दस्तक-विशेष

जीत जाएंगे हम

मुंबई मनपा चुनाव

सुधीर जोशी

मुंबई मनपा चुनाव में जिस तरह से राज्य के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने अलग अलग लड़ने का निर्णय लेकर यह बता दिया है कि हमारी ताकत किसी से कम नहीं है। गणतंत्र दिवस के मौके पर मुंबई में हुए विविध कार्यक्रमों में जहां एक ओर बलशाली गणतंत्र का संकल्प लिया गया, वहीं दूसरी ओर इसी दिन मुंबई के गोरेगांव उपनगर में शिवसेना के कार्यकर्ता सम्मेलन में शिवसेना प्रमुख ने उद्धव ठाकरे ने अपने आक्रामक भाषण में भाजपा को न केवल बिगडै़ल बैल करार देते हुए 25 वर्ष पुराना अपना रिश्ता तोड़ दिया। शिवसेना के फैसले के तुरंत बाद मुख्यमंत्री ने ट्विट किया कि सत्ता के लिए हम ऐसा समझौता नहीं करते जिससे पार्टी को नुकसान हो। मुंबई मनपा चुनाव के लिए सीटों को लेकर जो घमासान मचा, वह ठीक नहीं था, हमने कोशिश की कि शिवसेना के साथ हमारा गठबंधन बना रहे पर बात नहीं बन पायी। शिवसेना द्वारा साथ छोड़ने के बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राव साहेब दानवे भले ही यह कह रहे हैं कि राज्य की देवेंद्र फडणवीस सरकार शिवसेना के साथ पांच साल का कार्यकाल पूरा करेगी लेकिन शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के तेवर देखकर यह नहीं लगता कि शिवसेना अब ज्यादा दिनों तक भाजपा के साथ रहेगी। मुंबई मनपा चुनाव को लेकर पहले कांग्रेस राकांपा और बाद में शिवसेना भाजपा के रिश्तों में आई दरार के बाद सभी दल अकेल हम अकेले तुम की भूमिका में हैं और यही कहते नजर आ रहे हैं कि जीत जाएंगे हम।
शिवसेना ने भाजपा के समक्ष जिस तरह से सिर्फ 60 सीटें देने का प्रस्ताव रखा था, जिसे भाजपा ने अस्वीकार कर दिया। उधर कांग्रेस तथा राकांपा ने भी मुंबई मनपा की चुनावी जंग में अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया है। मुबई कांग्रेस अध्यक्ष संजय निरुपम मुंबई मनपा चुनाव की तिथि घोषित होने के बाद से लगातार यही कहते रहे हैं कि इस बार मुंबई मनपा पर कांग्रेस का परचम लहराएगा। भाजपा तथा राकांपा ने स्पष्ट तौर पर यह तो नहीं कहा कि मुंबई मनपा पर उनका ही कब्जा होने जा रहा है पर इतना तो तय है कि इन दोनों दलों ने सभी वार्डो से अपने उम्मीदवार उतारने का निर्णय लिया है।
भाजपा-शिवसेना में नहीं हो सका समझौता
मुंबई मनपा में 227 सीटें हैं। इन 227 सीटों में से कम से कम100 सीटें भाजपा को मिल सकती हैं, इस उम्मीद से भाजपा ने शिवसेना से सीटों को लेकर चर्चा होने से पहले ही कह दिया था कि कम से कम उसे 104 सीटें चाहिए। हालांकि भाजपा की ओर से शिवसेना को दिया गया प्रस्ताव भाजपा के कुछ शीर्ष राष्ट्रीय नेताओं को पसंद नहीं आया इसलिए बाद में भाजपा ने फिफ्टी फिप्टी का फार्मूला रखा, जिस पर शिवसेना की ओर से कोई सकारात्मक जवाब नहीं आया, फिर शायद भाजपा को लगा कि शिवसेना के समक्ष दूसरा प्रस्ताव रखा जाए, फिर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष राव साहेब दानवे, मुंबई भाजपा अध्यक्ष एड आशीष शेलार, शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े, गृह निर्माण मंत्री प्रकाश मेहता के साथ इस मुद्दे पर बातचीत हुई तथा शिवसेना के पास 90 सीटों का प्रस्ताव भेजा गया, जिसे भी शिवसेना से सिरे से खारिज कर दिया। जब शिवसेना की ओर से 90 सीटें देने का प्रस्ताव भी अमान्य कर दिया गया तो भाजपा ने यह रणनीति बनायी कि अब खुद के बूते पर चुनाव लड़ा जाए तथा 227 सीटों के लिए संभावित उम्मीदवारों की सूची बनायी और उनमें से 114 सीट की सूची शिवसेना के पास भेज दी। इस सूची के मिलने के बाद शिवसेना और आक्रामक हो गई और उसने केवल 60 सीटें भाजपा के लिए छोड़ने की बात कही। भाजपा तथा शिवसेना दोनों ने ही मुंबई मनपा चुनाव को प्रतिष्ठा का विषय बना लिया। सीटों के लिए मचे घमासान को खत्म करने के लिए जहां एक ओर पहली चर्चा से ही मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ-साथ भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राव साहेब दानवे तथा शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े ने सहभागिता की जबकि शिवसेना ने पहले दौर की बातचीत में अनिल देसाई, अनिल परब, रवींद्र मिर्लेकर जैसे जूनियर नेताओं को सामने लाकर भाजपा को यह बताने की कोशिश की मनपा पर सीटों के बंटवारे को वह बहुत महत्व नहीं देती है, इस मसले पर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे जैसे वरिष्ठ नेता को बुलाना ठीक नहीं है। भाजपा के शीर्ष नेताओं के समक्ष शिवसेना के कनिष्ठ नेताओं का चर्चा के लिए आना यही बता रहा था कि शिवसेना यह मानकर चल रही थी कि भाजपा पहले ही दौर में समझौता कर लेगी और शिवसेना की ओर से जो भी प्रस्ताव आएगा उसे स्वीकार कर लेगी। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने पार्टी के कनिष्ठ नेताओं की ओर भाजपा पर मनोवैज्ञानिक दबाव डालने की कोशिश की। शिवसेना शायद यह मानकर चल रही थी कि भाजपा को वह यह कहकर कम से कम सीटें देकर गठबंधन के लिए तैयार कर लेगी, लेकिन जब भाजपा की ओर से शिवसेना के पास सन् 2014 में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम के आधार पर सीटों के बंटवारे का प्रस्ताव रखा गया तो शिवसेना के कनिष्ट नेताओं को लगा कि भाजपा वाले तो हम से भी आगे निकल गए तो उन्होंने भाजपा पर दबाब डालने की रणनीति अपनायी और इतना कम आकड़ा भाजपा के सामने रखा कि चर्चाओं का दौर चले, तीन बार की चर्चा के बाद जब 60 सीटें भाजपा को देने का प्रस्ताव शिवसेना की ओर से रखा गया तो शिवसेना की इस दबाव वाली नीति को भाजपा ने पूरी तरह से फेल करते हुए उस मुद्दे पर अंतिम फैसले का अधिकार मुख्यमंत्री तथा शिवसेना प्रमुख पर सौंप कर भाजपा शिवसेना के बीच गठबंधन को पूरी तरह विराम दे दिया।
शिवसेना प्रमुख बाल साहेब ठाकरे की जयंती पर भी जब सीटों को लेकर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ तो युति की संभावनाएं पूरी तरह से क्षीण हो गईं। सीटों के बंटवारे का गणित भाजपा तथा शिवसेना दोनों ने अपने अपने तरीके से रखा और इसी कारण दोनों दलों के बीच सीटों के लेकर समझौता नहीं हो पाया। शिवसेना की चाहत यही रही कि उसे 2012 में हुए मनपा चुनाव के परिणाम के आधार पर सीटें बंटवारे में मिलें। इस चुनाव में शिवसेना को 75 सीटें मिलीं थीं, जबकि भाजपा के पक्ष में सिर्फ 31 सीटें ही आयीं थी, अगर 2007 में मुंबई मनपा चुनाव की बात करें को शिवसेना को 84 तथा भाजपा को 28 सीटें मिली थीं। सन् 2012 के मुंबई मनपा चुनाव परिणाम मे शिवसेना भाजपा के सीटों का अंतर दुगुने से भी 13 सीटें ज्यादा हैं, इस आधार पर शिवसेना भाजपा के लिए ज्यादा सीटें नहीं छोड़ना चाहती। यहां सवाल यह उठता है कि क्या शिवसेना की स्थिति वर्तमान में इतनी मजबूत है कि वह अपने बूते पर पिछले चुनाव से ज्यादा सीटें जीत सकती है। शिवसेना को पूरा भरोसा है कि अगर उसने अपने बूते पर चुनाव लड़ा तो उसे कम से कम 100 सीटें अवश्य मिलेंगी, लेकिन शिवसेना शायद इस बात का विश्लेषण नहीं कर रही है कि आज 2012 जैसी स्थिति नहीं है। अब हालात पहले की तुलना में काफी बदल चुके हैं, पहले भाजपा शिवसेना के छोटे भाई की भूमिका में थी लेकिन अब उसका कद बढ़ गया है और वह बड़े भाई की भूमिका में आ गयी है, इसलिए भाजपा बड़े भाई जैसा अधिकार दिखा रही है। हालिया चुनावों में भाजपा को मिली सफलता ने उसका विश्वास और ज्यादा बढ़ा दिया है, शायद इसीलिए भाजपा की ओर से फिफ्टी-फिफ्टी का फार्मूला रखा गया था, लेकिन शिवसेना ने उसे नकार कर गठबंधन तोड़ दिया।
कांग्रेस में कलह
