1882 में कुमाऊं के लिए पहली ट्रेन चली थी, इस दौरान रेलवे ने कई बदलाव देखे हैं। सवा सौ साल बाद कुमाऊं में रेलवे के इतिहास में नई इबरात लिखी गई है।कुमाऊं से चलने वाली वीवीआईपी शताब्दी ऐसी पहली ट्रेन है, जिसके संचालन में बेटियां बतौर लोको पायलट सहयोग कर रही हैं। रेलवे अधिकारी भी इस उपलब्धि से गदगद हैं।बेटियां हर उस क्षेत्र में दमदार उपस्थिति दर्ज करा रही है, जो सामान्य तौर पर पुरुष प्रधान काम माने जाते थे। रेलवे ने भी बेटियों की हिम्मत, कौशल और दक्षता को सलाम किया है।
काठगोदाम से नई दिल्ली के बीच चलने वाली शताब्दी एक्सप्रेस में सुनीता कुमारी, अंजू सिंह, रेनू श्रीवास, आकांक्षा और रीना को सहायक लोको पायलट के तौर पर तैनाती दी गई है।सुनीता कुमारी कहती हैं कि ट्रेन को चलाने में गौरव का अहसास होता है। उन्हें एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई है, जिसमें अपने सहयोगियों के माध्यम से पूरा किया जाता है। कई चुनौतियां भी आती हैं। शुरुआत में डर लगा था, अब सामंजस्य बैठा लिया है।