ज्यादा शक्कर खाने से मोटापा और दिल की बीमारी का खतरा
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ढाई हजार साल पहले से किया जा रहा शक्कर का उपयोग
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कैंसर का कारण भी बन सकता है इसका अधिक सेवन
शायद ही विश्व का कोई भी हिस्सा होगा जहां खाद्य पदार्थों में शक्कर का किसी न किसी रूप में उपयोग किया जाता हो। ताजा आंकड़ों के मुताबिक इस समय लगभग 27 लाख हेक्टेयर जमीन पर उत्पादन की जाने वाली गन्ना की खेती दुनिया की तीसरी सबसे कीमती फसल है। चीनी गन्ने का सबसे महत्वपूर्ण कारोबारी उत्पाद है।
यही शक्कर एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट की वजह भी बन चुकी है जो लगातार बढ़ता जा रहा है। जिन देशों में कार्बोहाइड्रेट के स्रोत के रूप में या बस स्वाद के लिए ही खाद्य पदार्थों में चीनी का अधिक प्रयोग होता है वहां की आबादी में मोटापा एक महामारी की तरह फैल रहा है। साथ ही वहां इससे जुड़ी बीमारियां जैसे कैंसर, मनोभ्रम यानी उन्माद , दिल की बीमारियां भी आम होती जा रही हैं। इन देशों में भारत का स्थान काफी आगे है। दूसरी जगह के आदिमानवों की तरह भारतीयों के लिए गन्ना चारा नहीं था। ढाई हजार साल पहले उन्होंने सबसे पहले रसायनों का प्रयोग कर चीनी बनाने की कला में महारत हासिल कर ली थी। चीनी किस तरह धरती और हमारे स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा बनी, यह समझने के लिए गन्ने की फसल और चीनी निर्माण का इतिहास हमारी काफी मदद कर सकता है।
मानव शरीर का विकास इस तरह हुआ है कि उसे काफी कम मात्रा में चीनी की जरूरत है और जो रिफाइंड चीनी हम उपयोग करते हैं उसकी जरूरत तकरीबन नहीं है। चीनी हमारे भोजन में संयोगवश शामिल हो गई। ऐसा माना जाता है कि गन्ने का इस्तेमाल पहले-पहल ‘चारे’ के रूप में हुआ। यह सुअरों का चारा था और इस दौरान आदिमानव भी कभी-कभार उसे चबाता रहा होगा।
भारत में ढाई हजार साल पहले उन्होंने सबसे पहले रसायनों का प्रयोग कर चीनी बनाने की कला में महारत हासिल कर ली थी। फिर यह तकनीकी उत्तर-पूर्व में चीन की तरफ फैली और अरब देशों के यात्री इसे अपने-अपने मुल्कों में ले गए। चीनी के कारोबार का शिकार भारतीय भी हुए हैं। 19वीं शताब्दी के मध्य में अंग्रेजों ने हजारों भारतीय बंधुआ मजदूरों को सूरीनाम, मॉरीशस, फिजी द्वीपों के साथ-साथ अपने कई दूसरे उपनिवेशों पर भेजा था इस फसल ने लोगों को सिर्फ अपना घरबार छोड़ने पर ही मजबूर नहीं किया बल्कि लाखों लोगों की जान भी ली।
माना जाता है कि गुलामों के हर जत्थे में 25 फीसदी तक लोग बीच सफर में ही मर जाया करते थे और इस दौरान 10 से 20 लाख लोगों के मारे जाने का अनुमान है। इसका मतलब है मुनाफे के लिए ऐसे औद्योगिक उत्पादों को बढ़ावा देना जो लोगों में कई तरह की खतरनाक बीमारियों के लिए जिम्मेदार हैं। चीनी और तंबाकू को इस श्रेणी में शामिल किया जा सकता है। तंबाकू के बारे में तो यह माना ही जाता है कि लोगों को इसकी लत लग सकती है लेकिन आधुनिक शोध बताते हैं कि इंसानों पर चीनी का असर भी तकरीबन ऐसा ही होता है। इस नजर से देखें तो इस समय विश्व समुदाय पर चीनी की पकड़ शराब या तंबाकू की तुलना में कहीं ज्यादा है। विश्व अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक विरासत का काफी अहम हिस्सा बन चुकी चीनी से हमारी करीब 20 फीसदी ऊर्जा की जरूरत पूरी होती है।साल 2013 के आंकड़ों के अनुसार विश्व के कुल फसल उत्पादन में 6 2 प्रतिशत हिस्सा गन्ने का था और कुल कीमत 9 4 फीसदी थी।