के घोषणा पत्रों में भी रोजगार का मुद्दा शामिल रहा है, लेकिन एजेंडे में मसला हाशिये पर ही रहा।
पहाड़ में पलायन से खाली हुए घर
जनपद—————घरों की संख्या
अल्मोड़ा—————-36401
पौड़ी——————–35654
टिहरी——————33689
पिथौरागढ़————-22936
देहरादून—————20625
चमोली—————–18535
नैनीताल————–15075
उत्तरकाशी———–11710
चंपावत—————11281
रुद्रप्रयाग————–10970
बागेश्वर—————10073
उत्तराखंड में जनसंख्या में वृद्धि एवं कमी
जनपद———–पुरुष——-महिला
पौड़ी———–(-14331)——-(-19225)
अल्मोड़ा——-(-6449)——-(-10018)
टिहरी——-(-364)————-1816
रुद्रप्रयाग——-261————1971
चमोली——-6000————-6370
पिथौरागढ़——-9309———4655
बागेश्वर——-5203———–3877
चंपावत——-17833———12373
उत्तरकाशी——-16422——-16952
देहरादून——-73923———-71676
ऊधमसिंहनगर——-115657——-115384
हरिद्वार——-101605——-97307
नैनीताल——-42586——-46784
(स्रोत: जनगणना-2011)
100 से कम आबादी वाले गांव
जनपद, गांवों की संख्या
चमोली—————–06
अल्मोड़ा—————03
पिथौरागढ़————-02
नैनीताल—————02
टिहरी——————01
पौड़ी——————07
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100 से 200 की आबादी वाले गांव
अल्मोड़ा—————59
पौड़ी——————-37
पिथौरागढ़———–15
चमोली—————18
टिहरी—————-12
उत्तरकाशी———-06
बागेश्वर————-04
चंपावत————–02