भाजपा शिवसेना में सीटों के बंटवारे को लेकर अलग अलग चुनाव लड़ने के बीच कांग्रेस में गुरुदास कामत तथा संजय निरूपम के बीच की कलह ने पूरा दृश्य ही बदल दिया है। यह सच है कि निरुपम एक तेज. तर्रार नेता हैं, पर उनके कार्य करने की प्रवृत्ति के कारण मुंबई कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता निरुपम से नाराज हैं। मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष पद पर काबिज संजय निरूपम के तानाशाही रवैय्ये से नाराज वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा, शिवसेना का दामन थाम लिया। कामत तथा निरुपम के बीच उपजे विद्रोह को कम करने के लिए हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा ने काफी हद तक दोनों नेताओं के बीच के कलह को खत्म कर दिया है, लेकिन दोनों का टकराव सिर्फ मनपा चुनाव तक के लिए ही खत्म हुआ है। अगर मनपा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन पिछले चुनाव के मुकाबले बेहतर रहा तो निरूपम की ताकत कांग्रेस में और बढ़ेगी, दूसरी तरफ अगर कांग्रेस का प्रदर्शन पिछले मनपा चुनाव के मुकाबले खराब रहा तो निरूपम के लिए आने वाले दिन अच्छे नहीं होंगे।
सुप्रिया सुले ने संभाली राकांपा के प्रचार की धुरी
कांग्रेस के अंदरुनी विवाद का फायदा उठाने में राकांपा कभी पीछे नहीं रही, मनपा चुनाव में इस बार कांग्रेस तथा राकांपा दोनों दल अलग-अलग लड़ेंगे ऐसे में सभी 227 सीटों पर राकांपा के उम्मीदवार उतारना आसान नहीं है। हर सीट पर मजबूत उम्मीदवार उतारने की धारणा गत दिनों राकांपा सुप्रीमो की सुपुत्री तथा बारामती की सांसद सुप्रिया सुले ने व्यक्त की थी। सीटों के बंटवारे तथा उम्मीदवारों के चयन में पूर्व उपमुख्यमंत्री तथा राकांपा के वरिष्ठ नेता अजित पवार तथा प्रदेशाध्यक्ष सुनील तटकरे के मुकाबले सुप्रिया का राज्य में रानजीतिक कद बड़ा करने का प्रयास पार्टी की ओर से किया जा रहा है। देश के दूसरे सबसे बड़े पद्म विभूषण पुरस्कार प्राप्त करने वाले शरद पवार के प्रति यहां के लोगों का आदर बहुत ज्यादा है, बावजूद इसके मुंबई मनपा में राकांपा की सत्ता स्थापित होने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है। हालांकि कांग्रेस की तरह राकांपा को यह उम्मीद है कि इस बार मुबई मनपा पर राकांपा का परचम लहराएगा।
मनसे को 10 सीटों की उम्मीद
नासिक मनपा पर सत्ता का स्वाद चख चुकी मनसे को भी भरोसा है कि कम से कम 10 सीट तो पार्टी को अवश्य मिलेगी। मनसे की तरह रामदास अठावले को भी पूरी उम्मीद है कि जितनी सीटें भाजपा की ओर से उनकी पार्टी रिपाइ को मिलेगी, उस सभी में उनका प्रत्याशी जीत जाएगा।
वास्तविक स्थिति का होगा अंदाज
शिवसेना प्रमुख की घोषणा के बाद अब भाजपा तथा शिवसेना अलग-अलग चुनाव लडें़गे। इस चुनाव में दोनों दलों की राज्य में वास्तविक स्थिति क्या है, इसका सही अंदाज हो जाएगा। मुंबई मनपा समेत जिन अन्य महानगर पालिकाओं में फरवरी माह में चुनाव होने हैं, उसके परिणाम पर बहुत कुछ निर्भर करेगा कि भाजपा शिवसेना की आगे की राजनीतिक यात्रा का स्वरूप क्या होगा। 25 साल के एक साथ चुनाव लड़ने वाले भाजपा शिवसेना दोनों विभक्त हो चुके हैं। मनपा चुनाव से ठीक पहले दोनों दलों के अलग होने का राज्य की राजनीति पर क्या असर हुआ है, यह तो परिणाम सामने आने के बाद ही पता लगेगा, लेकिन इतना तय है कि सभी दलों के अलग-अलग मैदान में उतरने की घोषणा के बाद मनपा चुनावी रण कुछ ज्यादा ही दिलचस्प होगा। कुल मिलाकर यह कहना गलत नहीं कि सभी राजनीतिक दल मुंबई मनपा पर अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हैं। नामांकन पत्रों के दाखिले, उनकी जांच के बाद जो उम्मीदवार शेष बचेंगे उन्हीं उम्मीदवारों के भविष्य का फैसला मतदाता करेंगे। अभी तक तो सभी पार्टियां अपनी जीत का दावा कर रही हैं और यही कह रही हैं कि जीत जाएंगे हम, लेकिन वास्तविक सच तभी सामने आएगा जब परिणाम सामने आ जाएंगे, तब यह नहीं कहना पड़ेगा कि जीत जाएंगे हम, बल्कि यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि लो हम तो जीत ही गए।

Related Articles

Back to top button